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बेगूसराय की सांची की किलकारी से गूंज उठी स्वीडन दंपति की गोद

9 महीने की सांची अब सात समंदर पार स्वीडन में पलेगी. बता दें कि यह दंपति पहले भी एक बच्चे को गोद ले चुके हैं.

स्वीडन दंपति
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Published : Feb 10, 2019, 11:23 PM IST

बेगूसरायः जिले के दत्तक ग्रहण स्थान से एक स्वीडन दंपति ने 9 महीने की बच्ची को गौद लिया है. 9 महीने की सांची अब सात समुंदर पार स्वीडन में पलेगी. बता दें कि यह दंपति पहले भी एक बच्चे को गौद ले चुके हैं. लेकिन उन्हें एक बेटी की कमी महसूस होती थी. जिसे सांची ने पूरा कर दिया.

बेगूसराय दत्तक ग्रहण स्थान से सांची को गोद लिया

स्वीडन की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में सेल्समैन का काम करने वाले एलेक्जेंडर होफ और उनकी पत्नी एलेक्जेंडर एवेयुना होफ की कोई संतान नहीं थी. स्वीडन दंपत्ति ने सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी के मदद से बेगूसराय दत्तक ग्रहण स्थान से सांची को गोद लिया. पहली ही नजर में सांची ने इस दंपति के चेहरे पर मुस्कान भर दिया.

begusarai
स्वीडन दंपति
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सांची को नई जिंदगी मिल गई

दत्तक ग्रहण स्थान कन्वेयर ऋतु सिंह ने कहा कि उन्हें बहुत खुशी है कि सांची को नई जिंदगी मिल गई है. अब उसकी दुनिया बदल जाएगी. स्वीडन में वह अपने माता पिता के साथ बेहतर जिंदगी जिएगी. गौरतलब है कि सांची एक ऐसी लड़की है जिसे उसके माता-पिता ने जन्म के 5 दिन बाद ही मरने के लिए फेंक दिया था. लेकिन सांची की कहानी यह कहावत को सच कर देती है कि "जाको राखे साइयां, मार सके न कोय".

बेगूसरायः जिले के दत्तक ग्रहण स्थान से एक स्वीडन दंपति ने 9 महीने की बच्ची को गौद लिया है. 9 महीने की सांची अब सात समुंदर पार स्वीडन में पलेगी. बता दें कि यह दंपति पहले भी एक बच्चे को गौद ले चुके हैं. लेकिन उन्हें एक बेटी की कमी महसूस होती थी. जिसे सांची ने पूरा कर दिया.

बेगूसराय दत्तक ग्रहण स्थान से सांची को गोद लिया

स्वीडन की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में सेल्समैन का काम करने वाले एलेक्जेंडर होफ और उनकी पत्नी एलेक्जेंडर एवेयुना होफ की कोई संतान नहीं थी. स्वीडन दंपत्ति ने सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी के मदद से बेगूसराय दत्तक ग्रहण स्थान से सांची को गोद लिया. पहली ही नजर में सांची ने इस दंपति के चेहरे पर मुस्कान भर दिया.

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स्वीडन दंपति
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सांची को नई जिंदगी मिल गई

दत्तक ग्रहण स्थान कन्वेयर ऋतु सिंह ने कहा कि उन्हें बहुत खुशी है कि सांची को नई जिंदगी मिल गई है. अब उसकी दुनिया बदल जाएगी. स्वीडन में वह अपने माता पिता के साथ बेहतर जिंदगी जिएगी. गौरतलब है कि सांची एक ऐसी लड़की है जिसे उसके माता-पिता ने जन्म के 5 दिन बाद ही मरने के लिए फेंक दिया था. लेकिन सांची की कहानी यह कहावत को सच कर देती है कि "जाको राखे साइयां, मार सके न कोय".

