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ब्रेस्टफीडिंग कॉर्नर के अभाव और भ्रांतियों की वजह से मां के दूध से महरूम हो रहे बच्चे- रचना सिन्हा

पुरानी मान्यता है कि नवजात बच्चों के लिए मां का दूध अमृत के समान होता है. बावजूद इसके कुछ तकनीकी और कुछ अन्य कारणों से महिलाएं बच्चों को दूध पिलाने से परहेज कर रही हैं. जिस वजह से जिले में बच्चों के कुपोषण का मामला अब तक समाप्त नहीं हो पाया है.

बेगूसराय
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Published : Jun 13, 2020, 9:24 PM IST

बेगूसराय: जिले में सरकार द्वारा लाख प्रयास के बावजूद कुपोषित बच्चों का मामला पूर्णतया समाप्त नहीं हो पाया है. आलम ये है कि अब भी ग्रामीण इलाकों के साथ-साथ शहरी इलाकों से भी कुपोषण के मामले सामने आ रहे हैं. सरकार और संबंधित विभाग द्वारा प्रयास करने के बाद भी कुछ तकनीकी व्यवधान के कारण नवजात बच्चे मां के दूध से वंचित हो जाते हैं. जिस वजह से आगे चलकर बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं.


शहर की प्रख्यात महिला एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. लीना कुमारी ने बताया कि अध्ययन के अनुसार शहरी इलाकों में सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को ब्रेस्टफीडिंग में काफी परेशानी झेलनी पड़ती है. अब जैसे बेगूसराय शहर को ही देख लें जहां, किसी भी कॉमर्शियल प्लेस, होटल, अस्पताल, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन या अन्य किसी भी कार्यालयों में ब्रेस्टफीडिंग कॉर्नर नहीं बनाए गए हैं. जिस वजह से महिलाएं लोक-लाज से बच्चों को स्तनपान नहीं करा पाती हैं.

बेगूसराय
नौनिहाल

महिलाओं को भ्रांतियों से बचने की सलाह
वहीं, आईसीडीएस की जिला कार्यक्रम पदाधिकारी रचना सिन्हा ने बताया कि स्तनपान के बदले महिलाएं आजकल प्लास्टिक के बोतल में गर्म दूध लेकर साथ चलती हैं, जो काफी हानिकारक साबित होता है. साथ ही इससे असमय ज्यादातर बच्चे बीमार होते रहते हैं. उन्होंने आगे बताया कि मॉडर्न युग में स्तनपान को लेकर कुछ सामाजिक भ्रांतियां भी हैं, जैसे फिगर खराब होने की चिंता में भी कुछ महिलाएं ब्रेस्टफीडिंग कराने से बचना चाहती हैं. जबकि ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं का फिगर खराब हो जाता है, ऐसा कहीं भी प्रमाणित नहीं हुआ है. ये महज भ्रांति है. जिससे महिलाओं को बचना चाहिए.

बेगूसराय
प्रख्यात महिला एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. लीना कुमारी

ईटीवी भारत संवाददाता ने जिले के आईसीडीएस की डीपीओ रचना सिन्हा और शहर की प्रख्यात महिला एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. लीना कुमारी ने ब्रेस्टफीडिंग को लेकर खास चर्चा की. जिसमें उन्होंने मां का दूध बच्चों के लिए क्यों आवश्यक है और ब्रेस्टफीडिंग के फायदे को विस्तार पूर्वक बताया.

जन्म के बाद से लेकर 2 साल तक नवजात के लिए मां का दूध क्यों आवश्यक है ?

● मां का पहला दूध कोलोस्ट्रम होता है. यह पीले रंग का गाढ़ा चिपचिपा सा पदार्थ होता है.

● विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस दूध को बच्चों की सेहत के लिए जरूरी मानता है.

● ब्रेस्टफीडिंग बच्चों को शुरुआती संक्रमण और बीमारियों से सुरक्षित रखता है.

● मां का दूध बच्चों को डायरिया, निमोनिया और बड़े होने पर डायबिटीज से बचाता है.

● मां के दूध के कारण सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम (SIDS), ल्यूकेमिया, मोटापा, दिल से जुड़ी बीमारी, कैंसर आदि रोगों से बचाता है.

