बेगूसरायः शारदीय नवरात्रि के समय बिहार में कई दुर्गा मंदिरों में बली देने की परंपरा है. इसमें बेगूसराय स्थित वैष्णव देवी मंदिर (Begusarai Vaishno Devi Temple) भी शामिल थी. लेकिन अब इस मंदिर में बली देने की 700 साल पुरानी परंपरा खत्म कर दी गई है. दरअसल यहां के पुजारियों ने दुर्गा मां को खुश करने के लिए दूसरा रास्ता चुन लिया है. इस कार्य के लिए मंदिर (Begusarai Vaishno Devi Temple Gets PETA Award) ने जानवरों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले दुनिया के सबसे बड़े एनजीओ पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) से दुर्लभ पुरस्कार जीते हैं.
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मां को फल और सब्जियों से रिझाएंगे पुजारीः पिछले साल 2021 तक बेगूसराय की वैष्णवी देवी मंदिर में भक्तों की मनोकामना पूर्ति के लिए पशु बलि की परंपरा निभाई गई. लेकिन ये परंपरा इस साल तोड़ दी गई. इसके लिए मंदिर के पुजारियों ने एक उपाय ढूंढा है. जिसके तहत अब यहां आने वाले भक्त और पुजारी मां वैष्णवी देवी को फल और सब्जियों से रिझाएंगे, किसी भी जानवर की बली नहीं दी जाएगी.
बड़ी संख्या पहुंचते हैं मां के भक्तः दरअसल बिहार के बेगूसराय जिले में शहर से 33 किलोमीटर दूर भगवानपुर ब्लॉक के लखनपुर में प्राचीन दुर्गा मंदिर है. इस मंदिर में अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए बड़ी संख्या मां के भक्त पहुंचते हैं. मान्यता है कि यहां मां वैष्णवी की खास पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. ये बेगूसराय जिला का प्रथम शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध है. यहां पर पूजा अर्चना लगभग साढ़े 300 वर्षों से अनवरत जारी है. इस मंदिर में पूजा की शुरुआत आश्विन प्रथम पक्ष के नवमी तिथि के जिउतिया पर्व के उपरांत प्रथम कलश की स्थापन कर पाठ करने के बाद एक छागल की बलि दी जाती थी. उसी दिन से पूजा की शुरुआत हो जाती थी.
मंदिर में दी जाती थी छागड़ (बकरा) की बलीः उसके बाद आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को एक विशेष पूजा होती है, उसके बाद षष्ठी तिथि को गंध अधिवास में मूर्ति का जागरण किया जाता है. सप्तमी तिथि को मंदिर में मूर्ति को प्रवेश कराया जाता है. उसी रात्रि में फिर एक छागड़ (बकरा) की बली और अखंड दीप को जलाया जाता है, जो दशमी तिथि तक जलता रहता है. मां की मूर्ति के सामने मंदिर में एक छागल को रखकर मां को डिम्मा दिया जाता था. डिम्मा देने के बाद उस छागड़ (बकरा) के आंख की रोशनी समाप्त हो जाती है. जिसे ब्राह्मण को दान कर दिया जाता है, उसके बाद दूसरे दिन कालरात्रि की पूजा होती है. फिर एक छागड़ (बकरा) की बलि पड़ता थी. विजयादशमी के दिन बलि पड़ना बंद होने के बाद मां के प्रतिमा का विसर्जन करने के लिए पूरे गाजे-बाजे के साथ नाव पर प्रतिमा को चढ़ा कर उसे बलान नदी में जल विहार कराया जाता है.
पिछले साल तक जीवित थी परंपराः इस बार दुर्गा पुजा में इस परंपरा को आगे नहीं बढ़ाया गया. हालांकि पिछले साल नवरात्रि तक ये 700 साल पुरानी परंपरा जीवित थी. मां वैष्णवी को खुश करने के लिए इस परंपरा को यहां खास माना जाता था. ऐसी मान्यता थी कि अगर ये प्राचीन परंपरा टूटी तो मां क्रोधित हो जाएंगी, बेगूसराय के इस दुर्गा मंदिर का प्रबंधन मां दुर्गा मंदिर पुष्पलता घोष चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा किया जाता है. अब यहां श्रद्धालु पहली बार श्री वेंकटेश्वर मंदिर के दर्शन भी कर सकेंगे. मां दुर्गा के दर्शन के लिए बेगूसराय ही नहीं बल्कि बिहार और पश्चिम बंगाल समेत पूरे देश से श्रद्धालु यहां इस उम्मीद से पहुंचते हैं कि उनकी मनोकामनाएं पूरी होंगी. हाल ही में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी इस मंदिर में मां का आशीर्वीद लेने पहुंचे थे.
700 साल पहले बंगाल से लाई गई थी मां मूर्तिः मान्यता के अनुसार दुर्गा मां की मूर्ति को 700 साल पहले बंगाल में नादिया नामक स्थान से कुलदेवी के रूप में लाया गया था. इसे लखनपुर में स्थापित किया गया, जहां मां की पूजा बंगाली विधि से की जाती है. इस कारण बेगूसराय का ये अब तक इकलौता प्राचीन मंदिर था, जहां पशुबलि देने की परंपरा थी. दुर्गा पूजा में लखनपुर दुर्गा मंदिर में अपने सपरिवार के साथ दर्शन करने के लिए सूबे बिहार के लोग यहां दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं, इसके अलावे बंगाल झारखंड और उत्तर प्रदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं. इस मंदिर में दर्शन मात्र से ही भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
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