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यहां मां सिद्धिदात्री और मंगला स्वरूप की होती है पूजा, 52 शक्तिपीठों में से है एक

मंझौल प्रखंड स्थित ये मंदिर देश के 52 शक्तिपीठों में शुमार है. मंदिर के पुजारी शम्भू बाबा का कहना है कि इस स्थान में मां के मंगलकारी रूप 'माता जयमंगला' की पूजा आदिकाल से होती आ रही है. यहां देवी सती का वाम स्कंध गिरा था.

जयमंगला स्थान में उमड़ी भक्तों की भीड़
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Published : Oct 5, 2019, 4:45 PM IST

बेगूसराय: मां दुर्गा का पट खुलते ही दुर्गा मंदिर में माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है. जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर मंझौल प्रखंड अंतर्गत जयमंगला मंदिर में मां शक्ति स्वरूपा का पट खुलने के बाद हजारों की संख्या में भक्तों ने मां दुर्गा की पूजा अर्चना की.

देश के 52 शक्तिपीठों में है शुमार
मंझौल प्रखंड स्थित यह मंदिर देश के 52 शक्तिपीठों में शुमार है. मंदिर के पुजारी शम्भू बाबा का कहना है कि इस स्थान में मां के मंगलकारी रूप 'माता जयमंगला' की पूजा आदिकाल से होती आ रही है. यहां देवी सती का वाम स्कंध गिरा था. इस मंदिर की खास बात ये है कि यहां पर 'रक्तिम बलि' की प्रथा नहीं है. पूरे नवरात्र यहां सप्तशती का पाठ चलता है. जिसकी पूर्णाहुति हवन से होती है.

जयमंगला माता
जयमंगला माता

शारदीय नवरात्री में किया जाता है विशेष पूजन
मंदिर के पुरोहित का कहना है कि शारदीय नवरात्री में यहां पर कलश स्थापना के बाद प्रत्येक दिन पंडितों के समूह द्वारा 'संपुट शप्तशती' का पाठ किया जाता है. कुछ स्थानीय श्रद्धालु मंदिर परिसर में संकल्प के साथ प्रतिदिन पाठ करते हैं. सप्तमी पूजा के दिन जुड़वां बेल को माता स्वरूप मानकर आमंत्रित किया जाता है. यहां पर अलग पद्धति से वर्षो से पूजा होती आ रही है. 'बिल्वाभिमंत्रण' के बाद रक्तविहीन बलि दी जाती है. जिसके बाद महाष्टमी की रात में निशा पूजा का आयोजन होता है. जो यहां की सबसे प्रसिद्ध पूजा मानी जाती है. अंत में जाकर मां के दर्शन के लिए पट खुलता है. मां का खोंइछा भरने के साथ ही हवन कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना सदैव पूर्ण होती है.

पूजा करते श्रद्धालु
पूजा करते श्रद्धालु

फूल-अक्षत से प्रसन्न होती है मां भगवती
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां रक्तविहीन पूजा होती है. मां भगवती पुष्प, जल, अक्षत से ही प्रसन्न हो जाती है. रक्तिम बलि की प्रथा नहीं है. मंदिर के पुजारियों का कहना है कि नवरात्रा में मंदिर परिसर में जप, पाठ पूजन से मनोवांछित फल मिलता है. यहां सालों भर मंगलवार और शनिवार को भक्तों की भीड़ रहती है.

जयमंगला स्थान,बेगूसराय
जयमंगला स्थान,बेगूसराय

मंदिर का है पौराणिक महत्व
दंतकथाओं के अनुसार भगवान शिव राजा दक्ष के पुत्री सती से भगवान शिव ने विवाह किया था. इस बात से रूष्ट होकर राजा दक्ष ने अभिमान में शिव जी का निरादर किया. जिसके बाद माता सती बेहद ही क्रोधित हो उठी और उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी. तब भगवान शिव माता सती का शरीर लेकर वियोग में दर-दर भटकने लगे. जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने च्रक से माता सती के शरीर को खंड- खंड कर दिया. जो 51 अलग-अलग जगहों पर गिरा. इस प्रकार से 51 स्थानों पर शक्तिपीठ का निर्माण हुआ.

