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मिसाल: मां के मृत्यु भोज के बदले गांव में स्कूल बनाने के लिए दान किए 10 लाख रुपये

राजकिशोर कहते हैं कि वह हिन्दू धर्म के अनुरूप मरणोपरांत किए जाने वाले विधि-विधान के विरोधी नहीं है. लेकिन, भोज पर होने वाले अनावश्यक खर्च को किसी सकारात्मक कार्य में लगाने के पक्षधर हैं.

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Published : Jul 7, 2019, 8:24 PM IST

Updated : Jul 7, 2019, 8:47 PM IST

राजकिशोर रंजन

बेगूसराय: 'परिवर्तन ही संसार का नियम है' कहा जाता है, अगर इंसान की इच्छाशक्ति मजबूत हो तो सदियों पुरानी परम्परा टूटते देर नहीं लगती. जिले के राजकिशोर रंजन ने कुछ ऐसा ही आगाज किया है. उन्होंने अपनी मां की मौत के बाद मृत्यु भोज देने की बजाए 10 लाख रुपये का अनुदान दिया है. उन्होंने यह रुपये स्कूल के निर्माण कराने के लिए दिए हैं.

गांव वालों की नजर में ऐतिहासिक निर्णय
मामला जिला मुख्यालय से दस किलोमीटर दूर स्थित मोहनपुर गांव का है. श्राद्ध भोज की बजाए स्कूल निर्माण के लिए 10 लाख दान करने के फैसले को गांव वाले ऐतिहासिक निर्णय करार दे रहे हैं. मालूम हो कि यह वही स्कूल है, जहां राजकिशोर ने बचपन में शिक्षा ली थी.

begusarai
राजकिशोर रंजन से मिलने पहुंचे संवाददाता

माता-पिता के लिए छोड़ी सरकारी नौकरी
जिले के राजकिशोर मां-पिता के एकलौते पुत्र हैं. वह समृद्ध किसान परिवार से आते हैं. उन्होंने कुछ वर्षों तक सरकारी सेवा की. लेकिन, घर-गृहस्थी और अपनी मां की सेवा के लिए उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी. बाद में जब वह गांव लौटे तो सरकारी विद्यालय की दुर्दशा देखकर जन सहयोग देने की ठानी. तब से वह विद्यालयों की स्थिति सुधारने में जुट गए. जिसमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली.

begusarai
ग्रामीणों से साथ की चर्चा

चार दिनों पहले हुई मां की मौत
चूंकि राजकिशोर रंजन अपने गांव के विद्यालयों को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस करना चाहते थे. जिसके लिए बहुत बड़ी धनराशि की आवश्यकता थी. इस आवश्यकता पर राजकिशोर रंजन ने कहा था कि समय आने पर सब हो जाएगा. चार दिन पहले राजकिशोर रंजन की 85 वर्षीय मां जानकी देवी की मौत हो गयी. उसके बाद उन्होंने ग्रामीणों की एक बैठक बुलाई और प्रस्ताव रखा.

ग्रामीणों के समक्ष रखा प्रस्ताव
राजकिशोर रंजन ने कहा ग्रामीणों को आपत्ति नहीं हो तो वह श्राद्ध भोज नहीं करेंगे. इसके पैसे को वह विद्यालय के भवन निर्माण में लगा देंगे. राजकिशोर के इस प्रस्ताव को ग्रामीणों ने प्रेरणा स्रोत मानते हुए भरपूर समर्थन दिया.

ईटीवी भारत संवाददाता आशीष की रिपोर्ट

'घर ही नहीं, देश-समाज के प्रति भी है जिम्मेदारी'
राजकिशोर मानते हैं जिस तरह व्यक्ति घर के प्रति जबाबदेह और समर्पित होता हैं. ठीक उसी तरह उसे गांव, मुहल्ले, समाज के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए. राजकिशोर कहते हैं कि वह हिन्दू धर्म के अनुरूप मरणोपरांत किए जाने वाले विधि-विधान के विरोधी नहीं है. लेकिन, भोज पर होने वाले अनावश्यक खर्च को किसी सकारात्मक कार्य में लगाने के पक्षधर हैं.
ग्रामीणों के मुताबिक राजकिशोर के इस फैसले के बाद गांव में कई ऐसे लोग खड़े हो गए हैं, जो भविष्य में राजकिशोर रंजन के रास्ते पर चलने को तैयार बैठे हैं.

