बांका: कोरोना महामारी की वजह से आदमी ही नहीं बल्कि भगवान भी लॉकडाउन में हैं. जिला प्रशासन ने 4 जुलाई से 4 अगस्त तक मंदिर का पट बंद रखने का निर्देश जारी किया है. श्रद्धालु मंदिर के मुख्य गेट पर ही पूजा कर लौट जा रहे हैं. श्रद्धालुओं के चढ़ावे से ही आरती और भोग मंदिर में लगता था, लेकिन कोरोना की वजह से मंदिर भी आर्थिक तंगी के दौर से गुजरने लगा है.
यहीं जलाई गई थी कर्ण की चिता
महाभारत कालीन इतिहास को अपने अंदर समेटे अमरपुर प्रखंड के चांदन नदी तट पर अवस्थित जेष्ठगौर नाथ महादेव मंदिर कोरोना महामारी की वजह से वीरान पड़ा हुआ है. इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहीं पर अंग क्षेत्र के राजा कर्ण की चिता जलाई गई थी. इसका साक्ष्य चांदन नदी के बीचो-बीच अब भी विद्यमान है. इस मंदिर की प्रसिद्धि सिद्ध पीठ के तौर पर है. मंदिर की स्थापना पाल वंश के शासक ने करवाई थी.
सावन में श्रद्धालुओं की लगती थी भीड़
सावन के महीने में रोजाना हजारों श्रद्धालुओं का तांता मंदिर परिसर में लगा रहता था, लेकिन कोरोना काल में जिला प्रशासन ने 4 जुलाई से 4 अगस्त तक मंदिर का पट बंद रखने का निर्देश जारी किया है. इसको लेकर मंदिर के मुख्य गेट पर इश्तेहार भी चिपका दिया गया है. पुलिस जवानों की तैनाती भी कर दी गई है. सैकड़ों श्रद्धालु पूजा के लिए तो पहुंच रहे हैं, लेकिन मंदिर का पट बंद रहने की वजह से मुख्य गेट पर ही पूजा कर निराश होकर लौट जा रहे हैं.
निराश लौट रहे श्रद्धालु
सावन में भक्तिभाव से लबरेज होकर जेष्ठगौर नाथ महादेव मंदिर पूजा करने पहुंचे युवा श्रद्धालु कृष्णदेव कुमार ने बताया कि कोरोना की वजह से स्थिति बेहद खराब हो गई है. मंदिर में पूजा करने के लिए पहुंचे हैं, लेकिन पता चला है कि कोरोना से मंदिर का पट बंद कर दिया है. इसलिए गेट पर ही पूजा कर वापस लौटना पड़ रहा है. मंदिर में पूजा करने पहुंची महिला श्रद्धालु गीता देवी ने बताया कि मंदिर के अंदर यहां पर तैनात पुलिस के जवान प्रवेश करने नहीं देते हैं. कोरोना के चलते मंदिर बंद है. इसलिए बाहर ही पूजा कर लौट जाने को कहते हैं.
आर्थिक संकट से गुजर रहा मंदिर
लगातार मंदिर का पट बंद होने की वजह से पुजारियों की स्थिति भी दयनीय हो गई है. पुजारी अरुण कुमार झा ने बताया कि आने वाले श्रद्धालुओं को पूजा पाठ कराने के बाद कुछ रूपए की आमदनी हो जाती थी, वह भी बंद है. मंदिर के प्रधान पुजारी राजा बाबा ने बताया कि इस मंदिर की स्थापना पाल वंश के शासक ने की थी तब से लेकर अब तक यह मंदिर विद्यमान है. कोरोना काल में मंदिर का पट जिला प्रशासन ने बंद करवा दिया है, जिससे श्रद्धालु मंदिर नहीं पहुंच रहे हैं. स्थिति यह है कि मंदिर को भी आर्थिक संकट के दौर से गुजर ना पड़ रहा है. आरती और भोग लगाने के लिए पैसे नहीं जुट पा रहे हैं.