Intro: बेगूसराय में 9 महीने की साची अब सात समुंदर पार स्वीडन दंपति की जिंदगी बदलने का काम करेगी। दत्तक ग्रहण संस्थान की साची एक ऐसी लड़की है जिसे उसके मां पिता ने जन्म के 5 दिन बाद ही मरने के लिए फेंक दिया था पर वक्त और हालात ने ऐसा करवट बदला की साची स्वीडन एक दंपति की जिंदगी में खुशियां भरने जा रही है


Body:एंकर बेगूसराय में 9 महीने की साची अब सात समुंदर पार स्वीडन दंपति की जिंदगी बदलने का काम करेगी। दत्तक ग्रहण संस्थान की साची एक ऐसी लड़की है जिसे उसके मां पिता ने जन्म के 5 दिन बाद ही मरने के लिए फेंक दिया था पर वक्त और हालात ने ऐसा करवट बदला की साची स्वीडन एक दंपति की जिंदगी में खुशियां भरने जा रही है।
भी ओ जिंदगी कब किस करवट बदल जाए कहना मुश्किल होता है। लेकिन हर एक की जिंदगी में कभी ना कभी खुशी का पर्ल जरूर आता है। बेगूसराय की मासूम सांची के जीवन में कुछ ऐसा पल आया की उसकी पूरी जिंदगी ही बदल गई है। अब साक्षी की जिंदगी किसी की दुनिया बदलने का काम करेगी। बेगूसराय के विशिष्ट दस्तक संस्थान में पलने वाली मासूम साची को स्वीडन कि दंपति ने गोद ले लिया है। स्वीडन की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में सेल्समैन का काम करने वाले एलेक्जेंडर होफ और उनकी पत्नी एलेक्जेंडर एवेयुना होफ की कोई संतान नहीं थी स्वीडन दंपत्ति मैं सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी कारा मदद से बेगूसराय दत्तक ग्रहण स्थान की साची को गोद लिया। पहली ही नजर में साक्षी ने इस दंपति के चेहरे पर मुस्कान भरने का काम। स्वीडन की होफ दंपति सांची को गोद लेकर फूले नहीं समा रहे हैं। उनका मानना है कि या पल मेरे लिए खास है। मैं सौभाग्यशाली हूं सांची को पाकर। फैमिली में नए सदस्य आने से हम लोग काफी खुश हैं। का मानना है कि वह लोग पहले से एक बच्चे को गोद ले रखा है। लेकिन बच्ची की कमी महसूस कर रहे थे जो सांची के रूप में पूरी हो गई है। उन्होंने साची को दुनिया की सारी खुशियां देने के साथ-साथ साची को पढ़ा लिखा कर योग बनाएंगे।
बाइट एवेयुना होफ सांची की मां
बाइट एलेक्जेंडर होफ सांची के पिता
भी ओ दस्तक संस्थान कन्वेयर ऋतु सिंह ने का उन्हें बहुत खुशी हो रही है कि सांची को नई जिंदगी मिल गई है अब उसकी दुनिया बदल जाएगी स्वीडन में वह अपने माता पिता के साथ बेहतर जिंदगी जिएगी। कहां साची मात्र 5 दिन की थी जब वह संस्थान में लाई गई थी। तब लोगों ने इसे 5 महीने तक अपने पास रखा लेकिन जाने का भी थोड़ा मोड़ा हम लोगों को गम भी है।
बाइट ऋतु सिंह कन्वेनस



Conclusion:भी ओ कुल मिलाकर इस वक्त का तकाजा ही कहेगा कि एक मां बाप जिन्हें जन्म के साथ ही अपने बच्चे को मरने के लिए छोड़ दिया वहीं विदेश में रहने वाले लोग आज भी बेटियों को अपनी जिंदगी का हिस्सा मानते हैं जिसे पाने के लिए वह सात समुंदर पार भारत तक पहुंच गए। इतना ही नहीं भारत की साची अब स्वीडन की दंपत्ति सूनी गोद में खुशियां भरने का काम करेगी
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