नई दिल्ली : राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो विंध्य किसी अधूरे वादों की विरासत के समान प्रतीत होता है. आजादी के बाद शासन करने वाली पार्टियां, चाहे वो कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ने विंध्य के लिए विशेष प्रावधानों के नारे को बुलंद तो किया, लेकिन यहां कि वास्तविकता किसी विशेष राज्य के दर्जे के लिए मांग कर रहे राज्य के समान ही बनी रही. विंध्य के विकास के लिए जरूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति किसी दल ने नहीं दिखाई. इसका नतीजा ये रहा कि उनके खोखले वादें महज राजनीतिक बयानबाजियों तक ही सीमित रह गए. इस कारण विंध्य क्षेत्र के लोगों को विकास से दूर लगातार संघर्ष करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
निराशजनक आंकड़े शब्दों से ज्यादा प्रभावशाली होते हैं : क्षेत्र में विकास की संभावनाओं के बाबजूद कड़वी सच्चाई यह है कि विंध्य के लोग मध्य प्रदेश के बाकी हिस्सों में रहने वाले लोगों की तुलना में 17 प्रतिशत कम कमाते हैं. एक भयावह आंकड़ा ये भी है कि यहां की 43.79 प्रतिशत आबादी बहुआयामी गरीबी की दंश झेल रही है, जो कि गंभीर स्थिति को रेखांकित करता है.
क्षेत्र का सामाजिक सूचकांक यहां के लोगों के आर्थिक संघर्षों की कहानी बयां करता है. यहां मातृ मृत्यु दर चिंताजनक रूप से अधिक है और शिशु के जीवित रहने की दर भी निराशजनक रूप से काफी कम है. कृषि क्षेत्र होने के बाबजूद यहां सिंचित भूमि मध्य प्रदेश के बाकी हिस्सों की तुलना में काफी कम है. विंध्य की उपेक्षा केवल कृषि तक ही सीमित नहीं है, बल्कि शिक्षा का क्षेत्र भी विद्यार्थियों, खासकर लड़कियों का माध्यमिक और उच्च शिक्षा के बीच में ही स्कूल छोड़ देना, कम शैक्षणिक संस्थान और शिक्षकों की भारी कमी जैसी समस्याओं से जूझ रहा है. यह व्यवस्थागत उपेक्षा इस इलाके के विकास को अवरूद्ध करती है और गरीबी के कुचक्र को जारी रखती है.
आखिर क्यों विंध्य क्षेत्र को विशेष श्रेणी का दर्जा मिले? : विंध्य विकास प्राधिकरण जैसे संस्थाओं की विफलता से ये स्पष्ट होता है कि अगर यहां परिवर्तन के लिए कई महत्वपूर्ण और संस्थागत बदलावों की जरूरत है. मौजूदा व्यवस्था के रहते हुए केवल समायोजन से किसी बदलाव की अपेक्षा करना गलत है. विंध्य में एक ऐसे परिवर्तन की जरूरत है जो राज्य और देश के साथ रिश्तों को बदल सके. अब सवाल यह है कि यह परिवर्तन किस रूप में होना चाहिए? विंध्य क्षेत्र के लिए विशेष दर्जे का मामला तब अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है जब हम इस क्षेत्र से जुड़े तथ्यों और आंकड़ों को गहराई से देखते हैं.
आंकड़ों के आधार पर विंध्य को विशेष श्रेणी का दर्जा मिलने का पूरा अधिकार है. गाडगिल आयोग और रघुराम राजन समिति की रिपोर्ट में प्रकाशित सूचकांक विंध्य के पिछड़ेपन को स्पष्ट तौर पर स्थापित करते हैं. लेकिन विंध्य की स्थिति की गंभीरता को सही मायने में समझने के लिए हमें हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र से तुलना करनी होगी. हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के पिछड़ेपन को देखते हुए 98वें संविधान संशोधन के तहत 2012 में इस क्षेत्र के 6 जिलों को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया है. जब विंध्य की तुलना कर्नाटक-हैदराबाद के साथ की जाती है तो असमानताएं और स्पष्ट हो जाती है.
बहुआयामी गरीबीः विंध्य का बहुआयामी गरीबी सूचकांक लगभग 42.68 प्रतिशत है, जो हैदराबाद-कर्नाटक के 26 प्रतिशत से काफी अधिक है. ये स्पष्ट अंतर उस गरीबी को रेखांकित करता है जो विंध्य में गहरी जड़ें जमा चुका है. जिस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.
शहरीकरण: विंध्य का शहरीकरण दर सिर्फ 18.44 प्रतिशत है, इसके मुकाबले हैदराबाद-कर्नाटक का शहरीकरण दर 28.05 प्रतिशत है. इस आंकड़े से विंध्य में शहरी विकास और बुनियादी ढांचे की भारी कमी का पता चलता है.
बैंकिंग सेवाएं: विंध्य क्षेत्र में प्रति एक लाख आबादी पर केवल 7.14 बैंक हैं, इसके मुकाबले हैदराबाद-कर्नाटक में ये आंकड़ा 7.85 है. हालांकि देखने में ये अंतर कम लगता है, लेकिन थोड़ी भी वित्तीय असमानता स्थानीय अर्थव्यवस्था और विकास को बहुत प्रभावित कर सकता है.
स्वास्थ्य सूचकांकः विंध्य में शिशु मृत्यु दर चिंताजनक रूप से 25.1 है, जो हैदराबाद-कर्नाटक के 5.74 से काफी अधिक है. ये बताता है कि क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं में कितनी कमियां हैं.
जनसंख्या गतिकी: हैदराबाद-कर्नाटक की 12.75 प्रतिशत के मुकाबले विंध्य में अनुसूचित जनजातियों की आबादी 29.37 प्रतिशत है. इसके अलावा अनुसूचित जाति और जनजाति की आबादी को मिलाने पर यह आंकड़ा विंध्य में 44.69 प्रतिशत तक पहुंच जाता है, जबकि हैदराबाद-कर्नाटक में ये आंकड़ा 35.03 प्रतिशत है. ये जनसांख्यिकीय आंकड़े बताते हैं कि इन समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है.
शिक्षा: विंध्य में महिला साक्षरता दर बेहद कम, 29.78 प्रतिशत है, जो कि हैदराबाद कर्नाटक के महिला साक्षरता दर, 53.75 प्रतिशत का लगभग आधा है. महिलाओं की शिक्षा दर में इतना बड़ा अंतर विंध्य में शैक्षणिक उपेक्षा की गंभीरता को दर्शाता है.
पर्यावरण और आजीविका: हैदराबाद-कर्नाटक में केवल 2.70 प्रतिशत वन क्षेत्र के मुकाबले विंध्य में 32.48 प्रतिशत का महत्वपूर्ण वन क्षेत्र होने के बाबजूद यहां के लोगों को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा विंध्य में आबादी का एक बड़ा वर्ग 46.59 प्रतिशत केवल कृषि पर निर्भर है, जो आय के एक ही स्रोत पर विंध्य की निर्भरता को उजागर करता है.