बेगूसराय: 'परिवर्तन ही संसार का नियम है' कहा जाता है, अगर इंसान की इच्छाशक्ति मजबूत हो तो सदियों पुरानी परम्परा टूटते देर नहीं लगती. जिले के राजकिशोर रंजन ने कुछ ऐसा ही आगाज किया है. उन्होंने अपनी मां की मौत के बाद मृत्यु भोज देने की बजाए 10 लाख रुपये का अनुदान दिया है. उन्होंने यह रुपये स्कूल के निर्माण कराने के लिए दिए हैं.

गांव वालों की नजर में ऐतिहासिक निर्णय
मामला जिला मुख्यालय से दस किलोमीटर दूर स्थित मोहनपुर गांव का है. श्राद्ध भोज की बजाए स्कूल निर्माण के लिए 10 लाख दान करने के फैसले को गांव वाले ऐतिहासिक निर्णय करार दे रहे हैं. मालूम हो कि यह वही स्कूल है, जहां राजकिशोर ने बचपन में शिक्षा ली थी.

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राजकिशोर रंजन से मिलने पहुंचे संवाददाता

माता-पिता के लिए छोड़ी सरकारी नौकरी
जिले के राजकिशोर मां-पिता के एकलौते पुत्र हैं. वह समृद्ध किसान परिवार से आते हैं. उन्होंने कुछ वर्षों तक सरकारी सेवा की. लेकिन, घर-गृहस्थी और अपनी मां की सेवा के लिए उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी. बाद में जब वह गांव लौटे तो सरकारी विद्यालय की दुर्दशा देखकर जन सहयोग देने की ठानी. तब से वह विद्यालयों की स्थिति सुधारने में जुट गए. जिसमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली.

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ग्रामीणों से साथ की चर्चा

चार दिनों पहले हुई मां की मौत
चूंकि राजकिशोर रंजन अपने गांव के विद्यालयों को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस करना चाहते थे. जिसके लिए बहुत बड़ी धनराशि की आवश्यकता थी. इस आवश्यकता पर राजकिशोर रंजन ने कहा था कि समय आने पर सब हो जाएगा. चार दिन पहले राजकिशोर रंजन की 85 वर्षीय मां जानकी देवी की मौत हो गयी. उसके बाद उन्होंने ग्रामीणों की एक बैठक बुलाई और प्रस्ताव रखा.

ग्रामीणों के समक्ष रखा प्रस्ताव
राजकिशोर रंजन ने कहा ग्रामीणों को आपत्ति नहीं हो तो वह श्राद्ध भोज नहीं करेंगे. इसके पैसे को वह विद्यालय के भवन निर्माण में लगा देंगे. राजकिशोर के इस प्रस्ताव को ग्रामीणों ने प्रेरणा स्रोत मानते हुए भरपूर समर्थन दिया.

ईटीवी भारत संवाददाता आशीष की रिपोर्ट

'घर ही नहीं, देश-समाज के प्रति भी है जिम्मेदारी'
राजकिशोर मानते हैं जिस तरह व्यक्ति घर के प्रति जबाबदेह और समर्पित होता हैं. ठीक उसी तरह उसे गांव, मुहल्ले, समाज के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए. राजकिशोर कहते हैं कि वह हिन्दू धर्म के अनुरूप मरणोपरांत किए जाने वाले विधि-विधान के विरोधी नहीं है. लेकिन, भोज पर होने वाले अनावश्यक खर्च को किसी सकारात्मक कार्य में लगाने के पक्षधर हैं.
ग्रामीणों के मुताबिक राजकिशोर के इस फैसले के बाद गांव में कई ऐसे लोग खड़े हो गए हैं, जो भविष्य में राजकिशोर रंजन के रास्ते पर चलने को तैयार बैठे हैं.

