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बेगूसराय: चुनाव के बाद हो रही आपराधिक घटनाओं में घुल रहे राजनीतिक रंग - अपराध

डीएसपी कुंदन सिंह बताते हैं कि पिछले दिनों हुई सभी हत्याओं की जांच चल रही है. अभी साफ नहीं है कि हत्याओं में राजनीतिक लोग मरे हैं. जिले में पार्टियां एक प्रोपागेंडा के तहत सभी हत्याओं को राजनीतिक रंग-रूप दे रही हैं.

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Published : Jun 15, 2019, 6:15 PM IST

बेगूसराय: जिले में लोकसभा चुनाव के बाद हो रही हिंसाओं को सियासी रंग दिया जा रहा है. चाहे हत्या हो या हिंसा, राजनीतिक दल के लोग इसमें भी सियासी रोटी सेकते नजर आ रहे हैं. हाल में कई एक ऐसे मामले सामने आए जिसमें पार्टी के आधार पर हिंसा को जोड़ने का प्रयास किया गया. पुलिस अनुसंधान में जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उसके अनुसार सभी मामलों में आपसी विवाद और अपराधियों का किया काम था.

डीएसपी कुंदन सिंह बताते हैं कि पिछले दिनों हुई सभी हत्याओं की जांच चल रही है. अभी साफ नहीं है कि हत्याओं में राजनीतिक लोग मरे हैं. जिले में पार्टियां एक प्रोपागेंडा के तहत सभी हत्याओं को राजनीतिक रंग दे रही हैं. सोची-समझी रणनीति के तहत राजनीतिक दल के लोग एक-दूसरे पर हत्या करवाने का आरोप लगाते रहते हैं, ताकि वह मीडिया में सुर्खियां हासिल कर सकें. वहीं, जिले के एक सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं कि अधिकांश हत्याएं जमीन विवाद के कारण हुई है, कोई पॉलिटिकल मर्डर नहीं है.

जानकारी देते डीएसपी

बीते दिनों हुई हत्याएं जिनका राजनीतिकरण किया गया

  • मटिहानी थाना इलाके के फागों तांती की पीट-पीटकर हत्या (सीपीआई का नेता बताया गया)
  • गल्ला व्यवसाई पृथ्वी चौधरी की अपहरण के बाद हत्या (सीपीआई का नेता बताया गया)
  • गोपाल सिंह की हत्या (बीजेपी का पंचायत अध्यक्ष बताया गया)
  • बलिया में एक युवक की बेरहमी से पिटाई (कांग्रेस के पूर्व प्रखंड अध्यक्ष के पुत्र पर जानलेवा हमला बताया गया)
  • एक फेरीवाले को एक अपराधी ने मारी गोली (घायल युवक का आरोप मुस्लिम होने के कारण मारी गोली )

बेगूसराय: जिले में लोकसभा चुनाव के बाद हो रही हिंसाओं को सियासी रंग दिया जा रहा है. चाहे हत्या हो या हिंसा, राजनीतिक दल के लोग इसमें भी सियासी रोटी सेकते नजर आ रहे हैं. हाल में कई एक ऐसे मामले सामने आए जिसमें पार्टी के आधार पर हिंसा को जोड़ने का प्रयास किया गया. पुलिस अनुसंधान में जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उसके अनुसार सभी मामलों में आपसी विवाद और अपराधियों का किया काम था.

डीएसपी कुंदन सिंह बताते हैं कि पिछले दिनों हुई सभी हत्याओं की जांच चल रही है. अभी साफ नहीं है कि हत्याओं में राजनीतिक लोग मरे हैं. जिले में पार्टियां एक प्रोपागेंडा के तहत सभी हत्याओं को राजनीतिक रंग दे रही हैं. सोची-समझी रणनीति के तहत राजनीतिक दल के लोग एक-दूसरे पर हत्या करवाने का आरोप लगाते रहते हैं, ताकि वह मीडिया में सुर्खियां हासिल कर सकें. वहीं, जिले के एक सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं कि अधिकांश हत्याएं जमीन विवाद के कारण हुई है, कोई पॉलिटिकल मर्डर नहीं है.

जानकारी देते डीएसपी

बीते दिनों हुई हत्याएं जिनका राजनीतिकरण किया गया

  • मटिहानी थाना इलाके के फागों तांती की पीट-पीटकर हत्या (सीपीआई का नेता बताया गया)
  • गल्ला व्यवसाई पृथ्वी चौधरी की अपहरण के बाद हत्या (सीपीआई का नेता बताया गया)
  • गोपाल सिंह की हत्या (बीजेपी का पंचायत अध्यक्ष बताया गया)
  • बलिया में एक युवक की बेरहमी से पिटाई (कांग्रेस के पूर्व प्रखंड अध्यक्ष के पुत्र पर जानलेवा हमला बताया गया)
  • एक फेरीवाले को एक अपराधी ने मारी गोली (घायल युवक का आरोप मुस्लिम होने के कारण मारी गोली )
Intro:
सभी वीडियो फ़ाइल विसुअल्स हैं।बाइट फ्रेश है।

