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Birthday special: समाज की सच्चाई से रूबरू कराती हैं प्रकाश झा की फिल्में

बॅालीवुड के मशहूर निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा हमेशा ही अलग तरह की फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं. 'गंगाजल', 'राजनीति' और 'सत्याग्रह' जैसी सुपरहिट फिल्मों का निर्माण करने वाले प्रकाश झा का आज जन्मदिन है. उनका जन्म 27 फरवरी 1952 को बिहार में हुआ था. आज इस मास्टर कहानीकार के जन्मदिन पर जानते हैं उनके और उनकी फिल्मों से जुड़ी कुछ खास बातें...

Birthday special Prakash Jha
Birthday special Prakash Jha
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Published : Feb 27, 2020, 4:32 AM IST

Updated : Mar 2, 2020, 5:14 PM IST

मुंबई: हमारी जिंदगी हमें जो भी मौका देती है, अगर हम उसका सही इस्तेमाल करें तो रास्ते और अवसर अपने आप मिलने लगते हैं. किसको पता था कि बिहार के एक किसान परिवार का ये युवा सपनों के शहर में जाकर अपने सपनों को पूरा करेगा.

हम बात कर रहे हैं फिल्म निर्माता प्रकाश झा की. जो मनोरंजक कंटेंट के साथ कड़ी मेहनत वाली फिल्मों को बनाने के लिए जाने जाते हैं. आज फिल्म निर्माता के जन्मदिन के खास अवसर पर ईटीवी भारत सितारा प्रकाश झा के जीवन और कार्यों के बारे में कुछ खास बातें आप तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा है.

प्रकाश ने दिल्ली विश्वविद्यालय से फिजिक्स में बीएससी (ऑनर्स) किया, जिसके बाद उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास कर आईएएस बनने के लिए मेहनत करना शुरू की. लेकिन, वह इससे संतुष्ट नहीं हुए और हमेशा खुद से पूछते रहे कि क्या उन्हें अपने जीवन में यही करना है? अपने मन की आवाज को सुन कर प्रकाश 70 के दशक में 300 रूपये के साथ मुंबई आए.

यहां से उनके जुनून, साहस और दृढ़ संकल्प की कहानी शुरू होती है.

प्रकाश को पेंटिंग करना बहुत पसंद था, जो कि उन्होंने तिलैया के सैनिक स्कूल से डेवलप किया था. उन्होंने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में एडमिशन लेने के बारे में सोचा, जिसके लिए उन्हें अगला सेमेस्टर शुरू होने तक इंतजार करना था. इस बीच उन्होंने अपनी पहली नौकरी एक अंग्रेजी ट्यूटर के रूप में शुरू की. जिसमें उनके छात्र उनसे ज्यादा उम्र के बिजनेसमैन थे.

जहांगीर आर्ट गैलरी और जेजे आर्ट गैलरी से गुजरते हुए दिन बीत रहे थे, फिर एक दिन झा की मुलाकात आग़ा जानी से हुई, जो फिल्मों में एक कला निर्देशक के रूप में काम करते थे. उन दिनों जानी डायरेक्टर चांद की 'धर्मा' फिल्म पर काम कर रहे थे. प्रकाश के अनुरोध पर, वह एक बार उन्हें नवीन निश्चल, प्राण और रेखा अभिनीत इस फिल्म के सेट पर ले गए. सेट पर हर काम करने वाले के अंदर अलग ही एनर्जी का उन्हें एहसास हुआ और वह फिल्म मेकिंग से बहुत प्रभावित हुए. जिसके बाद प्रकाश ने खुद महसूस किया कि फिल्म मेकिंग ही है जो वह अपने जीवन में करना चाहते हैं.

प्रकाश ने चांद के असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में पांच दिनों के लिए काम किया. फिर उन्हें एहसास हुआ कि एक असिस्टेंट के रूप में बने रहने से उन्हें फिल्म निर्माता बनने में कई साल लगेंगे. छठे दिन वह एफटीआईआई, पुणे के लिए रवाना हो गए.

कॉलेज छोड़ने के कारण, प्रकाश केवल एक कोर्स ही कर सकते थे, जिसके बारे में जानते हुए भी वह एक डिग्री प्राप्त करने के लिए वापस मुंबई आ गए. उन्होंने एक होटल में काम करते हुए सम्मानित संस्थान में प्रवेश के लिए शैक्षणिक योग्यता हासिल कर ली, जिससे उन्हें एफटीआईआई में एडिटिंग कोर्स के लिए अपनी फीस जमा करने के लिए फंड जमा करने में मदद मिली.

