बेगूसराय: दीपावली (Diwali In Begusarai) को लेकर देश भर में उत्साह का माहौल है. इस पर्व में मिट्टी के दीए और खिलौनों का खास महत्व माना जाता है. लेकिन बिहार के बेगूसराय (Begusarai) में इस बार इसकी खरीदारी अच्छी नहीं हो रही है, जिससे कुम्हारों के इस पुश्तैनी पेशे पर एक बार फिर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. ये लोग सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं.
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कोरोना के कारण विद्यालय बंद होने से कुम्हार परिवार के बच्चे इस बार पुश्तैनी रोजगार को फिर शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं. सभी मिलकर मिट्टी से बने दीये, बर्तन और मूर्तियों को बनाने में लगे हुए हैं. लेकिन इसे खरीदने वाले नहीं मिल रहे हैं. इन लोगों का कहना है कि आज के समय में लागत मूल्य भी अधिक है.
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"इस काम में तो हम अपने दादाजी के जमाने से लगे हुए हैं. पहले मिट्टी के दीयों की काफी बिक्री होती थी, लेकिन अब इसका बाजार बिल्कुल ठंडा पड़ चुका है. अब तो सिर्फ हमने अपने हुनर को बचाकर रखा है. कुछ खास मौकों पर जैसे शादी विवाह में मांग होने पर काम करते हैं, लेकिन इससे गुजारा नहीं होता है. अब तो सभी लोग रंगीन बल्ब और मोमबत्ती लगा लेते हैं. सिर्फ रस्म अदायगी के लिए पांच या सात दीया खरीदकर पूजा कर लेते हैं. सरकार को हमारे लिए कुछ व्यवस्था करनी चाहिए."- राजीव कुमार पंडित, कुम्हार
इस पेशे से जुड़े लोग बताते हैं कि पूरा परिवार मिट्टी के दीए, खिलौने और बर्तन बनाता है. लेकिन इससे कमाई नहीं हो पा रही है. मिट्टी के बर्तन और मूर्तियां बनकर तैयार हैं. लेकिन इसको खरीदने वाला कोई नहीं है. इसका मुख्य कारण महंगा तेल भी है. दिवाली में हाथों से बने मनमोहक दीयों की बिक्री की उम्मीद थी. लेकिन कोरोना महामारी ने उस पर पानी फेर दिया है. दम तोड़ती हस्तकला और कुम्हारों की माली हालत पर सरकार को भी तरस नहीं आ रहा है. इन्होंने सरकार से जहां इस उद्योग पर ध्यान देने की बात कहीं ,वहीं दूसरी ओर मदद की अपील की है.
"पूर्वजों के समय से हम इस काम से जुड़े हुए हैं.पहले दादाजी करते थे, फिर पापा पढ़ाई लिखाई के बाद इससे जुड़ गए. अभी दीपावली के समय मांग ज्यादा होने के कारण मैं भी इससे जुड़ गया हूं."- राहुल पंडित, छात्र
"हमारा ये पुश्तैनी रोजगार है. पहले तो अच्छी आमदनी होती थी,लेकिन अब बहुत कम हो गया है. अब लोग रंगीन बल्ब या मोमबत्ती का इस्तेमाल करते हैं. केवल पांच दीये भगवान के लिए खरीदते हैं. पहले दिवाली मे सभी के घर दीयों से ही रोशन होते थे. बिक्री नाम मात्र का है. सरकार सहायता करे, तब न हम लोगों का गुजारा हो. मिट्टी, लकड़ी और कोयला किसी चीज की व्यवस्था नहीं है."- गणेश पंडित, कुम्हार
बता दें कि दीयों की मांग घटने से कुम्हार परेशान हैं. उनके सामने रोज रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई है. दीयों की मांग घटने के पीछे कई कारण है. आधुनिकता के इस दौर में लोग पुरानी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं. वहीं तेल की बढ़ती कीमत भी इसके पीछे का एक प्रमुख कारण माना जा रहा है. दीयों को रोशन करने के लिए तेल चाहिए, फिलहाल तेल के दाम में आग लगी हुई है. वहीं इस सबका खामियाजा कुम्हारों को उठाना पड़ रहा है, कुम्हारों के चूल्हे की आग ठंडी पड़ने लगी है.