एंकर- चुनाव परिणाम आने के बाद क्या पश्चिम बंगाल के तर्ज पर बिहार के बेगूसराय में भी हो रही है राजनीतिक हत्या , कभी सीपीआई कभी बीजेपी के नेताओं की हत्या होने की अफवाह से परेशान हो उठते हैं लोग क्या है जमीनी हकीकत ।
एक रिपोर्ट


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1-मटिहानी थाना इलाके के फागों तांती की पीट कर हत्या
(सीपीआई का नेता बताया गया)
2-गल्ला ब्यबसाई पृथ्वी चौधरी की अपहरण के बाद हत्या
(सीपीआई का नेता बताया गया)
3-)गोपाल सिंह की हत्या(बीजेपी का पंचायत अध्यक्ष बताया गया)
4-बलिया में एक युवक की बेरहमी से पिटाई
(कोंग्रेस के पूर्व प्रखंड अध्यक्ष के पुत्र पर जानलेवा हमला बताया गया)
5-एक फेरीवाले को एक अपराधी ने मारी गोली
(घायल युवक का आरोप मुस्लिम होने के कारण मारी गोली )

बेगूसराय जिले में मतगणना के बाद हो रही हिंसा की वारदात को लोग सियासी रंग देने में जुटे हैं, चाहे हत्या हो या हिंसा की वजह कोई भी हो लेकिन राजनीतिक दलों के लोग इसमें सियासी रोटी सेकने में लग जाते हैं।
उपरोक्त उदाहरणों को छोड़ दें तो कई एक ऐसे मामले आए जिसमें पार्टी के आधार पर हिंसा को जोड़ने का प्रयास किया गया। पुलिस अनुसंधान में जो तथ्य सामने आ रहे हैं सभी मामलों में आपसी विवाद और अपराधियों का कृत्य सामने आ रहा है।
मतगणना परिणाम आने के बाद गिरिराज सिंह की विराट जीत और कन्हैया कुमार की करारी शिकस्त से दोनों ही पार्टी के कार्यकर्ता काफी उत्तेजित थे एक तरफ बीजेपी के कार्यकर्ता बड़ी जीत होने के कारण जश्न में सराबोर थे ,वही सीपीआई के कार्यकर्ता कन्हैया कुमार की करारी शिकस्त से गुस्से में थे जिसकी बानगी मतगणना के दिन बीजेपी और सीपीआई कार्यकर्ताओं के बीच जमकर हुई हिंसा में देखने को मिली ।उसके बाद अपराध प्रभावित जिले बेगूसराय में आपराधिक वारदातें शुरू हो गई ।सोची-समझी रणनीति के तहत राजनीतिक दल के लोग एक दूसरे पर हत्या करवाने का आरोप लगाते रहे जो मीडिया में सुर्खी बनी।
चाहे फागों तांती की हत्या हो या पृथ्वी चौधरी या फिर गोपाल सिंह सभी मामलों में हत्या के बाद पुलिस बारीकी से अनुसंधान में जुट गई। वैसे अनुसंधान अभी पूर्ण नहीं हुआ है लेकिन जो शुरुआती अनुसंधान में पुलिस ने पाया उसमें कहीं से राजनीतिक हिंसा ज्ञा द्वेष का मामला प्रकाश में नहीं आया है। जमीन विवाद या अपराधियों की दबंगई के कारण सारी घटनाएं बेगूसराय में घट रही हैं। डीएसपी कुंदन कुमार सिंह बताते हैं की हत्या के बाद मृतक के ऊपर एक टैग लग जाता है यह फलाने पार्टी के नेता थे या कार्यकर्ता थे। जिसके बाद कुछ समर्थक खड़ा होकर हंगामा शुरू करते हैं और एक दूसरे को बदनाम करने की कोशिश करते हैं ,जिससे पुलिस को अनुसंधान में भी परेशानी होती है लेकिन पुलिस पार्टी आधार पर अनुसंधान नहीं करती ।अपराध की किस्म और अपराध किस वजह से हुई इसकी तहकीकात करती है और दोषी पर कार्रवाई करती है। राजनीतिक पार्टियों के लोग जो अच्छा लगता है वह करते हैं पुलिस अनुसंधान और जांच पूर्ण करने के बाद ही कार्रवाई करती है।
बाइट-कुंदन सिंह,डीएसपी हेडक्वार्टर
vo- वहीं आम लोग और सामाजिक कार्यकर्ता यह मानते हैं कि कहीं से बेगूसराय में पार्टी के आधार पर हत्याएं या हिंसा की वारदात नहीं हो रही है यह सिर्फ और सिर्फ प्रोपेगेंडा है जो संबंधित पार्टियों के द्वारा फैलाया जा रहा है।
बाइट-अरुण कुमार,सामाजिक कार्यकर्ता


Conclusion:fvo- इतना तय है जिस तरीके से हत्याओं और हिंसा के बाद राजनीतिक दल के लोग एक दूसरे पर हिंसा और हत्या का आरोप लगाते हैं, समाज के प्रबुद्ध लोग अगर सजग ना हो तो वह दिन दूर नहीं जब बेगूसराय में भी, पश्चिम बंगाल के तर्ज पर खुलेआम खून की होली खेली जाएगी। प्रशासन को चाहिए कि अफवाह फैलाने वाले और राजनीतिक रोटी सेकने वाले लोगों पर विधि सम्मत कार्रवाई कर इस तरह की अफवाहों पर विराम लगा दे।
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