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बुनकरों का दर्दः 'हमसे अच्छे दिहाड़ी मजदूर, इससे पेट भी नहीं भरता सरकारी लाभ से हैं वंचित' - आर्थिक मदद

कभी भागलपुर को सिल्क सिटी कहा जाता था. यहां की सिल्क निर्मित वस्त्र दुनिया भर में अपनी छाप छोड़ते थे. लेकिन समय के साथ यहां के बुनकरों के हालात बिड़ते चले गए. आलम यह है कि यहां के बुनकर किसी तरह अपना पेट पाल रहे हैं.

भागलपुर के बुनकरों की स्थिति
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Published : Aug 23, 2019, 10:25 AM IST

भागलपुरः भागलपुर जिसे सिल्क नगरी के नाम से भी जाना जाता है. यहां करीब एक लाख से ज्यादा बुनकरों की आबादी है. जो पूरी तरह से बुनकरी के पेशे पर निर्भर हैं. लेकिन वर्तमान में भागलपुर के बुनकरों के हालात कुछ ठीक नहीं है. भागलपुर के नाथनगर इलाके के लाखों बुनकर जिनकी स्थिति बदतर है. जी-तोड़ मेहनत के बाद भी दो जून की रोटी बड़ी मुश्किल से नसीब हो पाती है. सरकारी योजनाओं को लाभ भी कुछ खास नहीं मिल पाता.

ईटीवी भारत संवाददता की स्पेशल रिपोर्ट

स्थानीय बुनकर मुस्ताक अंसारी ने ईटीवी भारत से बातचीत में अपना दुखड़ा सुनाया. अंसारी कहते हैं, 'किसी तरह पेट पाल रहे हैं. दिन भर में 250 तक की कमाई होती है. इससे ज्यादा तो दिहाड़ी में मजदूर कमा लेते हैं.' इसी में घर चलाने के साथ-साथ बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का सारा खर्च उठाना पड़ता है. कभी-कभी हाताल ऐसे हो जाते हैं कि सप्ताह में 200-300 तक की ही कमाई हो पाती है. सरकार की तरफ से वादे किए जाते हैं, लेकिन जमीन पर कुछ दिखता नहीं है. सरकारी लाभ के लिए फार्म भी भरते हैं लेकिन कुछ हासिल नहीं होता.

बुनकर शेड और क्रेडिट कार्ड से भी नहीं बहुरे दिन
भागलपुर में रेशम उद्योग की स्थिति बेहतरी और बुनकरों के हालात बेहतर बनाने के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू किए गए. बुनकरों के लिए बुनकर शेड और क्रेडिट कार्ड योजना लाया गया. करोड़ों की लागत से सरकार ने बुनकर शेड लगाई थी. जिसमें बुनकरों के बड़े नेताओं ने बिचौलिया का किरदार निभाया. जिससे योजना पूरी तरह से धराशायी हो गई. वहीं सरकार ने दूसरी योजना क्रेडिट कार्ड लेकर आयी. जिसमें बुनकरों को ₹25000 तक की क्रेडिट की सुविधा उपलब्ध कराई गई. इसके माध्यम से 25 हजार तक का कार्य कर सकते थे. हालांकि योजना सभी बुनकरों तक नहीं पहुंच पाई. इसके के कारण बुनकर इसका लाभ नहीं उठा सकें. नतीजतन बुनकरों के हालात नहीं बदल पाये.

bhagalpur
नाथनगर के बुनकर

बुनकरों को मिल रहा 5 लाख तक का ऋण
सरकार की तरफ से बुनकरों के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को लेकर भागलपुर में 2014 में अल्पसंख्यक कल्याण का कार्यालय शुरू किया. अल्पसंख्यक बुनकरों को आर्थिक मदद के तौर पर 5 लाख तक का ऋण दिया जाता है. 5 फ़ीसदी वार्षिक ब्याज दर पर उन्हें तीन-तीन महीने में किस्त के तौर पर चुकाना होता है. हलांकि जागरूकता के अभाव की वजह से बुनकरों को इस योजना का लाभ बहुत ज्यादा नहीं मिल पाया.

