ETV Bharat / state

बांका: बदलते दौर में कुम्हारों के पुश्तैनी धंधे पर लगा 'ग्रहण', नहीं बिक रहे मिट्टी के सामान

बदलते युग में कुम्हार पंडितों के पुश्तैनी धंधा पर ग्रहण लग गया है. आज कुम्हार जाति के लोग मजबूर होकर दूसरा व्यापार करने को विवश नजर आ रहे हैं.

बांका
बांका
author img

By

Published : Nov 4, 2020, 6:24 PM IST

बांका(अमरपुर): कोरोना संक्रमण के बीच इस साल त्योहार मनाए जा रहे हैं. पहले ही पर्व की रंगत फीकी है. ऐसे में कुम्हारों की हालत और खराब है. उनके पुश्तैनी धंधा पर ग्रहण लग गया है. ऐसे में दूसरा व्यापार या पलायन के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है. पहले इनके सामानों की लोकल बाजारों में खासी डिमांड होती थी. लेकिन धीरे-धीरे लोगों ने इससे किनारा करना शुरू कर दिया है.

विदेशी और आर्टिफिशियल चीजों के कारण देसी सामानों की बिक्री समाप्त हो गई हैं. कुम्हार रामदेव पंडित, सिकंदर पंडित, बालदेव पंडित, प्रमोद पंडित, सुनील पंडित बताते हैं कि पहले पुश्तैनी धंधा जोर-शोर से चलता था. कम से कम त्योहारों में परेशानी नहीं होती थी. आम लोग मिट्टी के बर्तनों, खिलौने को दीपावली-छठ में पर्व में खरीदते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया है.

कुम्हारों ने बताई आपबीती
कुम्हारों की मानें तो पहले मिट्टी का दीये बड़े हर्षोल्लास के साथ खरीदकर लोग आपस में खुशियां बांटते थे. मिट्टी के बर्तनों को बेचकर हम सभी अपने बच्चों को उच्च शिक्षा और उत्तम संस्कार देते थे. लेकि धीरे-धीरे विदेशी चमक-धमक ने देशभर में पैठ बना ली और हमारा धंधा बंद होने की कगार पर आ गया है. आज हम भूखे मरने की स्थिति पर आ गये हैं.

नहीं मिल रही सरकारी सहायता
आधुनिकता की मार झेल रहे कुम्हार ने बताया कि हम कुम्हार को कोई सरकारी सहायता प्रदान नहीं किया गया है. हम सभी कुम्हारों का पुश्तैनी धंधा मृतप्राय हो चुका है. दीपावली पर्व में आम लोग मिट्टी के दीयों की जगह चाइनिज झालर उपयोग कर रहे हैं. मिट्टी की देवी देवता की जगह धातु से बनी प्रतिमा का उपयोग कर रहे हैं जिस कारण कुम्हार जाति का काम लुप्त हो गया है.

बांका(अमरपुर): कोरोना संक्रमण के बीच इस साल त्योहार मनाए जा रहे हैं. पहले ही पर्व की रंगत फीकी है. ऐसे में कुम्हारों की हालत और खराब है. उनके पुश्तैनी धंधा पर ग्रहण लग गया है. ऐसे में दूसरा व्यापार या पलायन के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है. पहले इनके सामानों की लोकल बाजारों में खासी डिमांड होती थी. लेकिन धीरे-धीरे लोगों ने इससे किनारा करना शुरू कर दिया है.

विदेशी और आर्टिफिशियल चीजों के कारण देसी सामानों की बिक्री समाप्त हो गई हैं. कुम्हार रामदेव पंडित, सिकंदर पंडित, बालदेव पंडित, प्रमोद पंडित, सुनील पंडित बताते हैं कि पहले पुश्तैनी धंधा जोर-शोर से चलता था. कम से कम त्योहारों में परेशानी नहीं होती थी. आम लोग मिट्टी के बर्तनों, खिलौने को दीपावली-छठ में पर्व में खरीदते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया है.

कुम्हारों ने बताई आपबीती
कुम्हारों की मानें तो पहले मिट्टी का दीये बड़े हर्षोल्लास के साथ खरीदकर लोग आपस में खुशियां बांटते थे. मिट्टी के बर्तनों को बेचकर हम सभी अपने बच्चों को उच्च शिक्षा और उत्तम संस्कार देते थे. लेकि धीरे-धीरे विदेशी चमक-धमक ने देशभर में पैठ बना ली और हमारा धंधा बंद होने की कगार पर आ गया है. आज हम भूखे मरने की स्थिति पर आ गये हैं.

नहीं मिल रही सरकारी सहायता
आधुनिकता की मार झेल रहे कुम्हार ने बताया कि हम कुम्हार को कोई सरकारी सहायता प्रदान नहीं किया गया है. हम सभी कुम्हारों का पुश्तैनी धंधा मृतप्राय हो चुका है. दीपावली पर्व में आम लोग मिट्टी के दीयों की जगह चाइनिज झालर उपयोग कर रहे हैं. मिट्टी की देवी देवता की जगह धातु से बनी प्रतिमा का उपयोग कर रहे हैं जिस कारण कुम्हार जाति का काम लुप्त हो गया है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.