पेश है एक रिपोर्ट

भगवान बुद्ध भी आए थे यहां
इतिहासकार डॉ. राधाकृष्ण चौधरी के अनुसार प्राचीन काल में यह स्थान शासन की एक इकाई के रूप में प्रसिद्ध था. यहां से कुछ दूरी पर नोलागढ़ पाल वंश के राजाओं के शासनकाल की प्रमुख प्रशासनिक इकाई थी. इस स्थान पर भगवान बुद्ध भी आए थे. मंदिर के अंदर प्रवेश द्वार पर भगवान बुद्ध की प्रतिमा लगी हुई है. महाभारत काल के अंगराज कर्ण गंगा नदी पार कर इस मंदिर पर पूजा अर्चना को आते थे. 14 कोस में फैले इस जगह पर पहले जंगली जानवरों के अलावा काफी संख्या में बंदर रहते थे. जिस कारण अंग्रेज शासकों ने जयमंगला गढ़ का नाम 'मंकी आईलैंड' रख दिया था. जयमाला गढ़ के इलाके में महाभारत काल से लेकर पाल वंश, मौर्य और गुप्त वंश के शासनकाल के अवशेष मिले हैं, जो प्रमाणित करते हैं कि यह मंदिर आदिकाल से इस स्थान पर स्थापित है.

बेगूसराय: मां दुर्गा का पट खुलते ही दुर्गा मंदिर में माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है. जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर मंझौल प्रखंड अंतर्गत जयमंगला मंदिर में मां शक्ति स्वरूपा का पट खुलने के बाद हजारों की संख्या में भक्तों ने मां दुर्गा की पूजा अर्चना की.

देश के 52 शक्तिपीठों में है शुमार
मंझौल प्रखंड स्थित यह मंदिर देश के 52 शक्तिपीठों में शुमार है. मंदिर के पुजारी शम्भू बाबा का कहना है कि इस स्थान में मां के मंगलकारी रूप 'माता जयमंगला' की पूजा आदिकाल से होती आ रही है. यहां देवी सती का वाम स्कंध गिरा था. इस मंदिर की खास बात ये है कि यहां पर 'रक्तिम बलि' की प्रथा नहीं है. पूरे नवरात्र यहां सप्तशती का पाठ चलता है. जिसकी पूर्णाहुति हवन से होती है.

जयमंगला माता
जयमंगला माता

शारदीय नवरात्री में किया जाता है विशेष पूजन
मंदिर के पुरोहित का कहना है कि शारदीय नवरात्री में यहां पर कलश स्थापना के बाद प्रत्येक दिन पंडितों के समूह द्वारा 'संपुट शप्तशती' का पाठ किया जाता है. कुछ स्थानीय श्रद्धालु मंदिर परिसर में संकल्प के साथ प्रतिदिन पाठ करते हैं. सप्तमी पूजा के दिन जुड़वां बेल को माता स्वरूप मानकर आमंत्रित किया जाता है. यहां पर अलग पद्धति से वर्षो से पूजा होती आ रही है. 'बिल्वाभिमंत्रण' के बाद रक्तविहीन बलि दी जाती है. जिसके बाद महाष्टमी की रात में निशा पूजा का आयोजन होता है. जो यहां की सबसे प्रसिद्ध पूजा मानी जाती है. अंत में जाकर मां के दर्शन के लिए पट खुलता है. मां का खोंइछा भरने के साथ ही हवन कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना सदैव पूर्ण होती है.