● मां का दूध इसलिए भी आवश्यक है कि बाजार में बिकने वाले फॉर्मूला मिल्क में वह एंटीबायोटिक नहीं होते जो मां के दूध में पाए जाते हैं.

बच्चों को दूध पिलाने का तरीका

● नवजात को जन्म के 1 घंटे के अंदर मां का दूध अवश्य पिलाना चाहिए.

● बच्चे को 6 माह तक सिर्फ और सिर्फ मां का ही दूध देना चाहिए.

● बच्चे को 2 साल तक मां को दूध पिलाना चाहिए लेकिन 6 माह के बाद मामूली आहार भी शुरू करना चाहिए.

● जन्म के पहले सप्ताह बच्चे को हर घंटे या 2 घंटे पर मां को दूध पिलाना चाहिए.

● बच्चे को दूध चाहिए इसके पहचान समझने की जरूरत है. बच्चा बेचैन नजर आए, उंगलियां मुंह में डाले, मुंह से आवाज निकालने की कोशिश करे ऐसे लक्षण दिखे तो मां को अभिलंब स्तनपान कराना चाहिए.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट
स्तनपान न सिर्फ बच्चों के लिए आवश्यक है बल्कि मां के लिए भी उतना ही लाभकारी है. जानें क्या हैं फायदे?
●बच्चों को 2 साल तक दूध पिलाने से ब्रेस्ट कैंसर होने का खतरा नहीं होता है.● ओवेरियन कैंसर होने का खतरा समाप्त हो जाता है.● कार्डियोवैस्कुलर डिजीज नहीं होते हैं और मोटापा नहीं होता है.●परिवार नियोजन या बच्चों के बीच अंतर के लिए भी स्तनपान आवश्यक है क्योंकि मां जब तक बच्चे को दूध पिलाती रहेंगी, तब तक उनके गर्भधारण की संभावना काफी कम होती है.
बेगूसराय
डीपीओ (ICDS) बेगूसराय रचना सिन्हा
विशेषज्ञों के अनुसार महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर हो रही ब्रेस्टफीडिंग की असुविधा को स्थानीय प्रशासन और सरकार को भी प्रमुखता से लेना चाहिए. ऐसे सभी स्थानों पर ब्रेस्टफीडिंग कॉर्नर बनाए जाने चाहिए. जहां, महिलाएं बेफिक्र होकर अपने नवजात को स्तनपान करा सकें. तब कहीं जाकर समाज कुपोषण मुक्त हो पाएगा.

बेगूसराय: जिले में सरकार द्वारा लाख प्रयास के बावजूद कुपोषित बच्चों का मामला पूर्णतया समाप्त नहीं हो पाया है. आलम ये है कि अब भी ग्रामीण इलाकों के साथ-साथ शहरी इलाकों से भी कुपोषण के मामले सामने आ रहे हैं. सरकार और संबंधित विभाग द्वारा प्रयास करने के बाद भी कुछ तकनीकी व्यवधान के कारण नवजात बच्चे मां के दूध से वंचित हो जाते हैं. जिस वजह से आगे चलकर बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं.


शहर की प्रख्यात महिला एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. लीना कुमारी ने बताया कि अध्ययन के अनुसार शहरी इलाकों में सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को ब्रेस्टफीडिंग में काफी परेशानी झेलनी पड़ती है. अब जैसे बेगूसराय शहर को ही देख लें जहां, किसी भी कॉमर्शियल प्लेस, होटल, अस्पताल, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन या अन्य किसी भी कार्यालयों में ब्रेस्टफीडिंग कॉर्नर नहीं बनाए गए हैं. जिस वजह से महिलाएं लोक-लाज से बच्चों को स्तनपान नहीं करा पाती हैं.

बेगूसराय
नौनिहाल

महिलाओं को भ्रांतियों से बचने की सलाह
वहीं, आईसीडीएस की जिला कार्यक्रम पदाधिकारी रचना सिन्हा ने बताया कि स्तनपान के बदले महिलाएं आजकल प्लास्टिक के बोतल में गर्म दूध लेकर साथ चलती हैं, जो काफी हानिकारक साबित होता है. साथ ही इससे असमय ज्यादातर बच्चे बीमार होते रहते हैं. उन्होंने आगे बताया कि मॉडर्न युग में स्तनपान को लेकर कुछ सामाजिक भ्रांतियां भी हैं, जैसे फिगर खराब होने की चिंता में भी कुछ महिलाएं ब्रेस्टफीडिंग कराने से बचना चाहती हैं. जबकि ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं का फिगर खराब हो जाता है, ऐसा कहीं भी प्रमाणित नहीं हुआ है. ये महज भ्रांति है. जिससे महिलाओं को बचना चाहिए.

