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कोविड-19 का मतलब सस्ती हवाई यात्रा का दौर खत्म ?

कोविड की वजह से सस्ती हवाई यात्रा का ऑफर समाप्त (COVID 19 means the era of ever cheaper air travel could be over) हो सकता है. कोविड की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यात्रियों का आना-जाना कम हुआ है. ओमीक्रोन वेरिएंट की वजह से एक बार फिर से विमानन उद्योग को झटका लग सकता है. दरअसल, कीमतों में गिरावट प्रति ग्राहक कम मुनाफे के आधार पर व्यवसाय मॉडल को अपनाने और ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को उड़ान में शामिल करने पर निर्भर करती है. लेकिन कोविड ने इस बिजनेस मॉडल को प्रभावित किया है.

air india concept photo
एयर इंडिया (कॉन्सेप्ट फोटो)
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Published : Dec 30, 2021, 5:26 PM IST

सिडनी : कोविड-19 महामारी के कारण सबसे खराब दो वर्षों के बाद 2022 वैश्विक विमानन उद्योग के लिए उज्जवल दिख रहा है. हालांकि, यात्रियों के लिए कम लागत पर यात्रा करने का मौका अल्पकालिक साबित हो सकता (COVID 19 means the era of ever cheaper air travel could be over) है.

‘इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन’ के अनुसार 2020 में अंतरराष्ट्रीय यात्री मांग 2019 की तुलना में 25 प्रतिशत से कम थी. अभी 2021 का डेटा उपलब्ध नहीं है लेकिन, कोरोना वायरस के डेल्टा और ओमीक्रॉन स्वरूप के मद्देनजर एसोसिएशन का 2019 के स्तर की तुलना में 50 प्रतिशत मांग लौटने का पूर्वानुमान आशावादी है.

अंतरराष्ट्रीय और घरेलू मार्ग फिर से खुलने के साथ विमान कंपनियां हवाई किराए पर कई विशेष प्रस्ताव दे रही हैं. ये प्रस्ताव आंशिक रूप से अनिश्चित यात्रियों को वापस लुभाने के लिए हैं और यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यात्रा करने के लिए आवश्यक लागतों की भरपाई करने के लिए हैं, जैसे कि कोविड जांच के लिए शुल्क. लेकिन सस्ते किराए की वापसी की उम्मीद न करें. इनकी अवधि छोटी हो सकती है कि क्योंकि उद्योग को महामारी के बाद के हालात से निपटना है और सरकार का सहयोग भी नहीं मिलने की संभावना है.

इसका मतलब है कि एयर ट्रांसपोर्ट उद्योग 1970 के दशक से 2020 की शुरुआत तक के मॉडल को छोड़ सकता है. इस दौरान कम मुनाफे के जरिए सस्ते किराए का कारोबारी मॉडल प्रचलित था. उससे पहले यानी विमानन उद्योग 1970 के दशक तक अत्यधिक विनियमित था. घरेलू स्तर पर, यह अकसर सरकारों द्वारा राज्य के स्वामित्व वाली विमान कंपनियों की सुरक्षा के लिए किया जाता था. उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया की 'दो एयरलाइन' नीति ने प्रमुख मार्गों पर प्रतिस्पर्धा को केवल दो विमानन कंपनियों-सरकारी स्वामित्व वाली 'ट्रांस ऑस्ट्रेलिया एयरलाइंस' और एक निजी प्रतियोगी (उस समय के लिए एंसेट एयरलाइंस) तक सीमित कर दिया.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (आईएटीए) के माध्यम से मूल्य सहयोग द्वारा हवाई किराए को उच्च रखा गया था, जिसे अकसर 'कार्टेल' के रूप में वर्णित किया जाता है. टिकट मूल्य निर्धारण के दो स्तर थे- फर्स्ट क्लास और इकोनोमी. पूर्व में बोइंग 707 विमान होते थे, जिसमें 180 यात्री सवार हो सकते थे. फिर 1970 में बोइंग 747 जंबो जेट की शुरुआत के बाद यात्रियों की संख्या 180 से 440 तक होने लगी. इससे विमानन संचालन और लागत में कई बदलाव हुए.

इसके बाद 1980 और 1990 के दशक में ट्रैवल एजेंट ने खुद को 'बकेट शॉप्स' के रूप में स्थापित करना शुरू कर दिया, जो कम लोकप्रिय एयरलाइन में खाली सीट भरने के लिए रियायती हवाई किराए की पेशकश करने में विशेषज्ञता रखते थे. ऑस्ट्रेलिया की दो-एयरलाइन नीति अक्टूबर 1990 में समाप्त हो गई. विनियमन ने अधिक प्रतिस्पर्धियों को अनुमति दी और हवाई किराए को नियामक निकायों द्वारा निर्धारित करने के बजाय बाजार द्वारा संचालित किया जाने लगा.

क्यों खत्म हो सकता है सस्ते किराए का दौर

कीमतों में गिरावट प्रति ग्राहक कम मुनाफे के आधार पर व्यवसाय मॉडल को अपनाने और ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को उड़ान में शामिल करने पर निर्भर करती है. बड़े विमानों के जरिए ज्यादा ग्राहकों के उड़ान भरने से प्रति यात्री शुल्क में कमी आती है. इस कारोबारी मॉडल ने वैश्विक पर्यटकों की संख्या में योगदान दिया जो 1970 में लगभग 16.6 करोड़ से बढ़कर 2019 में 1.5 अरब हो गया. लेकिन इसका मतलब यह भी था कि एयरलाइंस को लाभ कमाने के लिए यात्रियों से भरे विमानों की जरूरत थी.