पूजा करते श्रद्धालु
पूजा करते श्रद्धालु

फूल-अक्षत से प्रसन्न होती है मां भगवती
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां रक्तविहीन पूजा होती है. मां भगवती पुष्प, जल, अक्षत से ही प्रसन्न हो जाती है. रक्तिम बलि की प्रथा नहीं है. मंदिर के पुजारियों का कहना है कि नवरात्रा में मंदिर परिसर में जप, पाठ पूजन से मनोवांछित फल मिलता है. यहां सालों भर मंगलवार और शनिवार को भक्तों की भीड़ रहती है.

जयमंगला स्थान,बेगूसराय
जयमंगला स्थान,बेगूसराय

मंदिर का है पौराणिक महत्व
दंतकथाओं के अनुसार भगवान शिव राजा दक्ष के पुत्री सती से भगवान शिव ने विवाह किया था. इस बात से रूष्ट होकर राजा दक्ष ने अभिमान में शिव जी का निरादर किया. जिसके बाद माता सती बेहद ही क्रोधित हो उठी और उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी. तब भगवान शिव माता सती का शरीर लेकर वियोग में दर-दर भटकने लगे. जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने च्रक से माता सती के शरीर को खंड- खंड कर दिया. जो 51 अलग-अलग जगहों पर गिरा. इस प्रकार से 51 स्थानों पर शक्तिपीठ का निर्माण हुआ.

पेश है एक रिपोर्ट

भगवान बुद्ध भी आए थे यहां
इतिहासकार डॉ. राधाकृष्ण चौधरी के अनुसार प्राचीन काल में यह स्थान शासन की एक इकाई के रूप में प्रसिद्ध था. यहां से कुछ दूरी पर नोलागढ़ पाल वंश के राजाओं के शासनकाल की प्रमुख प्रशासनिक इकाई थी. इस स्थान पर भगवान बुद्ध भी आए थे. मंदिर के अंदर प्रवेश द्वार पर भगवान बुद्ध की प्रतिमा लगी हुई है. महाभारत काल के अंगराज कर्ण गंगा नदी पार कर इस मंदिर पर पूजा अर्चना को आते थे. 14 कोस में फैले इस जगह पर पहले जंगली जानवरों के अलावा काफी संख्या में बंदर रहते थे. जिस कारण अंग्रेज शासकों ने जयमंगला गढ़ का नाम 'मंकी आईलैंड' रख दिया था. जयमाला गढ़ के इलाके में महाभारत काल से लेकर पाल वंश, मौर्य और गुप्त वंश के शासनकाल के अवशेष मिले हैं, जो प्रमाणित करते हैं कि यह मंदिर आदिकाल से इस स्थान पर स्थापित है.

Intro:एंकर- देश के 52 शक्तिपीठों में से एक बेगूसराय स्थित माता जयमंगला का मंदिर सदियों से हिंदू धर्मावलंबियों के लिए आस्था का प्रतीक है ।पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक भगवान शिव के अनादर पर माता सती ने जब अग्नि में आहुति दी तो भगवान शिव निशप्राण माता के शरीर को लेकर तांडव नृत्य करने लगे, जिनके क्रोध को शांत करने के लिए विष्णु ने माता के शरीर को सुदर्शन चक्र से खंडित किया तो माता का स्तन इसी स्थान पर गिरा था तब से लेकर आज तक यह मंदिर लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। इतिहासकारों के मुताबिक भगवान बुध और गौतम ऋषि जैसे महापुरुष भी यहां आकर माता का पूजा अर्चना किया करते थे।



