बांका: लॉकडाउन शुरू होने के दो महीने बीत जाने के बाद भी देश के अलग-अलग हिस्सों से प्रवासी मजदूर बिहार के विभिन्न जिलों में पहुंच रहे हैं. सरकार प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए ट्रेन और बस भी चला रही है. लेकिन ये सरकारी मदद नाकाफी साबित हो रही है. हजारों की तादाद में ऐसे प्रवासी मजदूर है, जिन्हें कोई मदद नहीं मिल पा रही है.ऐसे ही लगभग 180 प्रवासी मजदूरों का जत्था महाराष्ट्र के भिवंडी से 5 दिनों में ट्रक से बांका पहुंचा. स्थानीय स्तर पर जिला प्रशासन से मदद नहीं मिलने की वजह से ये मजदूर पैदल ही जिले के बौंसी और झारखंड के लिए निकल पड़े.
![Migrant laborers reach Banka from Maharashtra](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/bh-banka-03-pravasi-majdoor-7208641_18052020163801_1805f_02050_144.jpg)
गहने बेचने को विवश हुए प्रवासी मजदूर
प्रवासी मजदूर मो. वसीउर रहमान ने बताया कि लॉक डाउन की वजह से काम बंद हो गया. जो कमाए थे वो खाने में खत्म हो गए. अब मजबूरन घर से पैसे मंगवा कर लौटना पड़ रहा है. वही बौंसी के डहुआ गांव निवासी मो. इरशाद अंसारी ने बताया कि काम नहीं रहने की वजह से आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे. सरकारी स्तर पर मदद नहीं मिली तो मोबाइल बेचकर घर आना पड़ा. कई ऐसे प्रवासी मजदूर मिले जिन्होंने बताया कि घर वापस आने के लिए गहने भी बेचने पड़ गए.
एक मजदूर को चुकाने पड़े 3 हजार 500 रुपए
जिले के बौसी प्रखंड स्थित रहुआ गांव के दर्जनों प्रवासी मजदूरों ने बताया कि महाराष्ट्र के भिवंडी में स्पिनिंग मशीन चलाने का काम करते थे. बांका आने के लिए हर मजदूर को 3 हजार 500 रुपए चुकाने पड़े. एक ट्रक में 60 लोग सवार थे और बैठने की जगह भी नहीं थी. पांच दिनों का सफर तय कर काफी मशक्कत के बाद बांका पहुंचे. रास्ते में एक दो जगह ही रुखा-सूखा खाना नसीब हो पाया. बांका पहुंचने पर जिला प्रशासन से भी कोई मदद नहीं मिली. मजबूरन पैदल घर की ओर निकल पड़े हैं.गांव पहुंचकर भी 14 दिनों तक मुखिया द्वारा बनाए गए क्वॉरेंटाइन सेंटर में रहना पड़ेगा.