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Dussehra 2021: 450 साल पहले 'सिंदूर खेला' की हुई थी शुरुआत, जानें क्या है इसका रहस्य

आज दशहरा के अवसर पर अररिया में महिलाएं सिंदूर खेलते हुए नजर आ रही हैं. जहां महिलाएं एक-दूसरे की मांग और गाल पर सिंदूर लगाकर मां की विदाई की तैयारियां कर रही हैं. देखें VIDEO...

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Published : Oct 15, 2021, 12:56 PM IST

Updated : Oct 15, 2021, 1:37 PM IST

अररिया: नवरात्रि (Navratri 2021) का त्योहार देश में हर जगह अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए लोग नौ दिनों तक व्रत-उपवास करते हैं. इसके साथ ही दशहरा (Dusseehra) के दिन सिंदूर उत्सव का भी महत्व है. वहीं, बिहार के अररिया जिले के आश्रम मोहल्ले में मां दुर्गा को विदाई देने बंगाली समुदाय की महिला इकट्ठा हुई. जहां सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर सुहागिन रहने की शुभकामनाएं दी.

इसे भी पढ़ें: बिहार की NDA सरकार 'दसानन रावण', RJD का आह्वान- '..आइए इसे उखाड़ फेंकते हैं'

शारदीय नवरात्रि के अंतिम दिन दुर्गा पूजा और दशहरा के अवसर पर बंगाली समुदाय की महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं. जिसे सिंदूर खेला (Sindoor Khela In Araria) के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि ये उत्सव मां की विदाई के रूप में मनाया जाता है. सिंदूर खेला के दिन पान के पत्तों से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श करते हुए उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाकर महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं. बता दें कि ये उत्सव महिलाएं दुर्गा विसर्जन के दिन ही मनाती हैं.

देखें रिपोर्ट.

ये भी पढ़ें: CM नीतीश, तेजस्वी सहित कई नेताओं ने प्रदेश वासियों को दी विजयादशमी की शुभकामनाएं

माना जाता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा 10 दिनों के लिए अपने मायके आती हैं. इसलिए इन्हीं 10 दिनों को दुर्गा उत्सव के रूप में मनाया जाता है. इसके बाद 10वें दिन माता पार्वती अपने घर यानी भगवान शिव के पास कैलाश पर्वत पर चली जाती हैं. कहा जाता है कि लगभग 450 साल पहले बंगाल में दुर्गा विसर्जन से पहले सिंदूर खेला का उत्सव मनाया गया था. वहीं, इस उत्सव को मनाने के पीछे लोगों की मान्यता है कि ऐसा करने से मां दुर्गा उनके सुहाग की उम्र लंबी करेंगी.

विसर्जन के दिन अनुष्ठान की शुरुआत महाआरती से होती है और देवी मां को शीतला भोग अर्पित किया जाता है. जिसमें कोचुर शाक, पंता भात और इलिश माछ को शामिल किया जाता है. पूजा के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है. पूजा में एक दर्पण को देवी के ठीक सामने रखा जाता है और श्रद्धालु देवी दुर्गा के चरणों की एक झलक पाने के लिए दर्पण में देखते हैं. मान्यता है कि जिसे दपर्ण में मां दुर्गा के चरण दिख जाते हैं उन्हें सौभाग्य की प्राप्ति होती है.

पूजा के बाद देवी बोरोन किया जाता है, जहां विवाहित महिलाएं देवी को अंतिम अलविदा कहने के लिए कतार में खड़ी होती हैं. उनकी बोरान थाली में सुपारी, पान का पत्ता, सिंदूर, आलता, अगरबत्ती और मिठाइयां होती हैं. वे अपने दोनों हाथों में पान का पत्ता और सुपारी लेती हैं और मां के चेहरे को पोंछती हैं. इसके बाद मां को सिंदूर लगाया जाता है. शाखां और पोला (लाल और सफेद चूड़ियां) पहनाकर मां को विदाई दी जाती हैं. मिठाई और पान-सुपारी चढ़ाया जाता है. आंखों में आंसू लिए हुए मां को विदाई दी जाती है.

अररिया: नवरात्रि (Navratri 2021) का त्योहार देश में हर जगह अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए लोग नौ दिनों तक व्रत-उपवास करते हैं. इसके साथ ही दशहरा (Dusseehra) के दिन सिंदूर उत्सव का भी महत्व है. वहीं, बिहार के अररिया जिले के आश्रम मोहल्ले में मां दुर्गा को विदाई देने बंगाली समुदाय की महिला इकट्ठा हुई. जहां सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर सुहागिन रहने की शुभकामनाएं दी.

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शारदीय नवरात्रि के अंतिम दिन दुर्गा पूजा और दशहरा के अवसर पर बंगाली समुदाय की महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं. जिसे सिंदूर खेला (Sindoor Khela In Araria) के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि ये उत्सव मां की विदाई के रूप में मनाया जाता है. सिंदूर खेला के दिन पान के पत्तों से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श करते हुए उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाकर महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं. बता दें कि ये उत्सव महिलाएं दुर्गा विसर्जन के दिन ही मनाती हैं.

देखें रिपोर्ट.

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माना जाता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा 10 दिनों के लिए अपने मायके आती हैं. इसलिए इन्हीं 10 दिनों को दुर्गा उत्सव के रूप में मनाया जाता है. इसके बाद 10वें दिन माता पार्वती अपने घर यानी भगवान शिव के पास कैलाश पर्वत पर चली जाती हैं. कहा जाता है कि लगभग 450 साल पहले बंगाल में दुर्गा विसर्जन से पहले सिंदूर खेला का उत्सव मनाया गया था. वहीं, इस उत्सव को मनाने के पीछे लोगों की मान्यता है कि ऐसा करने से मां दुर्गा उनके सुहाग की उम्र लंबी करेंगी.

विसर्जन के दिन अनुष्ठान की शुरुआत महाआरती से होती है और देवी मां को शीतला भोग अर्पित किया जाता है. जिसमें कोचुर शाक, पंता भात और इलिश माछ को शामिल किया जाता है. पूजा के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है. पूजा में एक दर्पण को देवी के ठीक सामने रखा जाता है और श्रद्धालु देवी दुर्गा के चरणों की एक झलक पाने के लिए दर्पण में देखते हैं. मान्यता है कि जिसे दपर्ण में मां दुर्गा के चरण दिख जाते हैं उन्हें सौभाग्य की प्राप्ति होती है.

पूजा के बाद देवी बोरोन किया जाता है, जहां विवाहित महिलाएं देवी को अंतिम अलविदा कहने के लिए कतार में खड़ी होती हैं. उनकी बोरान थाली में सुपारी, पान का पत्ता, सिंदूर, आलता, अगरबत्ती और मिठाइयां होती हैं. वे अपने दोनों हाथों में पान का पत्ता और सुपारी लेती हैं और मां के चेहरे को पोंछती हैं. इसके बाद मां को सिंदूर लगाया जाता है. शाखां और पोला (लाल और सफेद चूड़ियां) पहनाकर मां को विदाई दी जाती हैं. मिठाई और पान-सुपारी चढ़ाया जाता है. आंखों में आंसू लिए हुए मां को विदाई दी जाती है.

Last Updated : Oct 15, 2021, 1:37 PM IST
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