बेगूसराय
प्रख्यात महिला एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. लीना कुमारी

ईटीवी भारत संवाददाता ने जिले के आईसीडीएस की डीपीओ रचना सिन्हा और शहर की प्रख्यात महिला एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. लीना कुमारी ने ब्रेस्टफीडिंग को लेकर खास चर्चा की. जिसमें उन्होंने मां का दूध बच्चों के लिए क्यों आवश्यक है और ब्रेस्टफीडिंग के फायदे को विस्तार पूर्वक बताया.

जन्म के बाद से लेकर 2 साल तक नवजात के लिए मां का दूध क्यों आवश्यक है ?

● मां का पहला दूध कोलोस्ट्रम होता है. यह पीले रंग का गाढ़ा चिपचिपा सा पदार्थ होता है.

● विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस दूध को बच्चों की सेहत के लिए जरूरी मानता है.

● ब्रेस्टफीडिंग बच्चों को शुरुआती संक्रमण और बीमारियों से सुरक्षित रखता है.

● मां का दूध बच्चों को डायरिया, निमोनिया और बड़े होने पर डायबिटीज से बचाता है.

● मां के दूध के कारण सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम (SIDS), ल्यूकेमिया, मोटापा, दिल से जुड़ी बीमारी, कैंसर आदि रोगों से बचाता है.

● मां का दूध इसलिए भी आवश्यक है कि बाजार में बिकने वाले फॉर्मूला मिल्क में वह एंटीबायोटिक नहीं होते जो मां के दूध में पाए जाते हैं.

बच्चों को दूध पिलाने का तरीका

● नवजात को जन्म के 1 घंटे के अंदर मां का दूध अवश्य पिलाना चाहिए.

● बच्चे को 6 माह तक सिर्फ और सिर्फ मां का ही दूध देना चाहिए.

● बच्चे को 2 साल तक मां को दूध पिलाना चाहिए लेकिन 6 माह के बाद मामूली आहार भी शुरू करना चाहिए.

● जन्म के पहले सप्ताह बच्चे को हर घंटे या 2 घंटे पर मां को दूध पिलाना चाहिए.

● बच्चे को दूध चाहिए इसके पहचान समझने की जरूरत है. बच्चा बेचैन नजर आए, उंगलियां मुंह में डाले, मुंह से आवाज निकालने की कोशिश करे ऐसे लक्षण दिखे तो मां को अभिलंब स्तनपान कराना चाहिए.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट
स्तनपान न सिर्फ बच्चों के लिए आवश्यक है बल्कि मां के लिए भी उतना ही लाभकारी है. जानें क्या हैं फायदे?
●बच्चों को 2 साल तक दूध पिलाने से ब्रेस्ट कैंसर होने का खतरा नहीं होता है.● ओवेरियन कैंसर होने का खतरा समाप्त हो जाता है.● कार्डियोवैस्कुलर डिजीज नहीं होते हैं और मोटापा नहीं होता है.●परिवार नियोजन या बच्चों के बीच अंतर के लिए भी स्तनपान आवश्यक है क्योंकि मां जब तक बच्चे को दूध पिलाती रहेंगी, तब तक उनके गर्भधारण की संभावना काफी कम होती है.
बेगूसराय
डीपीओ (ICDS) बेगूसराय रचना सिन्हा
विशेषज्ञों के अनुसार महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर हो रही ब्रेस्टफीडिंग की असुविधा को स्थानीय प्रशासन और सरकार को भी प्रमुखता से लेना चाहिए. ऐसे सभी स्थानों पर ब्रेस्टफीडिंग कॉर्नर बनाए जाने चाहिए. जहां, महिलाएं बेफिक्र होकर अपने नवजात को स्तनपान करा सकें. तब कहीं जाकर समाज कुपोषण मुक्त हो पाएगा.
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