जागरूकता के आभाव में लाभ नीं उठा रहे बुनकर
बुनकरों के हालात पर ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए जिला अल्पसंख्यक कल्याण पदाधिकारी राहुल कुमार ने कहा कि सरकार के तरफ से कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही है. भागलपुर में ज्यादातर बुनकर अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं. जानकारी के आभाव में सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं. इस संबंध में लोगों को जागरूक करने की कोशिश भी की. लेकिन लोग सरकारी सहायता को लेकर बहुत ज्यादा जागरूक नहीं रहते और साथ ही रूचि भी नहीं रखते. जिसके कारण केवल 25 से 30 लोगों को ही इसका फायदा मिल पाता है.

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राहुल कुमार ,जिला अल्पसंख्यक कल्याण पदाधिकारी

भागलपुरः भागलपुर जिसे सिल्क नगरी के नाम से भी जाना जाता है. यहां करीब एक लाख से ज्यादा बुनकरों की आबादी है. जो पूरी तरह से बुनकरी के पेशे पर निर्भर हैं. लेकिन वर्तमान में भागलपुर के बुनकरों के हालात कुछ ठीक नहीं है. भागलपुर के नाथनगर इलाके के लाखों बुनकर जिनकी स्थिति बदतर है. जी-तोड़ मेहनत के बाद भी दो जून की रोटी बड़ी मुश्किल से नसीब हो पाती है. सरकारी योजनाओं को लाभ भी कुछ खास नहीं मिल पाता.

ईटीवी भारत संवाददता की स्पेशल रिपोर्ट

स्थानीय बुनकर मुस्ताक अंसारी ने ईटीवी भारत से बातचीत में अपना दुखड़ा सुनाया. अंसारी कहते हैं, 'किसी तरह पेट पाल रहे हैं. दिन भर में 250 तक की कमाई होती है. इससे ज्यादा तो दिहाड़ी में मजदूर कमा लेते हैं.' इसी में घर चलाने के साथ-साथ बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का सारा खर्च उठाना पड़ता है. कभी-कभी हाताल ऐसे हो जाते हैं कि सप्ताह में 200-300 तक की ही कमाई हो पाती है. सरकार की तरफ से वादे किए जाते हैं, लेकिन जमीन पर कुछ दिखता नहीं है. सरकारी लाभ के लिए फार्म भी भरते हैं लेकिन कुछ हासिल नहीं होता.

बुनकर शेड और क्रेडिट कार्ड से भी नहीं बहुरे दिन
भागलपुर में रेशम उद्योग की स्थिति बेहतरी और बुनकरों के हालात बेहतर बनाने के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू किए गए. बुनकरों के लिए बुनकर शेड और क्रेडिट कार्ड योजना लाया गया. करोड़ों की लागत से सरकार ने बुनकर शेड लगाई थी. जिसमें बुनकरों के बड़े नेताओं ने बिचौलिया का किरदार निभाया. जिससे योजना पूरी तरह से धराशायी हो गई. वहीं सरकार ने दूसरी योजना क्रेडिट कार्ड लेकर आयी. जिसमें बुनकरों को ₹25000 तक की क्रेडिट की सुविधा उपलब्ध कराई गई. इसके माध्यम से 25 हजार तक का कार्य कर सकते थे. हालांकि योजना सभी बुनकरों तक नहीं पहुंच पाई. इसके के कारण बुनकर इसका लाभ नहीं उठा सकें. नतीजतन बुनकरों के हालात नहीं बदल पाये.

bhagalpur
नाथनगर के बुनकर

बुनकरों को मिल रहा 5 लाख तक का ऋण
सरकार की तरफ से बुनकरों के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को लेकर भागलपुर में 2014 में अल्पसंख्यक कल्याण का कार्यालय शुरू किया. अल्पसंख्यक बुनकरों को आर्थिक मदद के तौर पर 5 लाख तक का ऋण दिया जाता है. 5 फ़ीसदी वार्षिक ब्याज दर पर उन्हें तीन-तीन महीने में किस्त के तौर पर चुकाना होता है. हलांकि जागरूकता के अभाव की वजह से बुनकरों को इस योजना का लाभ बहुत ज्यादा नहीं मिल पाया.