Body:vo- बेगूसराय जिला मुख्यालय से सुदूर 25 किलोमीटर दूर मंझौल प्रखंड अंतर्गत जयमंगला गढ़ स्थित जय मंगला माता का मंदिर बिल्कुल ही निर्जन स्थान पर अवस्थित है ।चारों ओर सैकड़ों एकड़ में फैले कावर झील प्रक्षेत्र का होना माता मंदिर की छटा को अलौकिक बनाता है ।इस वजह से ना सिर्फ पूजा-पाठ के लिए लोग इस स्थान पर खींचे चले आते हैं बल्कि यहां की सुंदर और मनमोहक छटा को देखने के लिए भी लोग लालायित होते हैं।माता की मूर्ति काले पत्थर की अर्धनिर्मित एवं एक पैर पर खड़ी मूर्ति है। प्रत्येक मंगलवार को हजारो की संख्या में श्रद्धालु मंगला माता की पूजा अर्चना को आते हैं।नवरात्र के अवसर पर यहां हर रोज अलग पूजन प्रक्रिया से मां की भब्य पूजा की जाती है।इतिहासकारों के मुताबिक पहले यह गढ़ प्राकृतिक सुषमा से अलंकृत था। गढ़ के चारों ओर कावर झील थी। झील में कमल के बड़े-बड़े फूल खिलते थे। अति प्राचीन काल में यह स्थान शासन की एक इकाई के रूप में प्रसिद्ध था। इस गढ़ से कुछ दूरी पर नोलागढ़ है जो पाल वंश के राजाओं के शासनकाल में एक प्रमुख प्रशासनिक इकाई थी। कई इतिहासकारों ने अपनी किताबों में यह वर्णन किया है कि इस स्थान पर महात्मा बुध भी आए थे जिसके बाद इस इलाके में बौद्ध धर्मावलंबियों की संख्या बढ़ी थी और मंदिर के अंदर प्रवेश द्वार पर महात्मा बुध की एक प्रतिमा भी लगी है ।धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मावेदांत पुराण (प्रकृति खंड) के 44 वें अध्याय एवं एवं देवी भागवत पुराण( नवम स्कंध के) 47 वें अध्याय में मंगला देवी का वर्णन है ।इन दोनों धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आदि काल में त्रिपुर दैत्य के वध करने के लिए भगवान विष्णु के कहने पर भगवान शिव द्वारा प्रार्थना के पश्चात मंगला देवी प्रकट हुई और उन्होंने त्रिपुर राक्षस का संहार किया। इसी समय वसहा के रूप में भगवान विष्णु को अवतरित होना पड़ा था ।अंगराज कर्ण कई बार गंगा नदी के सहारे मुंगेर से इस मंदिर पर पूजा अर्चना को आया करते थे। इतिहासकार डॉक्टर राधाकृष्ण चौधरी के अनुसार 14 कोसों में फैली विशाल कावर झील के बीच लगभग 400 बीघे का यह द्वीप जंगलों से भरा था। यहां अनगिनत जंगली जानवरों के अलावा काफी संख्या में बंदर निवास करते थे बंदरों की संख्या यहां इतनी अधिक थी कि मुंगेर जिला गजेटियर के अनुसार तत्कालीन अंग्रेज शासकों ने जयमंगला गढ़ का नाम वानर द्वीप यानी कि मंकी आईलैंड रख दिया था। जयमाला गढ़ के इलाके में महाभारत काल से लेकर पाल वंश और मौर्य और गुप्त वंश के शासनकाल के बृहत पैमाने पर अवशेष मिले हैं जो प्रमाणित करते हैं कि यह मंदिर आदिकाल से इस स्थान पर स्थापित है।
वन टू वन विथ शम्भू बाबा,स्थानीय पुजारी
निरंजन सिंह,संयोजक, जयमंगला पूजा समिति



Conclusion:fvo- इतना तय है की पौराणिक इतिहास मनमोहक आकर्षक प्राकृतिक छटा रहने के बावजूद भी सरकारी उपेक्षा के कारण अभी तक इसे बड़े पर्यटक स्थल के रूप में विकसित नहीं किया जा सका है अगर सरकार इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित कर दें तो ना सिर्फ यहां स्वरोजगार के अवसर बढ़ेंगे माता तक पहुंचने की लालसा पाले भक्तों का उस दुर्गम इलाके में जाना भी आसान हो जाएगा।
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