प्रकाश उस समय एफटीआईआई में थे, जब डेविड धवन, रेणु सलूजा, केतन मेहता, कुंदन शाह, विधु विनोद चोपड़ा और सईद मिर्ज़ा भी वहां उपस्थित थे. नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी भी एक शानदार बैच का हिस्सा थे.

दुर्भाग्य से, छात्रों और डायरेक्टर गिरीश कर्नाड के बीच झगड़ा हो गया. जिसके बाद प्रशासन ने संस्थान को बंद कर दिया.

जिसके बाद झा ने डॉक्यूमेंट्री मेकिंग के मार्केट में एंट्री की और 1975 से 1981 के बीच इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस और रूस की यात्रा की.

उन प्रारंभिक वर्षों के दौरान, झा ने बैले डांसर फिरोजा लाली के जीवन पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई. लंदन और रूस में रहने के दौरान, झा ने अपने अंदर एक बदलाव भी महसूस किया.

जिसके बाद बिहार शरीफ के दंगों पर आधारित उनकी डॉक्यूमेंट्री 'फेसिज़ आफ्टर द स्टॉर्म' ने1984 में सर्वश्रेष्ठ नॉन-फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता.

Birthday special Prakash Jha
फिल्म की शूटिंग के दौरान फिल्म निर्माता प्रकाश झा

फिल्मों की इस अस्थिर दुनिया में, एक फिल्म निर्माता को एक विशिष्ट कद हासिल करने के लिए यह पता होना चाहिए कि कौन सी स्टोरी को कहां सेट करना है और उसे कब दर्शकों के सामने लाना है.

झा ने उस समय इस मार्केट में प्रवेश किया जब भारतीय सिनेमा 'गोल्डन एज' की ओर अग्रसर था. बदलते समय के साथ उन्होंने खुद में भी बदलाव लाया. माधुरी दीक्षित स्टारर फिल्म 'मृत्युदंड' से उन्होंने आर्ट ऑफ सिनेमा और कॉमर्स ऑफ सिनेमा के बीच संतुलन बनाना सिखा.

Birthday special Prakash Jha
प्रकाश झा की फिल्म 'मृत्युदंड' के एक सीन के दौरान माधुरी दीक्षित

फिल्म निर्माता, जो सामाजिक मुद्दों के इर्द गिर्द अपनी कहानियों को बुनने के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि वह केवल एक दर्शक हैं जो अपने आस-पास घटित होने वाली चीजों को देखता है और यह समझने की कोशिश करता है कि ऐसा क्यों हो रहा है? इस प्रकार उनकी कहानियां इस बात पर ध्यान केंद्रित करती हैं कि क्या सही है और क्या नहीं?

मल्टीपल नेशनल अवार्ड प्राप्तकर्ता अभी भी इंडस्ट्री में भाग लेने वाले युवा से प्रेरित होते हैं.

एक निपुण फिल्म निर्माता के अलावा, झा ने 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' को प्रोड्यूस भी किया. 'जय गंगाजल' और 'सांड की आंख' जैसी फिल्मों में उन्होंने एक अभिनेता के रूप में अपने प्रदर्शन के लिए दर्शकों से सराहना भी पाई.

Birthday special Prakash Jha
फिल्म जय गंगाजल के एक सीन के दौरान प्रियंका चोपड़ा के साथ प्रकाश झा

प्रकाश का एनजीओ 'अनुभूति' बिहार में विकास की पहल के साथ गंभीर रूप से जुड़ा हुआ है.

सामाजिक मुद्दों के लिए झा की चिंता जाहिर तौर पर स्क्रीन तक ही सीमित नहीं है क्योंकि उन्होंने बदलाव लाने की उम्मीद के साथ राजनीति में कदम रखा. प्रकाश संसद के सदस्य बनना चाहते थे क्योंकि उन्हें लगता है कि जो लोग चुने जाते हैं वह अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाते हैं और आउटसोर्सिंग का उपयोग नहीं करते हैं और वह उन्हें दिखाना चाहते हैं कि यह कैसे किया जा सकता है.

झा, जो यूनिवर्सल फैक्ट में विश्वास करते हैं, उन्होंने अपनी कलात्मकता के साथ खूब एक्सपेरिमेंट किया.

उन्होंने 2019 में 'फ़्रॉड सैयां' को प्रोड्यूस किया.

फिल्म निर्माताओं के साथ एक बार में अपनी प्रमुखता खोने का जोखिम होता है. लेकिन झा इससे परेशान नहीं होते हैं.

आने वाले समय में, झा की योजना भारतीय गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह की कहानी को सेल्युलाइड पर लाने की है. एक और फिल्म जो वह सबसे लंबे समय से बनाना चाहते हैं, वह हिमालयी घाटी के दूरदराज के गांवों में बहुपतित्व की प्राचीन प्रथा पर है.