जागरूकता के आभाव में लाभ नीं उठा रहे बुनकर
बुनकरों के हालात पर ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए जिला अल्पसंख्यक कल्याण पदाधिकारी राहुल कुमार ने कहा कि सरकार के तरफ से कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही है. भागलपुर में ज्यादातर बुनकर अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं. जानकारी के आभाव में सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं. इस संबंध में लोगों को जागरूक करने की कोशिश भी की. लेकिन लोग सरकारी सहायता को लेकर बहुत ज्यादा जागरूक नहीं रहते और साथ ही रूचि भी नहीं रखते. जिसके कारण केवल 25 से 30 लोगों को ही इसका फायदा मिल पाता है.

bhagalpur
राहुल कुमार ,जिला अल्पसंख्यक कल्याण पदाधिकारी
Intro:bh_bgp_01_sarkari_yojnayen_aur_bunkaron_ke_halaat_pkg_7202641

भागलपुर करीब एक लाख से ज्यादा बुनकरों की आबादी है जो पूरी तरह से उन करी के पेशा पर निर्भर हैं 1989 दंगे के बाद बुनकरों की हालत और बदतर हो गई और भागलपुरी रेशम में आग लग गई जिस रेशम की धमक पूरे देश और दुनिया भर में थी उस रेशम पर भागलपुर दंगा जैसा बदनुमा धब्बा लग गया था और भागलपुरी रेशम उद्योग पूरी तरह से चरमरा गया था उसकी सबसे बड़ी वजह भागलपुर में 1989 में घटा सांप्रदायिक दंगा था 1989 के पहले भागलपुरी रेशम और बुनकर दोनों के हालात बेहतर थे संप्रदायिक दंगा ने मानव भागलपुरी रेशम को पूरी तरह से जला दिया था ।


Body:वक्त बीतता गया नई सरकार आई और सरकार ने कही बार कोशिश की कि भागलपुर में रेशम उद्योग की स्थिति बेहतर हो और बुनकरों के हालात बेहतर हो जाएं जिसको लेकर सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाएं बुनकरों के लिए शुरू की जिसमें दो प्रमुख योजना जिसमें करोड़ों की लागत सरकार ने लगा दी थी वह बुनकर शेड था जिसमें बुनकरों के बड़े नेताओं ने बिजोलिया का किरदार निभाया और योजना पूरी तरह से धराशाई हो गई वहीं सरकार ने दूसरी योजना उनका क्रेडिट कार्ड लाया जिसमें बुनकरों को ₹25000 तक की क्रेडिट की सुविधा उपलब्ध कराई कि ₹25000 तक का कार्यभार वह इस कार्ड के माध्यम से कर सकते थे लेकिन यह योजना भी सभी बुनकरों को फायदा नहीं पहुंचा पाई और कुछ ही बुनकर इसका लाभ उठा सकें नतीजतन बुनकरों के हालात नहीं बदल पाये ।


Conclusion:सरकार ने बुनकरों की स्थिति को देखते हुए और खासकर उनके बच्चों की पढ़ाई लिखाई को लेकर भागलपुर में 2014 में अल्पसंख्यक कल्याण का कार्यालय शुरू किया जिसमें बुनकर अल्पसंख्यकों को आर्थिक मदद के तौर पर 5 लाख तक का ऋण मिल जाता है जिसे 5 फ़ीसदी वार्षिक ब्याज दर पर उन्हें तीन-तीन महीने में किस्त के तौर पर चुकाना होता है लेकिन जागरूकता के अभाव की वजह से बुनकरों को इस योजना का लाभ बहुत ज्यादा नहीं मिल पाया अल्पसंख्यक कल्याण पदाधिकारी राहुल कुमार कहते हैं की भागलपुर में ज्यादातर बुनकर अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं कई बार हम लोगों ने उन्हें सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के बारे में जानकारी देने की कोशिश की लेकिन वह लोग सरकार की सहायता को लेकर बहुत ज्यादा जागरूक और रूचि नहीं रखते जिसकी वजह से साल भर में केवल 25 से 30 लोगों को ही फरीन का फायदा मिल पाता है ।

बाइट:मुस्ताक अंसारी ,बुनकर
बाइट:चुन्ना अंसारी ,बुनकर
बाइट:राहुल कुमार ,जिला अल्पसंख्यक कल्याण पदाधिकारी ,भागलपुर
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