बेगूसराय: 'परिवर्तन ही संसार का नियम है' कहा जाता है, अगर इंसान की इच्छाशक्ति मजबूत हो तो सदियों पुरानी परम्परा टूटते देर नहीं लगती. जिले के राजकिशोर रंजन ने कुछ ऐसा ही आगाज किया है. उन्होंने अपनी मां की मौत के बाद मृत्यु भोज देने की बजाए 10 लाख रुपये का अनुदान दिया है. उन्होंने यह रुपये स्कूल के निर्माण कराने के लिए दिए हैं.
गांव वालों की नजर में ऐतिहासिक निर्णय
मामला जिला मुख्यालय से दस किलोमीटर दूर स्थित मोहनपुर गांव का है. श्राद्ध भोज की बजाए स्कूल निर्माण के लिए 10 लाख दान करने के फैसले को गांव वाले ऐतिहासिक निर्णय करार दे रहे हैं. मालूम हो कि यह वही स्कूल है, जहां राजकिशोर ने बचपन में शिक्षा ली थी.
माता-पिता के लिए छोड़ी सरकारी नौकरी
जिले के राजकिशोर मां-पिता के एकलौते पुत्र हैं. वह समृद्ध किसान परिवार से आते हैं. उन्होंने कुछ वर्षों तक सरकारी सेवा की. लेकिन, घर-गृहस्थी और अपनी मां की सेवा के लिए उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी. बाद में जब वह गांव लौटे तो सरकारी विद्यालय की दुर्दशा देखकर जन सहयोग देने की ठानी. तब से वह विद्यालयों की स्थिति सुधारने में जुट गए. जिसमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली.
चार दिनों पहले हुई मां की मौत
चूंकि राजकिशोर रंजन अपने गांव के विद्यालयों को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस करना चाहते थे. जिसके लिए बहुत बड़ी धनराशि की आवश्यकता थी. इस आवश्यकता पर राजकिशोर रंजन ने कहा था कि समय आने पर सब हो जाएगा. चार दिन पहले राजकिशोर रंजन की 85 वर्षीय मां जानकी देवी की मौत हो गयी. उसके बाद उन्होंने ग्रामीणों की एक बैठक बुलाई और प्रस्ताव रखा.
ग्रामीणों के समक्ष रखा प्रस्ताव
राजकिशोर रंजन ने कहा ग्रामीणों को आपत्ति नहीं हो तो वह श्राद्ध भोज नहीं करेंगे. इसके पैसे को वह विद्यालय के भवन निर्माण में लगा देंगे. राजकिशोर के इस प्रस्ताव को ग्रामीणों ने प्रेरणा स्रोत मानते हुए भरपूर समर्थन दिया.
'घर ही नहीं, देश-समाज के प्रति भी है जिम्मेदारी'
राजकिशोर मानते हैं जिस तरह व्यक्ति घर के प्रति जबाबदेह और समर्पित होता हैं. ठीक उसी तरह उसे गांव, मुहल्ले, समाज के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए. राजकिशोर कहते हैं कि वह हिन्दू धर्म के अनुरूप मरणोपरांत किए जाने वाले विधि-विधान के विरोधी नहीं है. लेकिन, भोज पर होने वाले अनावश्यक खर्च को किसी सकारात्मक कार्य में लगाने के पक्षधर हैं.
ग्रामीणों के मुताबिक राजकिशोर के इस फैसले के बाद गांव में कई ऐसे लोग खड़े हो गए हैं, जो भविष्य में राजकिशोर रंजन के रास्ते पर चलने को तैयार बैठे हैं.