अररिया : बिहार के अररिया में भारत-नेपाल सीमा से सटे कुर्साकांटा प्रखंड के कुआड़ी पंचायत में स्थित सार्वजनिक दुर्गा मंदिर की स्थापना की जानकारी तो सही तरीके से किसी के पास नहीं है, लेकिन यहां के बुजुर्गों का कहना है कि इसकी स्थापना लगभग डेढ़ सौ वर्ष पहले हुई थी. तभी से इस मंदिर की ख्याति लगातार बढ़ती जा रही थी. यहां के पुजारी पंडित ज्ञानमोहन मिश्र का कहना है कि ये दुर्गा मंदिर शक्तिपीठ के साथ मनोकामना सिद्ध पीठ के रूप में विख्यात है.
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"वैसे तो सार्वजनिक दुर्गा मंदिर में मां शक्ति की पूजा अर्चना कब से हो रही है. इसकी प्रमाणिक जानकारी नहीं है, लेकिन जानकारों की माने तो मंदिर में शक्ति की पूजा अर्चना लगभग डेढ़ सौ वर्षों से की जा रही है. इस मंदिर में सच्चे दिल से भक्तों द्वारा मांगी गई मुरादें अवश्य पूरी होती है। श्रद्धालुओं की बढ़ती आस्था की वजह से ये सार्वजनिक दुर्गा मंदिर शक्तिपीठ का रूप ले चुकी है."- पंडित ज्ञानमोहन मिश्र, पुजारी
पहले घास फूस की बनी थी मंदिर : स्थानीय लोगों की माने तो शुरुआती काल में घास फूस के बने कुआड़ी दुर्गा मंदिर में पूजा अर्चना होती थी. स्थानीय लोगों के सहयोग से मंदिर में टीना का छत बनाया गया था. वहीं काफी दिनों के बाद सार्वजनिक दुर्गा मंदिर की बढ़ती ख्याति व श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होने की चर्चा जोरों पर होने लगी तो, स्थानीय लोगों के सहयोग से मंदिर का छत बनाया गया. मंदिर में पूर्व में शारदीय नवरात्र की नवमी को बलि प्रदान दी जाती थी. इसे कालांतर में लगभग 15 वर्ष पहले स्थानीय लोगों की आपसी सहमति व पूजा समिति के प्रयास से बंद कर दिया गया.
" इस मंदिर में मनोकामना पूर्ण होने के बाद कई लोगों ने गुप्त रूप से दान किया और उसे दान के राशि से इस मंदिर का भाव रूप से निर्माण किया गया है. पहले यहां घास फूस के बने मंदिर में पूजा अर्चना होती थी. यहां पेट्रोमेक्स की रोशनी में पूजा होती थी."- अमित कुमार साह, अध्यक्ष, पूजा समिति
15 साल पहले बंद हो गई बलि प्रथा : मंदिर में बलि प्रथा पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगने के बाद से वैष्णव पद्धति से पूजा अर्चना की जा रही है. वर्ष में दो बार चैत्र व आश्विन मास में नवरात्र में मंदिर में कलश स्थापना से दशमी तक की पूजा होती है. वैसे तो इस मंदिर में मां दुर्गा की पूजा सालों भर होती है. इसके लिए मंदिर के ऊपरी तले पर संगमरमर की मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की गई है, लेकिन नवरात्रि के शुरू होते ही मंदिर के निचले हिस्से में मिट्टी की भव्य प्रतिमा बनाई जाती है.
पूरे नवरात्र होती है भजन संध्या : नवरात्र के अवसर पर प्रत्येक दिन संध्या में पूजा समिति की ओर से कीर्तन मंडली के द्वारा भजन संध्या का आयोजन किया जाता है. वहीं षष्टी तिथि को विधि विधान पूर्वक वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पुरोहित द्वारा गाजे बाजे के साथ जुड़वां बेल को आमंत्रण दिया जाता है. वहीं सप्तमी को अधिष्ठात्री देवी के स्वरूप को पालकी पर मंदिर में प्रवेश कराया जाता है. महानिशा पूजा में सैकड़ों लोग निशा पूजा में देर रात तक भक्ति भाव से पूजा करते हैं. नवमी व दशमी को मां दुर्गा का दर्शन करने व महा प्रसाद ग्रहण करने श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.
नेपाल से आने वाले श्रद्धालुओं का लगा रहता है तांता : भारत नेपाल सीमा पर स्थित होने के कारण नेपाली श्रद्धालुओं की संख्या भी काफी रहती है. वहीं आयोजक समिति द्वारा नवमी व दशमी में भक्ति जागरण कार्यक्रम का आयोजन किया जाता रहा है. नवरात्रि के मौके पर मंदिर से 500 मीटर की दूरी तक पंडाल का निर्माण किया जाता है और उसके पास ही एक मेला भी लगता है. शारदीय नवरात्र में दस दिन तक मंदिर परिसर दूधिया रोशनी में जगमगाता रहता है, जो कि आकर्षण का केंद्र बना रहता है.
"यह मंदिर बहुत पुराना है. उस समय भी यहां मेला लगता था. हमारे पंचायत का यह दुर्गा मंदिर जिले के लिए के लिए गौरव है.यहां मांगी गई मुराद पूरी होती है. इस वजह से लोग गुप्त रूप से दान करते हैं और उसे राशि से इस मंदिर को भव्य रूप से बनाया गया है. " -वीणा देवी, मुखिया, कुआड़ी पंचायत