बांका: भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष अनिल सिंह ने आगामी चुनाव से पहले बिहार में नीतीश के राजनितिक सफर के बारे में चर्चा की. उन्होंने बताया कि सन 2000 के आस-पास बिहार की राजनीति में जॉर्ज फर्नांडिस, दिग्विजय सिंह, नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा जैसे सरीखे नेता का उदय हुआ. इसी साल चारों ने मिलकर समता पार्टी का गठन किया जो बाद में जदयू सहित अन्य पार्टी में तब्दील हुई. एक ओर जहां राष्ट्रीय स्तर पर जॉर्ज फर्नांडिस और दिग्विजय सिंह अपनी पहचान बना रहे थे. वहीं, दूसरी ओर क्षेत्रीय क्षत्रप के रूप में नीतीश कुमार भी स्थापित हो रहे थे.
राजनीतिक मनमुटाव
दिग्विजय सिंह और नीतीश कुमार में 2008 से राजनीतिक मनमुटाव शुरू हुआ. दिग्विजय सिंह के काफी करीब रहे कार्यकर्ताओं की मानें तो नीतीश कुमार के मन में यह खटकने लगा था कि आज न कल दिग्विजय सिंह मात दे देंगे और बिहार के भावी मुख्यमंत्री के तौर पर स्थापित हो जाएंगे. यहीं से दिग्विजय सिंह और नीतीश कुमार में राजनीतिक द्वंद शुरू हो गया और दिग्विजय सिंह की मृत्यु के बाद भी अब तक जारी है.
नीतीश कुमार को सताने लगा था डर
भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष और रचना वाहिनी केवरिया कार्यकर्ता अनिल सिंह ने बताया कि दिग्विजय सिंह के राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनने के बाद नीतीश कुमार को डर सताने लगा था कि मुख्यमंत्री की कुर्सी उनसे खिसक रही है. 2009 लोकसभा चुनाव के दौरान यह राजनीतिक द्वंद खुलकर सामने आ गया. दिग्विजय सिंह ने नीतीश कुमार के इस चाल को भांप लिया था कि गद्दारी करेंगे. दिग्विजय सिंह ने बांका से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए गोपनीय तरीके से बांका में रचना वाहिनी का गठन किया. 2009 के लोकसभा चुनाव में टिकट देने की बारी आई तो दिग्विजय सिंह को टिकट नहीं देने के लिए नीतीश कुमार ने विद्रोह कर दिया. तब दिग्विजय सिंह राज्यसभा के सदस्य हुआ करते थे और बांका से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए राज्यसभा से इस्तीफा तक दे दिया था. टिकट नहीं देने को लेकर नीतीश कुमार की दलील थी कि वह टिकट मांगने नहीं आए हैं.
'इतने बुरे दिन नहीं की टिकट मांगनी पड़े'
अनिल सिंह ने बताया कि उस वक्त दिग्विजय सिंह ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि इतने दिन बुरे नहीं हुए हैं कि टिकट मांगने की जरूरत पड़ेगी. खुद पार्टी का निर्माण करते हैं और दूसरे को टिकट देते हैं. टिकट के लिए किसी की दरबारी करना पड़े और हाजिरी लगाना कदापि नहीं हो सकता है. उन्होंने उस वक्त कहा था कि टिकट लेना पड़ेगा तो बिहार की जनता से टिकट लेंगे. लेकिन नीतीश कुमार के सामने घुटने टिकने नहीं जाएंगे. 2009 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने दिग्विजय सिंह को हराने के लिए बांका में डेरा डाल दिया. फिर भी दिग्विजय सिंह निर्दलीय चुनाव जीते और लोकसभा पहुंचे.
भाजपा ने पेट में छूरा भोंका
दिग्विजय सिंह की मौत के बाद पुतुल कुमारी और श्रेयशी सिंह को नीतीश कुमार ने मिलने बुलाया था. नीतीश ने श्रेयशी सिंह को लोकसभा में चुनाव में लड़ने की बात कही. इस पर पुतुल कुमारी ने कहा कि श्रेयसी सिंह अपना कैरियर देख रही हैं और मेरे रहते हुए वह चुनाव क्यों लड़ेंगी. नीतीश कुमार ने इस पर अपना वक्तव्य दिया था कि ठीक है तो आप ही चुनाव लड़ेंगे. लेकिन उस वक्त पुतुल कुमारी भाजपा में थी और भाजपा ने टिकट देने की बात कही थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में आखीरी वक्त पर जदयू को टिकट दे दिया. नीतीश कुमार दिग्विजय सिंह के पीठ में छूरा भोंकने का काम किया तो भाजपा के पेट में छूरा भोंका.
नीतीश कुमार काबिज होने का कर रहे थे प्रयास
जिले के वरिष्ठ पत्रकार मनोज उपाध्याय ने बताया कि दिग्विजय सिंह, जार्ज फर्नांडीस और नीतीश कुमार समता पार्टी के स्थापना के पायोनियर थे. संस्थापकों में जॉर्ज फर्नांडिस के बाद सबसे अधिक किसी की चलती थी तो वह दिग्विजय सिंह ही थे. 2008 के आसपास दिग्विजय सिंह और नीतीश कुमार के बीच राजनीतिक अनबन शुरू हुई. नीतीश कुमार ज्यादा काबिज होने के प्रयास करने लगे. नीतीश कुमार बिहार में क्षेत्रीय क्षत्रप के रूप में उभर रहे थे और जॉर्ज फर्नांडिस और दिग्विजय सिंह राष्ट्रीय नेता के तौर पर स्थापित हो रहे थे. दिग्विजय सिंह के बढ़ते राजनीतिक कद को नीतीश कुमार हजम नहीं कर पा रहे थे. इसलिए उनका पर करना शुरू कर दिया और जो भी राजनीतिक निर्णय होता था वह नीतीश कुमार ही ले लेते थे. बिहार की राजनीति में दबदबा रखने की वजह से उनकी चल जाती थी.
नीतीश ने 8 दिनों तक बांका में किया था कैंप
वरिष्ठ पत्रकार मनोज उपाध्याय ने बताया कि स्थिति यह उत्पन्न हो गई कि दोनों के बीच राजनीतिक मनमुटाव के चलते ठीक है. 2009 के लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह को टिकट नहीं दिया गया. दिग्विजय सिंह को इस बात की भनक पहले से ही थी. इसको लेकर उन्होंने क्षेत्र में तैयारियां शुरु कर दी थी. दिग्विजय सिंह लोकसभा नहीं पहुंचे इसके लिए नीतीश कुमार ने लगातार आठ दिनों तक बांका में कैंप कर दिया था. उस वक्त दिग्विजय सिंह ने कहा था कि नीतीश कुमार भले ही टिकट काट लें. लेकिन बांका के लोग संसद जाने का टिकट दे चुके हैं. बांका के लोगों ने उन्हें जीताकर सांसद बनाया. दिग्विजय सिंह को इस बात का ठेंस और मलाल जिंदगी भर रहा है.