बेगूसराय: 'क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, उसको क्या जो दंतहीन विषहीन, विनीत सरल हो'. हिंदी साहित्य में देश प्रेम के कविताओं के लिए जाने-जाने वाले रामधारी सिंह दिनकर को किसी परिचय की जरूरत नहीं है. एक साधारण किसान परिवार में जन्म लेकर राष्ट्रकवि दिनकर की उपाधि, राज्यसभा सदस्य, पद्मभूषण पुरस्कार जैसी तमाम उपलब्धियां उन्होंने अपने व्यक्तित्व और विद्वता के बल पर अर्जित किए. उनकी पुण्यतिथि पर देश आज उन्हें याद कर रहा है.
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म वर्ष 1908 ई में तत्कालीन मुंगेर जिला और वर्तमान बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था. साधारण किसान परिवार में जन्मे रामधारी सिंह दिनकर के पिता का नाम रवि सिंह और माता का नाम मनरूप देवी था. रामधारी सिंह दिनकर की प्रारंभिक शिक्षा गांव के प्राथमिक विद्यालय में हुई, जिसके बाद उन्होंने पटना में स्नातक स्तरीय पढ़ाई पूर्ण की. रामधारी सिंह दिनकर हिंदी के प्रमुख कवि और निबंधकार थे, वो आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि थे और उनके द्वारा रचित कविताएं आज भी अमर है.
उन्होंने इतिहास, दर्शन शास्त्र और राजनीतिक विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्व विद्यालय से पूरी की थी. संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का भी उन्होंने गहन अध्ययन किया था. उनकी कविता से राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा मिलता था. देशभक्ति पूर्ण रचना के कारण ही उन्हें राष्ट्रकवि दिनकर की उपाधि से आम लोगों ने सम्मानित किया था. उनकी लेखनी क्रांतिकारी आंदोलन का समर्थक थी, लेकिन बाद में गांधीजी से प्रभावित होकर वो गांधीवादी हो गए.
पद्म भूषण से किया गया था सम्मानित
दिनकर जी अप्रैल 1952 से 26 जनवरी 1964 तक लगातार राज्यसभा के सदस्य रहे. बाद में 1964 से 1965 तक भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति बनाए गए. वर्ष 1959 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. आपातकाल के दौरान जयप्रकाश नारायण ने रामलीला मैदान में लाखों लोगों की एक सभा में रामधारी सिंह दिनकर की कविता का पाठ कर जनता का मन मोह लिया शीर्षक था 'सिंहासन खाली करो जनता आ रही है'.
2008 में संसद के केंद्रीय हॉल में लगाई गई थी तस्वीर
रामधारी सिंह दिनकर की प्रमुख कृतियों में कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, उर्वशी, हुंकार, संस्कृति के चार अध्याय, परशुराम की प्रतीक्षा, हाहाकार आदि प्रमुख रचनाएं थी. रामधारी सिंह दिनकर की मृत्यु 24 अप्रैल 1974 को तमिलनाडु के मद्रास में हुई थी. उनके कविताओं और देश के प्रति समर्पण भाव के कारण मरणोपरांत कई सम्मान दिए गए, जिसमें प्रमुख हैं वर्ष 1999 में भारत सरकार के द्वारा उनके नाम का डाक टिकट जारी करना और वर्ष 2008 में संसद के केंद्रीय हॉल में उनकी तस्वीर लगाया गया.
मक्के की रोटी और भैंस का दूध होता था उनका आहार
राष्ट्रकवि दिनकर की पुण्यतिथि के अवसर पर ईटीवी भारत की टीम ने उनके पैतृक गांव सिमरिया का दौरा किया और यह जानने का प्रयास किया की दिनकर जी से उस गांव की यादें किस तरह जुड़ी हुई हैं. दिनकर जी के भतीजे नरेश सिंह बताते हैं कि वो बिल्कुल ही साधारण परिवार से थे, जिस वजह से उनकी जीवनशैली भी बिल्कुल साधारण थी. गांव जब भी आते तो मक्के की रोटी और भैंस का दूध ही उनका प्रमुख आहार होता था.
अपने गांव का नाम किया रोशन
नरेश सिंह ने बताया कि पढ़ने के लिए वह काफी लालायित रहते थे, बचपन में पिता की मौत ने उन्हें फौलादी इरादों का बना दिया था. उन्होंने अपने मन में एक लक्ष्य स्थापित किया था कि उन्हें पढ़ लिखकर अपने पिता और अपने गांव का नाम रोशन करना है.
परिजन ने बताया कि जिस जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें लगातार राज्यसभा सदस्य बनाया, जब देश के हित की बात आई. तो उसी संसद में जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ भी उन्होंने काव्य पाठ करने से परहेज नहीं किया. इस वजह से जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया था, जिसका कभी भी मलाल उनके चेहरे पर देखने को नहीं मिला.