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पत्तल और दतून बनाने वाले परिवारों के सामने भुखमरी से हालात, मदद की लगाई गुहार

जंगली इलाकों के गरीब परिवार आसपास के जंगलों से पत्ते और दतून लाकर अपने घरों में पत्तल तैयार कर बेचते हैं. इसी से अपने परिवार का सारा खर्च निकालते हैं.

पत्तल बनाने वाले परिवारों का सामने भुखमरी की स्थिति
पत्तल बनाने वाले परिवारों का सामने भुखमरी की स्थिति
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Published : Apr 19, 2020, 4:55 PM IST

Updated : Apr 19, 2020, 5:08 PM IST

बांका: जिले में कई प्रखंड के गरीब परिवार खास कर जंगली इलाके में रहने वाले लोगों को लॉकडाउन की मार झेलनी पड़ रही है. दर्जनों गांव ऐसे हैं, जहां गरीब परिवार जंगल के भरोसे ही अपनी जीविका चलाते हैं. दातून बेचकर पैसा कमाने वाले परिवार के सामने इन दिनों भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है.

banka
पत्तल बनाने वाले परिवारों का सामने भुखमरी की स्थिति

पत्तल बनाने वालों के सामने भूखमरी की स्थिति
बता दें कि चांदन, कटोरिया, और बेलहर जैसे जंगली इलाकों के गरीब परिवार आसपास के जंगलों से पत्ते और दतून लाकर अपने घरों में पत्तल तैयार कर बेचते हैं. इसी से अपने परिवार का सारा खर्च निकालते हैं. इस परिवार के पुरुष या महिला सदस्य उसे ट्रेनों के बाहर जाकर बेचते थे. जबकि अधिकतर परिवार का पत्तल गांव में ही आकर कुछ मुंशी किस्म के लोग ले जाते थे. इसमें उन्हें काफी कम राशि मिलती थी. उसी प्रकार दतून भी पटना से कोलकाता तक ले जाया जाता था. लेकिन आज उन परिवार के सामने सबसे बदतर स्थिति बनी हुई है.

पेश है एक रिपोर्ट

पत्तल की नहीं हो रही बिक्री
बड़ी संख्या में पत्तल बनाने के बावजूद भी उसे खरीदने वाला कोई नहीं है. न तो ट्रेन चल रही है और न ही बस. इतना ही नहीं आस-पास के क्षेत्रों में भी शादी और अन्य तरह से कार्यक्रम भी पूरी तरह बंद है. जिससे पत्तल और दतवन की बिक्री नहीं के बराबर हो रही है. चांदन के जुगड़ी, धावा, जनकपुर, बेलहरिया, गौरीपुर तुर्की में अधिकतर आदिवासी परिवार पत्तल और दतवन का काम सबसे अधिक किया जाता है. लेकिन इन दिनों इस परिवार में तैयार पत्तल का खरीददार भी कोई नही है.

बांका: जिले में कई प्रखंड के गरीब परिवार खास कर जंगली इलाके में रहने वाले लोगों को लॉकडाउन की मार झेलनी पड़ रही है. दर्जनों गांव ऐसे हैं, जहां गरीब परिवार जंगल के भरोसे ही अपनी जीविका चलाते हैं. दातून बेचकर पैसा कमाने वाले परिवार के सामने इन दिनों भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है.

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पत्तल बनाने वाले परिवारों का सामने भुखमरी की स्थिति

पत्तल बनाने वालों के सामने भूखमरी की स्थिति
बता दें कि चांदन, कटोरिया, और बेलहर जैसे जंगली इलाकों के गरीब परिवार आसपास के जंगलों से पत्ते और दतून लाकर अपने घरों में पत्तल तैयार कर बेचते हैं. इसी से अपने परिवार का सारा खर्च निकालते हैं. इस परिवार के पुरुष या महिला सदस्य उसे ट्रेनों के बाहर जाकर बेचते थे. जबकि अधिकतर परिवार का पत्तल गांव में ही आकर कुछ मुंशी किस्म के लोग ले जाते थे. इसमें उन्हें काफी कम राशि मिलती थी. उसी प्रकार दतून भी पटना से कोलकाता तक ले जाया जाता था. लेकिन आज उन परिवार के सामने सबसे बदतर स्थिति बनी हुई है.

पेश है एक रिपोर्ट

पत्तल की नहीं हो रही बिक्री
बड़ी संख्या में पत्तल बनाने के बावजूद भी उसे खरीदने वाला कोई नहीं है. न तो ट्रेन चल रही है और न ही बस. इतना ही नहीं आस-पास के क्षेत्रों में भी शादी और अन्य तरह से कार्यक्रम भी पूरी तरह बंद है. जिससे पत्तल और दतवन की बिक्री नहीं के बराबर हो रही है. चांदन के जुगड़ी, धावा, जनकपुर, बेलहरिया, गौरीपुर तुर्की में अधिकतर आदिवासी परिवार पत्तल और दतवन का काम सबसे अधिक किया जाता है. लेकिन इन दिनों इस परिवार में तैयार पत्तल का खरीददार भी कोई नही है.

Last Updated : Apr 19, 2020, 5:08 PM IST
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