बेगूसराय: बिहार में लेखक दया प्रकाश सिन्हा द्वारा (Controversial Statement On Samrat Ashoka) सम्राट अशोक पर विवादित टिप्पणी को लेकर राजनीति तेज हो गई है. इसी को लेकर बेगूसराय में गुरुवार को फुले समता (Phule Samta Parishad Protest in Begusarai) परिषद के बैनर तले परिषद के संरक्षक श्याम बिहारी वर्मा के नेतृत्व में शहर के कैंटीन चौक पर लेखक दया (Daya Prakash Sinha Effigy burnt In Begusarai) प्रकाश सिन्हा का पुतला दहन किया गया है. इस दौरान बिहार के पूर्व समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा ने भी विरोध जताया है.
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वहीं, पुतला दहन के उपरांत फुले समता परिषद के संरक्षक श्याम बिहारी वर्मा ने कहा कि, सम्राट अशोक का सम्मान सर्वविदित है, सम्राट अशोक के नाम से स्तंभ और चक्र है जो एक सम्मान है. ऐसे सम्मानित व्यक्तित्व की दया प्रकाश सिन्हा ने औरंगजेब से तुलना कर उनके सम्मान के खिलाफ काम किया है. इसका हम घोर निंदा करते हैं. दया प्रकाश सिन्हा से पद्मश्री पुरस्कार वापस लेने की मांग की गई.
सम्राटों के सम्राट अशोक विश्व प्रसिद्ध हैं, उनके बारे में अभद्र टिप्पणी की मैं निंदा करती हूं, और भारत सरकार से मांग करती हूं कि, लेखक दया प्रकाश सिन्हा से पद्मश्री पुरस्कार वापस लिया जाए साथ ही वह पुस्तक भी वापस लिया जाए. पूर्व मंत्री मंजू वर्मा
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इस दौरान दिलीप कुमार कुशवाहा ने कहा कि आज जिला मुख्यालय में पुतला दहन किया जा रहा है. हमारी तीन मांगे हैं, जिसमें पद्मश्री पुरस्कार और पुस्तक वापस लिया जाए तथा देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया जाए. उन्होंने कहा कि,अगर हमारी मांगें पूरी नहीं हुई तो हम लोग चरणबद्ध तरीके से लड़ाई जारी रखेंगे. मौके पर उपस्थित कार्यकर्ताओं ने पुतला दहन कर नारेबाजी कर विरोध जताया है. इस दौरान जितेंद्र कुमार जीबू, रामराज महतो, अरुण महतो, विधान प्रियरंजन, अजय पासवान, सुमित प्रधान, कमली पासवान, रमाकांत महतो, हरिनारायण मेहता, मोहम्मद सनाउल्लाह, मिंटू पटेल, शंभू नाथ महतो समेत अन्य लोग मौजूद थे.
गौरतलब है कि पद्मश्री दया प्रकाश सिन्हा ने सम्राट अशोक पर विवादित बयान दिया था, जिस पर विवाद पैदा हो गया है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा था कि सम्राट अशोक क्रूर, कामुक और बदसूरत थे. उन्होंने अशोक को भाई का हत्यारा बताकर उनकी तुलना क्रूर औरंगजेब से कर दी. उन्होंने कहा कि सम्राट अशोक बेहद बदसूरत और कामुक थे. देश के विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में सम्राट अशोक के उजले पक्ष को ही शामिल किया गया है, जबकि उनकी असलियत इससे अलग भी थी. श्रीलंका के तीन बौद्ध ग्रंथों का उन्होंने हवाला देकर ये बयान दिया था.
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