इस मास्टर कहानीकार की जर्नी उनके शब्दों के साथ खत्म करने से ज्यादा बेहतर कुछ नहीं हो सकता.

आदमी सिर्फ जिंदा ही नहीं रहे, जमके जिंदा रहे

कि एहसास बना रहे सांसे सिर्फ चल नहीं रही हैं, सांसे बोल रही हैं...

मुंबई: हमारी जिंदगी हमें जो भी मौका देती है, अगर हम उसका सही इस्तेमाल करें तो रास्ते और अवसर अपने आप मिलने लगते हैं. किसको पता था कि बिहार के एक किसान परिवार का ये युवा सपनों के शहर में जाकर अपने सपनों को पूरा करेगा.

हम बात कर रहे हैं फिल्म निर्माता प्रकाश झा की. जो मनोरंजक कंटेंट के साथ कड़ी मेहनत वाली फिल्मों को बनाने के लिए जाने जाते हैं. आज फिल्म निर्माता के जन्मदिन के खास अवसर पर ईटीवी भारत सितारा प्रकाश झा के जीवन और कार्यों के बारे में कुछ खास बातें आप तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा है.

प्रकाश ने दिल्ली विश्वविद्यालय से फिजिक्स में बीएससी (ऑनर्स) किया, जिसके बाद उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास कर आईएएस बनने के लिए मेहनत करना शुरू की. लेकिन, वह इससे संतुष्ट नहीं हुए और हमेशा खुद से पूछते रहे कि क्या उन्हें अपने जीवन में यही करना है? अपने मन की आवाज को सुन कर प्रकाश 70 के दशक में 300 रूपये के साथ मुंबई आए.

यहां से उनके जुनून, साहस और दृढ़ संकल्प की कहानी शुरू होती है.

प्रकाश को पेंटिंग करना बहुत पसंद था, जो कि उन्होंने तिलैया के सैनिक स्कूल से डेवलप किया था. उन्होंने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में एडमिशन लेने के बारे में सोचा, जिसके लिए उन्हें अगला सेमेस्टर शुरू होने तक इंतजार करना था. इस बीच उन्होंने अपनी पहली नौकरी एक अंग्रेजी ट्यूटर के रूप में शुरू की. जिसमें उनके छात्र उनसे ज्यादा उम्र के बिजनेसमैन थे.

जहांगीर आर्ट गैलरी और जेजे आर्ट गैलरी से गुजरते हुए दिन बीत रहे थे, फिर एक दिन झा की मुलाकात आग़ा जानी से हुई, जो फिल्मों में एक कला निर्देशक के रूप में काम करते थे. उन दिनों जानी डायरेक्टर चांद की 'धर्मा' फिल्म पर काम कर रहे थे. प्रकाश के अनुरोध पर, वह एक बार उन्हें नवीन निश्चल, प्राण और रेखा अभिनीत इस फिल्म के सेट पर ले गए. सेट पर हर काम करने वाले के अंदर अलग ही एनर्जी का उन्हें एहसास हुआ और वह फिल्म मेकिंग से बहुत प्रभावित हुए. जिसके बाद प्रकाश ने खुद महसूस किया कि फिल्म मेकिंग ही है जो वह अपने जीवन में करना चाहते हैं.

प्रकाश ने चांद के असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में पांच दिनों के लिए काम किया. फिर उन्हें एहसास हुआ कि एक असिस्टेंट के रूप में बने रहने से उन्हें फिल्म निर्माता बनने में कई साल लगेंगे. छठे दिन वह एफटीआईआई, पुणे के लिए रवाना हो गए.

कॉलेज छोड़ने के कारण, प्रकाश केवल एक कोर्स ही कर सकते थे, जिसके बारे में जानते हुए भी वह एक डिग्री प्राप्त करने के लिए वापस मुंबई आ गए. उन्होंने एक होटल में काम करते हुए सम्मानित संस्थान में प्रवेश के लिए शैक्षणिक योग्यता हासिल कर ली, जिससे उन्हें एफटीआईआई में एडिटिंग कोर्स के लिए अपनी फीस जमा करने के लिए फंड जमा करने में मदद मिली.

प्रकाश उस समय एफटीआईआई में थे, जब डेविड धवन, रेणु सलूजा, केतन मेहता, कुंदन शाह, विधु विनोद चोपड़ा और सईद मिर्ज़ा भी वहां उपस्थित थे. नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी भी एक शानदार बैच का हिस्सा थे.

दुर्भाग्य से, छात्रों और डायरेक्टर गिरीश कर्नाड के बीच झगड़ा हो गया. जिसके बाद प्रशासन ने संस्थान को बंद कर दिया.

