अरवल: जिले में अरवल और कुर्था दो विधानसभा क्षेत्र हैं. इस बार के चुनाव में क्षेत्र में विकास के साथ-साथ जातीय समीकरण भी हावी दिख रहा है. जनता को इंतजार है कि यह सीटें एनडीए और महागठंबन में किस दल के खाते में जाती है.
कुर्था में कोइरी जाति है हावी
कुर्था में कोइरी जाति सीधी टक्कर में होती है. उसका टक्कर यादव और भूमिहार समेत अन्य जातियों से होती है. 2015 में जेडीयू ने सत्यदेव सिंह को उम्मीदवार बनाया था. जो कोइरी जाति से आते है. कुर्था विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामजतन सिन्हा भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में थे. उन्हें पार्टी की ओर से टिकट नहीं मिला तो उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और निर्दलीय खड़े हो गए थे. यहां काफी दिलचस्प मुकाबला हुआ था. चुनाव में सत्यदेव सिंह ने जीत दर्ज की थी.
2015 में अरवल में बीजेपी की हुई थी जीत
वहीं, अरवल विधानसभा सीट पर बीजेपी प्रत्याशी चितरंजन कुमार की जीत हुई थी. 2010 के विधानसभा चुनाव में भी चितरंजन कुमार जीते थे, जबकि दूसरे नंबर पर माले के प्रत्याशी थे. अरवल में मुख्य रूप से भूमिहार जाति और यादव जाति के बीच टक्कर होती है. यहां कोइरी जाति निर्णायक भूमिका में रहती है. यह जाति जिनके पक्ष में गई, उनकी जीत सुनिश्चित मानी जाती है.
कभी नरसंहार के लिए था बदनाम
अरवल और कुर्था विधानसभा सीट पहले जहानाबाद जिले में आती थी. 20 अगस्त 2001 को अरवल जिले की स्थापना हुई और अरवल के साथ-साथ कुर्था विधानसभा क्षेत्र इस जिले में आ गई.
अरवल के जिला बदलने के बाद फरवरी 2005, नवंबर 2005, 2010 और 2015 का विधानसभा चुनाव हुआ है. अरवल जब जहानाबाद जिले में था तो यहां सबसे बड़ा नरसंहार हुआ था. जिसमें लक्ष्मणपुर बाथे, शंकर बिगहा और नारायणपुर नरसंहार शामिल हैं. कई लोगों की इसमें जाने गई थी. उस जनसंहार को भी अलग जिला बनने का कारण माना जाता है.