Intro:एंकर-इंसान की इच्छाशक्ति अगर मजबूत हो तो शदियों पुरानी परम्परा टूटते देर नही लगती है और जब पुरानी रूढ़िवादी परंपरा टूटेगी तो निश्चित तौड़ पर एक सृजनात्मक परंपरा का आगाज होगा।कुछ ऐसा ही आगाज किया है जिला मुख्यालय से दस किलोमीटर दूर मोहनपुर गाँव के लाल राजकिशोर रंजन ने, जिन्होंने अपनी माँ की मौत के बाद श्राद्ध भोज नही करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया तथा गाँव के उस विद्यालय को उन्होंने दस लाख रुपये भवन निर्माण के लिए दे दिए जिसमे उन्होंने बचपन मे शिक्षा हासिल की थी।


Body:vo-अपने मां पिता के एकलौते पुत्र राजकिशोर रंजन समृद्ध किसान परिवार से आते हैं वैसे तो राजकिशोर रंजन कुछ वर्षों तक सरकारी सेवा में भी रहे लेकिन घर गृहस्थी और अपनी मां की सेवा के लिए उन्होंने बाद में सरकारी नौकरी छोड़ दी।इस बीच जब वो गाँव मे रहने लगे तो सरकारी विद्यालय की दुर्दशा को देखकर जनसहयोग से विद्यालयो की स्थिति के सुधार में जुट गए जिसमे उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली।चूंकि राजकिशोर रंजन अपने गाँव के प्राथमिक से लेकर उच्यविद्यालय तक को अत्याधुनिक सुविधाओं से लेश करना चाहते थे और इसमें बहुत बड़ी धनराशि की आवश्यकता ग्रामीणों को महसूस हुई जिसपर राजकिशोर रंजन ने कहा था समय आने पर सब हो जाएगा ।इसी बीच चार दिन पूर्व राजकिशोर रंजन की 85 वर्षीय माँ जानकी देवी की मौत हो गयी।हिन्दू धर्म के अनुरूप मां की मृत्योपरांत भोज के लिए कतिपय लोगों द्वारा राजकिशोर रंजन पर दबाब बढ़ने लगा।राजकिशोर रंजन ने ग्रामीणों की एक बैठक बुलाई और एक प्रस्ताव रखा।राजकिशोर रंजन ने कहा ग्रामीणों को आपत्ति नही हो तो वो श्राद्ध भोज नही करेंगे और इससे बचाये गए दस लाख रुपये वो विद्यालय के भवन निर्माण में लगा देंगे ।राजकिशोर रंजन के इस प्रस्ताव को ग्रामीणों ने प्रेरणा स्रोत मानते हुए भरपूर समर्थन दिया।राजकिशोर मानते है जैसे कोई ब्यक्ति अपने घर के प्रति जबाबदेह और समर्पित होते हैं उसी तरह उन्हें अपने गाँव मुहल्ले के उस विद्यालय के प्रति भी समर्पित होना चाहिए और ऐसा प्रयाश करना चाहिए जिससे विद्यालय की स्थिति में ब्यापक सुधार हो सके।राजकिशोर के मुताबिक वो हिन्दू धर्म के अनुरूप ब्यक्ति के मृत्योपरांत होने वाले विधि विधान के विरोधी नही है वो होना चाहिए लेकिन भोज के कारण होने वाले अनावश्यक खर्च को किसी सकारात्मक कार्य मे लगाना चाहिए।
वन टू वन विथ राजकिशोर रंजन
vo-राजकिशोर रंजन के इस ऐतिहासिक फैसले से गाँव के लोग काफी उत्साहित हैं उनके मुताबिक पुरानी रूढ़िवादी परमपरायें टूटने के लिए ही होती है और जब किसी नेक काम के लिए कोई ऐतिहासिक फैसला लिया जाता है तो इसका असर ब्यापक होता है ।ग्रामीणों के मुताबिक गाँव मे अब कई ऐसे लोग खड़े हो गए हैं जो भविष्य में राजकिशोर रंजन के रास्ते पर चलने को तैयार बैठे हैं।
बाइट-रघुवीर सिंह,ग्रामीण
बाइट-उदय सिंह,ग्रामीण


Conclusion:fvo-इतना तय है राजकिशोर रंजन ने जो ऐतिहासिक फैसला लिया है उसके दूरगामी परिणाम हमे भविष्य में देखने को मिलेंगे लेकिन जिस इच्छाशक्ति से उन्होंने इतना बड़ा फैसला लिया है वो बेमिशाल है।

नोट-मैंने इसमें vo इसलिए नही किया है ताकि स्टूडियो का vo इस खबर में जान ला देगा।
Last Updated : Jul 7, 2019, 8:47 PM IST
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