जिसके बाद झा ने डॉक्यूमेंट्री मेकिंग के मार्केट में एंट्री की और 1975 से 1981 के बीच इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस और रूस की यात्रा की.

उन प्रारंभिक वर्षों के दौरान, झा ने बैले डांसर फिरोजा लाली के जीवन पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई. लंदन और रूस में रहने के दौरान, झा ने अपने अंदर एक बदलाव भी महसूस किया.

जिसके बाद बिहार शरीफ के दंगों पर आधारित उनकी डॉक्यूमेंट्री 'फेसिज़ आफ्टर द स्टॉर्म' ने1984 में सर्वश्रेष्ठ नॉन-फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता.

Birthday special Prakash Jha
फिल्म की शूटिंग के दौरान फिल्म निर्माता प्रकाश झा

फिल्मों की इस अस्थिर दुनिया में, एक फिल्म निर्माता को एक विशिष्ट कद हासिल करने के लिए यह पता होना चाहिए कि कौन सी स्टोरी को कहां सेट करना है और उसे कब दर्शकों के सामने लाना है.

झा ने उस समय इस मार्केट में प्रवेश किया जब भारतीय सिनेमा 'गोल्डन एज' की ओर अग्रसर था. बदलते समय के साथ उन्होंने खुद में भी बदलाव लाया. माधुरी दीक्षित स्टारर फिल्म 'मृत्युदंड' से उन्होंने आर्ट ऑफ सिनेमा और कॉमर्स ऑफ सिनेमा के बीच संतुलन बनाना सिखा.

Birthday special Prakash Jha
प्रकाश झा की फिल्म 'मृत्युदंड' के एक सीन के दौरान माधुरी दीक्षित

फिल्म निर्माता, जो सामाजिक मुद्दों के इर्द गिर्द अपनी कहानियों को बुनने के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि वह केवल एक दर्शक हैं जो अपने आस-पास घटित होने वाली चीजों को देखता है और यह समझने की कोशिश करता है कि ऐसा क्यों हो रहा है? इस प्रकार उनकी कहानियां इस बात पर ध्यान केंद्रित करती हैं कि क्या सही है और क्या नहीं?

मल्टीपल नेशनल अवार्ड प्राप्तकर्ता अभी भी इंडस्ट्री में भाग लेने वाले युवा से प्रेरित होते हैं.

एक निपुण फिल्म निर्माता के अलावा, झा ने 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' को प्रोड्यूस भी किया. 'जय गंगाजल' और 'सांड की आंख' जैसी फिल्मों में उन्होंने एक अभिनेता के रूप में अपने प्रदर्शन के लिए दर्शकों से सराहना भी पाई.

Birthday special Prakash Jha
फिल्म जय गंगाजल के एक सीन के दौरान प्रियंका चोपड़ा के साथ प्रकाश झा

प्रकाश का एनजीओ 'अनुभूति' बिहार में विकास की पहल के साथ गंभीर रूप से जुड़ा हुआ है.

सामाजिक मुद्दों के लिए झा की चिंता जाहिर तौर पर स्क्रीन तक ही सीमित नहीं है क्योंकि उन्होंने बदलाव लाने की उम्मीद के साथ राजनीति में कदम रखा. प्रकाश संसद के सदस्य बनना चाहते थे क्योंकि उन्हें लगता है कि जो लोग चुने जाते हैं वह अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाते हैं और आउटसोर्सिंग का उपयोग नहीं करते हैं और वह उन्हें दिखाना चाहते हैं कि यह कैसे किया जा सकता है.

झा, जो यूनिवर्सल फैक्ट में विश्वास करते हैं, उन्होंने अपनी कलात्मकता के साथ खूब एक्सपेरिमेंट किया.

उन्होंने 2019 में 'फ़्रॉड सैयां' को प्रोड्यूस किया.

फिल्म निर्माताओं के साथ एक बार में अपनी प्रमुखता खोने का जोखिम होता है. लेकिन झा इससे परेशान नहीं होते हैं.

आने वाले समय में, झा की योजना भारतीय गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह की कहानी को सेल्युलाइड पर लाने की है. एक और फिल्म जो वह सबसे लंबे समय से बनाना चाहते हैं, वह हिमालयी घाटी के दूरदराज के गांवों में बहुपतित्व की प्राचीन प्रथा पर है.

इस मास्टर कहानीकार की जर्नी उनके शब्दों के साथ खत्म करने से ज्यादा बेहतर कुछ नहीं हो सकता.

आदमी सिर्फ जिंदा ही नहीं रहे, जमके जिंदा रहे

कि एहसास बना रहे सांसे सिर्फ चल नहीं रही हैं, सांसे बोल रही हैं...

Last Updated : Mar 2, 2020, 5:14 PM IST
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