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बांका: सरकारी उपेक्षा का दंश झेलने को विवश कुम्हारों की कला

बदलते परिवेश में भी कुम्हार के चाक से बने खास दीपक दीपावली में चार चांद लगाते हैं. मिट्टी के बर्तन और दीपक बनाना ही इन कुम्हारों की रोजी-रोटी का जरिया है. लेकिन उससे उनके घरों का गुजारा हो पाना संभव नहीं.

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Published : Nov 5, 2020, 2:07 PM IST

चाक से दीये बनाता कुम्हार
चाक से दीये बनाता कुम्हार

बांका (कटोरिया) : बदलते परिवेश में भी कुम्हार के चाक से बने खास दीपक दीपावली में चार चांद लगाते हैं. अमीर हो या गरीब कार्तिक मास के अमावस की रात में इससे सबों का घर दीयों से रौशन होता है. लेकिन महंगाई के इस दौर में कुम्हार समुदाय आज उपेक्षा का दंश झेलने को विवश है.

बाजार में चाइनीज झालरों की भरमार
बाजार में चाइनीज झालरों के कब्जा के बाद से ही मिट्टी के दीपक की डिमांड काफी कम हो चुकी है. वहीं उनकी मेहनत का उचित दाम भी नहीं मिल रहा है. कड़ी धूप में मेहनत करने वाले कुम्हार परिवार आज भी दोनों वक्त घर का चूल्हा भी मुश्किल से ही जला पाता है. मिट्टी के दीपक को बाजार में ना तो वाजिब दाम मिल पा रहा है, और न पर्याप्त खरीदार. कटोरिया प्रखंड अंतर्गत डोमकट्टा गांव कुम्हार समुदाय का सबसे बड़ा गांव है. यहां के लोग पुश्तैनी धंधे को आज ही जिंदा रखे हुए हैं.

देखें रिपोर्ट

घर के अन्य सदस्य भी करते हैं सहयोग
महिलाएं व बच्चे भी घर पर सहयोग करते है. मिट्टी के बर्तन और दीपक बनाना ही इन कुम्हारों की रोजी-रोटी का जरिया है. जिसमें घर की महिलाओं के साथ साथ बच्चे भी सहयोग करते हैं. लेकिन मिट्टी के दीपों से जितना पैसा मिलता है, उससे उनके घरों का गुजारा हो पाना संभव नहीं.

शासन की उपेक्षा का दंश झेल रहे कटोरिया के कुम्हार
सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहे कटोरिया के डोमकट्टा गांव के कुम्हारों ने बताया कि आज तक किसी भी सरकार या जिला प्रशासन ने ना तो उनकी सुधि ली, ना उनके हित में कोई योजना ही लायी है.

बांका (कटोरिया) : बदलते परिवेश में भी कुम्हार के चाक से बने खास दीपक दीपावली में चार चांद लगाते हैं. अमीर हो या गरीब कार्तिक मास के अमावस की रात में इससे सबों का घर दीयों से रौशन होता है. लेकिन महंगाई के इस दौर में कुम्हार समुदाय आज उपेक्षा का दंश झेलने को विवश है.

बाजार में चाइनीज झालरों की भरमार
बाजार में चाइनीज झालरों के कब्जा के बाद से ही मिट्टी के दीपक की डिमांड काफी कम हो चुकी है. वहीं उनकी मेहनत का उचित दाम भी नहीं मिल रहा है. कड़ी धूप में मेहनत करने वाले कुम्हार परिवार आज भी दोनों वक्त घर का चूल्हा भी मुश्किल से ही जला पाता है. मिट्टी के दीपक को बाजार में ना तो वाजिब दाम मिल पा रहा है, और न पर्याप्त खरीदार. कटोरिया प्रखंड अंतर्गत डोमकट्टा गांव कुम्हार समुदाय का सबसे बड़ा गांव है. यहां के लोग पुश्तैनी धंधे को आज ही जिंदा रखे हुए हैं.

देखें रिपोर्ट

घर के अन्य सदस्य भी करते हैं सहयोग
महिलाएं व बच्चे भी घर पर सहयोग करते है. मिट्टी के बर्तन और दीपक बनाना ही इन कुम्हारों की रोजी-रोटी का जरिया है. जिसमें घर की महिलाओं के साथ साथ बच्चे भी सहयोग करते हैं. लेकिन मिट्टी के दीपों से जितना पैसा मिलता है, उससे उनके घरों का गुजारा हो पाना संभव नहीं.

शासन की उपेक्षा का दंश झेल रहे कटोरिया के कुम्हार
सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहे कटोरिया के डोमकट्टा गांव के कुम्हारों ने बताया कि आज तक किसी भी सरकार या जिला प्रशासन ने ना तो उनकी सुधि ली, ना उनके हित में कोई योजना ही लायी है.

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