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दीपावली आयी तो कुम्हारों के चाक ने पकड़ी रफ्तार

दीपावली पर देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों के चाक ने रफ्तार पकड़ ली है. अररिया में कुम्हार मिट्टी के दीये और बर्तन बनाने में जुट गये हैं. कुम्हारों का कहना है उनकी माली हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही है.

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Published : Oct 31, 2021, 2:59 PM IST

अररिया: दीपावली (Diwali) के करीब आते ही कुम्हार अब मिट्टी के दीये और बर्तन बनाने में जुट गए हैं. दीपावली में लोग देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए दीपक जलाते हैं लेकिन उसे बनाने वाले कुम्हारों की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है. इसके बावजूद उन्होंने हालात बेहतर होने की आस लिये चाक की रफ्तार बढ़ा दी है.

ये भी पढ़ें: क्रेडिट कार्ड अधिकारी बनकर मांगा OTP, खाते से उड़ा लिये 1.17 लाख रुपये

मिट्टी के बर्तन और दीये बनाने वाले कुम्हारों का कहना है कि दीपावली के करीब आते ही लोगों को अपनी संस्कृति याद आने लगती है. नाम मात्र के मिट्टी के दीये और दूसरी चीजों की खरीदारी अब परंपरा भर रह गयी है. नगर परिषद क्षेत्र के वार्ड नंबर 25 में कुम्हारों की छोटी सी बस्ती है. यहां उनके चालीस-पचास घर हैं.

देखें रिपोर्ट

पहले यहां सभी मिट्टी का सामान बनाते थे लेकिन जैसे जैसे इलेक्ट्रॉनिक और चाइनीज बिजली के सामानों की बिक्री बढ़ी है, वैसे-वैसे कुम्हारों के सामने फाकाकशी की नौबत आने लगी है. इस कारोबार से जुड़े लोग सिमट गए हैं. दीपावली के करीब आते ही कुम्हारों ने दीये और अन्य बर्तन बनाने शुरू कर दिए हैं. इस काम में उनका पूरा परिवार जुड़ा हुआ है.

आधुनिकता के दौर में आज भी ये हाथों से चाक घुमाकर मिट्टी के दीये बना रहे हैं. इनका कहना है कि अब मिट्टी, जलावन सब महंगा हो गया है. बिक्री भी कम होती जा रही है. लोग सिर्फ सगुन के तौर पर मिट्टी के सामान खरीदते हैं. अगर यही हाल रहा तो जल्द ही ये कारोबार बंद करना पड़ेगा. सिर्फ दीपावली पर इनका कारोबार जोर पकड़ता है. बुजुर्ग कुम्हार गणपत पंडित ने बताया कि हमारा काम दीपावली के पहले से शुरू होता है और छठ तक चलता है. उसके बाद मिट्टी का काम लगभग बंद हो जाता है.

ये भी पढ़ें: अररिया में हत्या कर शव को नदी में फेंका, 15 दिनों के दिन के भीतर मिली दूसरी लाश

अररिया: दीपावली (Diwali) के करीब आते ही कुम्हार अब मिट्टी के दीये और बर्तन बनाने में जुट गए हैं. दीपावली में लोग देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए दीपक जलाते हैं लेकिन उसे बनाने वाले कुम्हारों की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है. इसके बावजूद उन्होंने हालात बेहतर होने की आस लिये चाक की रफ्तार बढ़ा दी है.

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मिट्टी के बर्तन और दीये बनाने वाले कुम्हारों का कहना है कि दीपावली के करीब आते ही लोगों को अपनी संस्कृति याद आने लगती है. नाम मात्र के मिट्टी के दीये और दूसरी चीजों की खरीदारी अब परंपरा भर रह गयी है. नगर परिषद क्षेत्र के वार्ड नंबर 25 में कुम्हारों की छोटी सी बस्ती है. यहां उनके चालीस-पचास घर हैं.

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पहले यहां सभी मिट्टी का सामान बनाते थे लेकिन जैसे जैसे इलेक्ट्रॉनिक और चाइनीज बिजली के सामानों की बिक्री बढ़ी है, वैसे-वैसे कुम्हारों के सामने फाकाकशी की नौबत आने लगी है. इस कारोबार से जुड़े लोग सिमट गए हैं. दीपावली के करीब आते ही कुम्हारों ने दीये और अन्य बर्तन बनाने शुरू कर दिए हैं. इस काम में उनका पूरा परिवार जुड़ा हुआ है.

आधुनिकता के दौर में आज भी ये हाथों से चाक घुमाकर मिट्टी के दीये बना रहे हैं. इनका कहना है कि अब मिट्टी, जलावन सब महंगा हो गया है. बिक्री भी कम होती जा रही है. लोग सिर्फ सगुन के तौर पर मिट्टी के सामान खरीदते हैं. अगर यही हाल रहा तो जल्द ही ये कारोबार बंद करना पड़ेगा. सिर्फ दीपावली पर इनका कारोबार जोर पकड़ता है. बुजुर्ग कुम्हार गणपत पंडित ने बताया कि हमारा काम दीपावली के पहले से शुरू होता है और छठ तक चलता है. उसके बाद मिट्टी का काम लगभग बंद हो जाता है.

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