बेगूसराय: मां दुर्गा का पट खुलते ही दुर्गा मंदिर में माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है. जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर मंझौल प्रखंड अंतर्गत जयमंगला मंदिर में मां शक्ति स्वरूपा का पट खुलने के बाद हजारों की संख्या में भक्तों ने मां दुर्गा की पूजा अर्चना की.
देश के 52 शक्तिपीठों में है शुमार
मंझौल प्रखंड स्थित यह मंदिर देश के 52 शक्तिपीठों में शुमार है. मंदिर के पुजारी शम्भू बाबा का कहना है कि इस स्थान में मां के मंगलकारी रूप 'माता जयमंगला' की पूजा आदिकाल से होती आ रही है. यहां देवी सती का वाम स्कंध गिरा था. इस मंदिर की खास बात ये है कि यहां पर 'रक्तिम बलि' की प्रथा नहीं है. पूरे नवरात्र यहां सप्तशती का पाठ चलता है. जिसकी पूर्णाहुति हवन से होती है.
शारदीय नवरात्री में किया जाता है विशेष पूजन
मंदिर के पुरोहित का कहना है कि शारदीय नवरात्री में यहां पर कलश स्थापना के बाद प्रत्येक दिन पंडितों के समूह द्वारा 'संपुट शप्तशती' का पाठ किया जाता है. कुछ स्थानीय श्रद्धालु मंदिर परिसर में संकल्प के साथ प्रतिदिन पाठ करते हैं. सप्तमी पूजा के दिन जुड़वां बेल को माता स्वरूप मानकर आमंत्रित किया जाता है. यहां पर अलग पद्धति से वर्षो से पूजा होती आ रही है. 'बिल्वाभिमंत्रण' के बाद रक्तविहीन बलि दी जाती है. जिसके बाद महाष्टमी की रात में निशा पूजा का आयोजन होता है. जो यहां की सबसे प्रसिद्ध पूजा मानी जाती है. अंत में जाकर मां के दर्शन के लिए पट खुलता है. मां का खोंइछा भरने के साथ ही हवन कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना सदैव पूर्ण होती है.
फूल-अक्षत से प्रसन्न होती है मां भगवती
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां रक्तविहीन पूजा होती है. मां भगवती पुष्प, जल, अक्षत से ही प्रसन्न हो जाती है. रक्तिम बलि की प्रथा नहीं है. मंदिर के पुजारियों का कहना है कि नवरात्रा में मंदिर परिसर में जप, पाठ पूजन से मनोवांछित फल मिलता है. यहां सालों भर मंगलवार और शनिवार को भक्तों की भीड़ रहती है.
मंदिर का है पौराणिक महत्व
दंतकथाओं के अनुसार भगवान शिव राजा दक्ष के पुत्री सती से भगवान शिव ने विवाह किया था. इस बात से रूष्ट होकर राजा दक्ष ने अभिमान में शिव जी का निरादर किया. जिसके बाद माता सती बेहद ही क्रोधित हो उठी और उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी. तब भगवान शिव माता सती का शरीर लेकर वियोग में दर-दर भटकने लगे. जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने च्रक से माता सती के शरीर को खंड- खंड कर दिया. जो 51 अलग-अलग जगहों पर गिरा. इस प्रकार से 51 स्थानों पर शक्तिपीठ का निर्माण हुआ.
भगवान बुद्ध भी आए थे यहां
इतिहासकार डॉ. राधाकृष्ण चौधरी के अनुसार प्राचीन काल में यह स्थान शासन की एक इकाई के रूप में प्रसिद्ध था. यहां से कुछ दूरी पर नोलागढ़ पाल वंश के राजाओं के शासनकाल की प्रमुख प्रशासनिक इकाई थी. इस स्थान पर भगवान बुद्ध भी आए थे. मंदिर के अंदर प्रवेश द्वार पर भगवान बुद्ध की प्रतिमा लगी हुई है. महाभारत काल के अंगराज कर्ण गंगा नदी पार कर इस मंदिर पर पूजा अर्चना को आते थे. 14 कोस में फैले इस जगह पर पहले जंगली जानवरों के अलावा काफी संख्या में बंदर रहते थे. जिस कारण अंग्रेज शासकों ने जयमंगला गढ़ का नाम 'मंकी आईलैंड' रख दिया था. जयमाला गढ़ के इलाके में महाभारत काल से लेकर पाल वंश, मौर्य और गुप्त वंश के शासनकाल के अवशेष मिले हैं, जो प्रमाणित करते हैं कि यह मंदिर आदिकाल से इस स्थान पर स्थापित है.