पटनाः लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम में सबसे हैरान करने वाला रिजल्ट बिहार का रहा. भारतीय जनता पार्टी गठबंधन को बिहार में बड़ा नुकसान हुआ है. जिस एनडीए को 2019 में 39 सीट हासिल हुई थी वह इसबार 30 पर सिमट गई. 40 का 40 सीट जीतने का दावे की हवा निकल गई. जानिए वह कौन-कौन से कारण थे जिसने महागठबंधन को ताकत दी और एनडीए 30 सीट पर सिमट गई.
30 सीटों पर क्यों सिमटीः NDA बिहार के सभी 40 सीटों को जीतने का लक्ष्य रखा था लेकिन एनडीए बिहार के अंदर 30 सीटों पर सिमट गई. 9 सीटों का नुकसान हुआ है. बिहार में जदयू और भाजपा दोनों को 12-12 सीटे मिली है. चिराग पासवान सभी 5 लोकसभा सीट जीतने में कामयाब हुए हैं. हम पार्टी को एक सीट मिली है.
अंतिम चरण वाली सीट पर ज्यादा नुकसानः रिजल्ट पर गौर करें तो पता चलता है कि अंतिम चरण के चुनाव ने भाजपा को बड़ा झटका दिया है. अंतिम चरण में आठ लोकसभा सीटों पर चुनाव हुए थे. ज्यादातर सीटों पर एनडीए के उम्मीदवार चुनाव हार गए. अंतिम चरण में आरा, बक्सर, सासाराम, नालंदा, पटना साहिब, पाटलिपुत्र, काराकाट और जहानाबाद लोकसभा सीट पर वोटिंग हुई थी.
कहां से कौन हारे? केंद्रीय मंत्री आरके सिंह आरा से चुनाव हार गए. काराकाट से उपेंद्र कुशवाहा, बक्सर से भाजपा नेता मिथिलेश तिवारी, सासाराम से भाजपा के शिवेश राम चुनाव हार गए. यहां कांग्रेस पार्टी के मनोज राम की जीत हुई. पाटलिपुत्र लोकसभा सीट पर भाजपा सांसद रामकृपाल यादव चुनाव हार गए और जहानाबाद लोकसभा सीट पर वर्तमान सांसद चंदेश्वर चंद्रवंशी भी चुनाव हार गए.
अंतिम चरण में 8 सीट पर मात्र 2 पर जीतः अंतिम चरण के आठ लोकसभा सीट में एनडीए ने छह लोकसभा सीट गंवा दिए. सिर्फ दो लोकसभा सीट एनडीए के खाते में आई जिसमें नालंदा से जदयू प्रत्याशी कौशलेंद्र कुमार और पटना साहिब से भाजपा सांसद रवि शंकर प्रसाद चुनाव जीत पाए.
क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञः राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार का मानना है कि "एनडीए ने बिहार में रणनीतिक भूल की. सांसदों के खिलाफ जबरदस्त विरोधी लहर थी. युवा और मध्यम वर्ग के लिए सरकार ने कोई रोड मैप नहीं बताया. टैक्स से आम जनता त्राहिमाम कर रही है. मध्यम वर्ग और युवाओं ने एनडीए के पक्ष में मतदान नहीं किया जिसका खम्याजा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को हुआ."
क्या रहा कारण? अंतिम चरण में भाजपा ज्यादातर सीटों पर इसलिए हार गई कि उन इलाकों से बड़ी संख्या में युवा सेना में भर्ती होते थे. इसके लिए वे सुबह 4:00 बजे से कड़ी मेहनत भी करते थे. अग्निवीर योजना आने के बाद युवाओं में निराशा हुई. बिहार में जिस तरीके से तेजस्वी यादव और राहुल गांधी ने रोजगार को मुद्दा बनाया उसे युवाओं का समर्थन मिला. मालूम हो कि बिहार में 64% से अधिक आबादी युवाओं की है.
पवन सिंह भी बने कारणः मंत्रियों का आम जनता के साथ को-ऑर्डिनेशन नहीं होना भी प्रमुख कारण बना. जनता की समस्याओं का समाधान मंत्रियों ने करने की कोशिश नहीं की. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और नित्यानंद किसी तरीके से अपनी सीट बचा पाए और जीत हार का फासला बेहद कम हो गया. पवन सिंह को टिकट नहीं दिए जाने से शाहाबाद क्षेत्र में राजपूत वोटों में बिखराव हुआ और वोटो का ध्रुवीकरण भी हुआ.
युवाओं ने निराशाः चुनाव के दौरान युवाओं में निराश दिखाई दी. ज्यादातर मतदान केंद्रों पर युवा नदारत थे. नौकरी को लेकर एनडीए नेताओं ने युवाओं को ठोस आश्वासन नहीं दिए और मध्यम वर्ग में भी उत्साह नहीं था. रोजगार नहीं मिलने के चलते जहां युवाओं में निराशा थी वही मध्यम वर्ग टैक्स के बोझ से परेशान थे.
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