अररिया: हिन्दी साहित्य में आंचलिक विधा को जन्म देने वाले और अपनी लेखनी के जरिए सुशोभित करने वाले देश के प्रख्यात लेखक फणीश्वरनाथ रेणु का आज 101 वां जन्मदिन (Phanishwar Nath Renu Birth Anniversary) है. उनका जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना गांव में हुआ था. इस मौके जिला प्रशासन की ओर से जन्म शताब्दी समारोह मनाया जा रहा है. इस मौके पर पदाधिकारियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी.
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बिहार के अररिया जिले में कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु के जन्म शताब्दी को लेकर जिले में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित हुए. समारोह की शुरुआत थाना चौक स्थित रेणुकुंज में रेणु जी की प्रतिमा पर पदाधिकारियों ने माल्यार्पण कर शुरू की. मौके पर डीएम ने बताया कि आज गर्व की बात है कि फणीश्वरनाथ रेणु अररिया जिला के रहने वाले थे. हम लोगों को इस पर गर्व करना चाहिए और इसी को लेकर जिले में कई कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं. जिसकी शुरुआत रेणुकुंज से माल्यार्पण कर हुई.
दिलों पर असर डालती हैं फणीश्वर की कृतियां: हिन्दी साहित्य में आंचलिक विधा को जन्म देने वाले फणीश्वरनाथ रेणु किसी परिचय के मोहताज नहीं है. उनके लेखनी की विशेषता ये है कि उनकी रचनाओं के केंद्र में गांव का जीवन और तत्कालीन परिस्थितियों का वर्णन लोगों को खुद से जोड़े रखने पर मजबूर करता है. उनकी साहित्यिक कृतियां आज भी लोगों के दिल पर असर डालती हैं.
उनके प्रमुख उपनयास और कहानियों में मैला आंचल (Maila Aanchal), परती परिकथा, मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम), जूलूस, कितने चौराहे, पलटू बाबू रोड, एक आदिम रात्रि की महक, लाल पान की बेगम, अग्निखोर और अच्छे आदमी जैसी कई कृतियां शामिल हैं. अपने प्रथम उपन्यास 'मैला आंचल' के लिये उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.
रचना 'मारे गये गुलफाम' पर बनी फिल्म: रेणु की रचना मारे गये गुलफाम पर 'तीसरी कसम' फिल्म भी बनी. निर्माता निर्देशक बासु भट्टाचार्य और गीतकार शैलेन्द्र ने राजकपूर और वहीदा रहमान को लेकर तीसरी कसम फिल्म का निर्माण किया था. यह फिल्म हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर मानी जाती है.
फणीश्वरनाथ रेणु की कृतियों में प्रेमचंद की छाप नजर आती है. कहना गलत ना होगा कि प्रेमचंद से प्रभावित होकर ही रेणु ने ग्रामीण जनजीवन को अपनी रचनाओं का आधार बनाया. फणीश्वरनाथ ने अपनी कहानियों में गांव की सुंदरता, प्रथाएं और दुरुह व्यवस्थाओं का वर्णन जिस तरह किया है उसमें प्रेमचंद की स्पष्ट छाप नजर आती है. फणीश्वरनाथ रेणु ने कल्पनाओं की बैसाखी सहारा नहीं लिया, बल्कि अपने चारों ओर जिन परिस्थितियों से दो-चार हुए या महसूस किया, वही लिखा. यही वजह है कि साहित्य की दुनिया से लगाव रखने वाले करोड़ों लोग आज भी उनके प्रशंसक हैं.
फणीश्वरनाथ रेणु ने दुनिया को कहा अलविदा: बिहार में 1974 में हुई संपूर्ण क्रांति के दौरान फणीश्वरनाथ रेणु की मुलाकात जयप्रकाश नारायण से हुई और उनसे उनका भावनात्मक संबंध बन गया था. वर्ष 1977 में 22 मार्च को आपातकाल खत्म हुआ, तो प्रसन्न मन से रेणु ने अपना एक ऑपरेशन कराया. जिसके बाद वो अचेतावस्था में चले गए. इसी हालात में 11 अप्रैल 1977 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.
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