बीजिंग : हाल ही में अमेरिका में ब्लूमबर्ग न्यूज़ की वेबसाइट पर प्रकाशित एक कॉलम में कहा गया है कि चीन और भारत ने ग्लोबल वार्मिंग से निपटने में "कल्पना से अधिक" काम किया है. वैश्विक जलवायु के भविष्य का सबसे महत्वपूर्ण अनुमानित सूचकांक यानी कि स्वच्छ ऊर्जा का बंदोबस्त और इससे जीवाश्म ईंधन का स्थान लेने की गति के मामले में कहा जाए, तो दोनों देश लीडर बनकर उभर रहे हैं. लेख में कहा गया कि चीन का प्रति व्यक्ति ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन अमेरिका का आधा है, वहीं भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अमेरिका का केवल सातवां हिस्सा है.
पवन, सौर, बैटरी भंडारण आदि सहित स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियाँ अब प्रतिस्पर्धी हैं और कई स्थितियों में कोयला, तेल या प्राकृतिक गैस से सस्ती हैं. संबंधित प्रगति का नेतृत्व न केवल यूरोप ने किया है, बल्कि चीन, भारत, चिली, मोरक्को, वियतनाम आदि देशों ने भी किया है. लेख में उद्धृत आंकड़ों से पता चलता है कि चीन की वर्तमान पवन ऊर्जा उत्पादन अमेरिका की तुलना में लगभग दोगुना है, और इसकी सौर ऊर्जा उत्पादन दुनिया की कुल सौर ऊर्जा उत्पादन का एक तिहाई है, जो अमेरिका की तुलना में दोगुने से भी अधिक है. चीन किसी भी अन्य देश की तुलना में कहीं अधिक नवीकरणीय ऊर्जा सुविधाओं का निर्माण कर रहा है.
लेख में अनुमान लगाया गया कि साल 2025 तक चीन का बिजली आपूर्ति नेटवर्क नवीकरणीय ऊर्जा से मिलने वाली कुल बिजली का एक तिहाई हिस्सा होगा. इसके अलावा, चीन न केवल घरेलू इलेक्ट्रिक वाहन बाजार बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, बल्कि इलेक्ट्रिक वाहनों का एक प्रमुख निर्यातक भी बन रहा है. लेख में यह भी कहा गया कि चीन अपने ऊर्जा बाज़ार में भारी मात्रा में स्वच्छ ऊर्जा ला रहा है. इस वर्ष के पहले चार महीनों में, चीन में सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता में "आश्चर्यजनक" 36 प्रतिशत की वृद्धि हुई. लेख में तर्क दिया गया है कि किसी भी मानक से, अमेरिका को स्वच्छ ऊर्जा में चीन और भारत से पीछे रहने के बारे में चिंता करने की ज़रूरत है.