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मेडिकल सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए भागलपुर के डॉक्टर को मिलेगा पद्मश्री सम्मान

भारत सरकार द्वारा बनाई गई चयन कमेटी ने मेडिकल क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए भागलपुर से 95 साल के डॉ दिलीप कुमार सिंह के नाम का चयन पद्मश्री सम्मान के लिए कर लिया है. 1954 से हाल के दिनों तक उन्होंने मेडिकल सेवा के क्षेत्र में निस्वार्थ भाव से अभूतपूर्व काम किया है.

Dr dilip kumar singh
डॉ दिलीप कुमार सिंह
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Published : Jan 28, 2021, 5:20 PM IST

भागलपुर: भारत सरकार द्वारा बनाई गई चयन कमेटी ने मेडिकल क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए भागलपुर से 95 साल के डॉ दिलीप कुमार सिंह के नाम का चयन पद्मश्री सम्मान के लिए कर लिया है. 1954 से हाल के दिनों तक उन्होंने मेडिकल सेवा के क्षेत्र में निस्वार्थ भाव से अभूतपूर्व काम किया है.

इसकी प्रशंसा पूरे इलाके के लोग करते हैं. देर से ही सही उनके द्वारा सुदूर गांव में रहकर लोगों की सेवा करने और मेडिकल क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए उनके नाम का चयन पद्मश्री सम्मान के लिए किया गया है. डॉ दिलीप कुमार सिंह मूल रूप से भागलपुर के कहलगांव के पीरपैंती के रहने वाले हैं. डॉ दिलीप कुमार सिंह ने मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद अपने गृह क्षेत्र को ही काम के लिए चुना है.

देखें रिपोर्ट

मिट्टी के दीये की रोशनी में करते थे इलाज
डॉ दिलीप कुमार सिंह का जन्म 26 जून 1926 को बांका में हुआ था. उन्होंने 1952 में पटना मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई की. पढ़ाई के बाद डॉ. सिंह इंग्लैंड ने लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन से डीटीएम और एच की डिग्री ली. इसके बाद माउंट वर्नोन अस्पताल, न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिका में काम किया. वह इंडिया मेडिकल एसोसिएशन और कुष्ठ रोग उन्मूलन समिति के सदस्य हैं.

डॉ दिलीप ने 1953 में पीरपैंती में लोगों का इलाज शुरू किया. तब पूरे इलाके में दूर-दूर तक कोई भी डॉक्टर नहीं थे. उन दिनों डॉ दिलीप कुमार सिंह के गांव में बिजली, टेलीफोन और पक्की सड़क नहीं थी. वह घोड़े पर सवार होकर अलग-अलग गांवों में रोगियों का इलाज करते थे. मिट्टी के दीपक की रोशनी में रोगियों का इलाज करते थे.

यह भी पढ़ें- भागलपुर की बेटी ने ब्यूटी कॉन्टेस्ट में रनर अप का खिताब जीतकर बढ़ाया मान

आईएमए बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में है नाम
1965 में उन्हें ईसीएफएमजी में शामिल होने का अवसर मिला, जिसके बाद वह अमेरिका चले गए. कुछ समय बाद वह वापस पीरपैंती लौट आए. 1980 में तरवा नामक गांव में एक कार्यक्रम में भाग लेने के दौरान उन्होंने पोलियोमाइलाइटिस के 2 मामले देखे. उन्होंने तुरंत इसे रोकने का फैसला किया. उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि यह टीका उपलब्ध नहीं था.

उन्होंने कोलकाता में एक केमिस्ट कंपनी से संपर्क किया. उस कंपनी ने यूएसएसआर से पोलियो वैक्सीन आयात किया. डॉ सिंह ने 1100 खुराक का ऑर्डर दिया और अपनी जेब से भुगतान किया. वह वैक्सीन को अपने गांव ले आए. 1013 बच्चों को नि:शुल्क पोलियो वैक्सीन दिया. गरीबों के बीच 1980 की शुरुआत में पोलियो वैक्सीन नि:शुल्क देने पर उनका नाम आईएमए बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल हुआ था. लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी उनका नाम शामिल हुआ.

भागलपुर: भारत सरकार द्वारा बनाई गई चयन कमेटी ने मेडिकल क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए भागलपुर से 95 साल के डॉ दिलीप कुमार सिंह के नाम का चयन पद्मश्री सम्मान के लिए कर लिया है. 1954 से हाल के दिनों तक उन्होंने मेडिकल सेवा के क्षेत्र में निस्वार्थ भाव से अभूतपूर्व काम किया है.

इसकी प्रशंसा पूरे इलाके के लोग करते हैं. देर से ही सही उनके द्वारा सुदूर गांव में रहकर लोगों की सेवा करने और मेडिकल क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए उनके नाम का चयन पद्मश्री सम्मान के लिए किया गया है. डॉ दिलीप कुमार सिंह मूल रूप से भागलपुर के कहलगांव के पीरपैंती के रहने वाले हैं. डॉ दिलीप कुमार सिंह ने मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद अपने गृह क्षेत्र को ही काम के लिए चुना है.

देखें रिपोर्ट

मिट्टी के दीये की रोशनी में करते थे इलाज
डॉ दिलीप कुमार सिंह का जन्म 26 जून 1926 को बांका में हुआ था. उन्होंने 1952 में पटना मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई की. पढ़ाई के बाद डॉ. सिंह इंग्लैंड ने लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन से डीटीएम और एच की डिग्री ली. इसके बाद माउंट वर्नोन अस्पताल, न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिका में काम किया. वह इंडिया मेडिकल एसोसिएशन और कुष्ठ रोग उन्मूलन समिति के सदस्य हैं.

डॉ दिलीप ने 1953 में पीरपैंती में लोगों का इलाज शुरू किया. तब पूरे इलाके में दूर-दूर तक कोई भी डॉक्टर नहीं थे. उन दिनों डॉ दिलीप कुमार सिंह के गांव में बिजली, टेलीफोन और पक्की सड़क नहीं थी. वह घोड़े पर सवार होकर अलग-अलग गांवों में रोगियों का इलाज करते थे. मिट्टी के दीपक की रोशनी में रोगियों का इलाज करते थे.

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आईएमए बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में है नाम
1965 में उन्हें ईसीएफएमजी में शामिल होने का अवसर मिला, जिसके बाद वह अमेरिका चले गए. कुछ समय बाद वह वापस पीरपैंती लौट आए. 1980 में तरवा नामक गांव में एक कार्यक्रम में भाग लेने के दौरान उन्होंने पोलियोमाइलाइटिस के 2 मामले देखे. उन्होंने तुरंत इसे रोकने का फैसला किया. उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि यह टीका उपलब्ध नहीं था.

उन्होंने कोलकाता में एक केमिस्ट कंपनी से संपर्क किया. उस कंपनी ने यूएसएसआर से पोलियो वैक्सीन आयात किया. डॉ सिंह ने 1100 खुराक का ऑर्डर दिया और अपनी जेब से भुगतान किया. वह वैक्सीन को अपने गांव ले आए. 1013 बच्चों को नि:शुल्क पोलियो वैक्सीन दिया. गरीबों के बीच 1980 की शुरुआत में पोलियो वैक्सीन नि:शुल्क देने पर उनका नाम आईएमए बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल हुआ था. लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी उनका नाम शामिल हुआ.

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