अगले साल यह संभावना है कि हम उद्योग के भीतर एकीकरण देखेंगे, उन विमानन कंपनियों के साथ जो खानपान या बीमा जैसे अन्य व्यवसायों में विविधता लाने की तलाश में हैं. कम लागत वाली विमानन कंपनियां परिचालन करती रहेंगी, लेकिन उन्हें ग्राहकों को सीट के अलावा नाश्ते की सुविधा, अतिरिक्त सामान क्षमता या किराए की कार की बुकिंग जैसी सुविधाओं के लिए भुगतान के लिए तैयार करना होगा. आगामी दिनों में कम यात्री संख्या के साथ ज्यादा मार्जिन अधिक संभावित मॉडल लगता है.

ये भी पढ़ें : केंद्रीय मंत्री कराड ने की फ्लाइट में बीमार यात्री की मदद, जमकर हो रही तारीफ

(एक्स्ट्रा इनपुट- पीटीआई)

सिडनी : कोविड-19 महामारी के कारण सबसे खराब दो वर्षों के बाद 2022 वैश्विक विमानन उद्योग के लिए उज्जवल दिख रहा है. हालांकि, यात्रियों के लिए कम लागत पर यात्रा करने का मौका अल्पकालिक साबित हो सकता (COVID 19 means the era of ever cheaper air travel could be over) है.

‘इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन’ के अनुसार 2020 में अंतरराष्ट्रीय यात्री मांग 2019 की तुलना में 25 प्रतिशत से कम थी. अभी 2021 का डेटा उपलब्ध नहीं है लेकिन, कोरोना वायरस के डेल्टा और ओमीक्रॉन स्वरूप के मद्देनजर एसोसिएशन का 2019 के स्तर की तुलना में 50 प्रतिशत मांग लौटने का पूर्वानुमान आशावादी है.

अंतरराष्ट्रीय और घरेलू मार्ग फिर से खुलने के साथ विमान कंपनियां हवाई किराए पर कई विशेष प्रस्ताव दे रही हैं. ये प्रस्ताव आंशिक रूप से अनिश्चित यात्रियों को वापस लुभाने के लिए हैं और यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यात्रा करने के लिए आवश्यक लागतों की भरपाई करने के लिए हैं, जैसे कि कोविड जांच के लिए शुल्क. लेकिन सस्ते किराए की वापसी की उम्मीद न करें. इनकी अवधि छोटी हो सकती है कि क्योंकि उद्योग को महामारी के बाद के हालात से निपटना है और सरकार का सहयोग भी नहीं मिलने की संभावना है.

इसका मतलब है कि एयर ट्रांसपोर्ट उद्योग 1970 के दशक से 2020 की शुरुआत तक के मॉडल को छोड़ सकता है. इस दौरान कम मुनाफे के जरिए सस्ते किराए का कारोबारी मॉडल प्रचलित था. उससे पहले यानी विमानन उद्योग 1970 के दशक तक अत्यधिक विनियमित था. घरेलू स्तर पर, यह अकसर सरकारों द्वारा राज्य के स्वामित्व वाली विमान कंपनियों की सुरक्षा के लिए किया जाता था. उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया की 'दो एयरलाइन' नीति ने प्रमुख मार्गों पर प्रतिस्पर्धा को केवल दो विमानन कंपनियों-सरकारी स्वामित्व वाली 'ट्रांस ऑस्ट्रेलिया एयरलाइंस' और एक निजी प्रतियोगी (उस समय के लिए एंसेट एयरलाइंस) तक सीमित कर दिया.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (आईएटीए) के माध्यम से मूल्य सहयोग द्वारा हवाई किराए को उच्च रखा गया था, जिसे अकसर 'कार्टेल' के रूप में वर्णित किया जाता है. टिकट मूल्य निर्धारण के दो स्तर थे- फर्स्ट क्लास और इकोनोमी. पूर्व में बोइंग 707 विमान होते थे, जिसमें 180 यात्री सवार हो सकते थे. फिर 1970 में बोइंग 747 जंबो जेट की शुरुआत के बाद यात्रियों की संख्या 180 से 440 तक होने लगी. इससे विमानन संचालन और लागत में कई बदलाव हुए.

इसके बाद 1980 और 1990 के दशक में ट्रैवल एजेंट ने खुद को 'बकेट शॉप्स' के रूप में स्थापित करना शुरू कर दिया, जो कम लोकप्रिय एयरलाइन में खाली सीट भरने के लिए रियायती हवाई किराए की पेशकश करने में विशेषज्ञता रखते थे. ऑस्ट्रेलिया की दो-एयरलाइन नीति अक्टूबर 1990 में समाप्त हो गई. विनियमन ने अधिक प्रतिस्पर्धियों को अनुमति दी और हवाई किराए को नियामक निकायों द्वारा निर्धारित करने के बजाय बाजार द्वारा संचालित किया जाने लगा.

क्यों खत्म हो सकता है सस्ते किराए का दौर

कीमतों में गिरावट प्रति ग्राहक कम मुनाफे के आधार पर व्यवसाय मॉडल को अपनाने और ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को उड़ान में शामिल करने पर निर्भर करती है. बड़े विमानों के जरिए ज्यादा ग्राहकों के उड़ान भरने से प्रति यात्री शुल्क में कमी आती है. इस कारोबारी मॉडल ने वैश्विक पर्यटकों की संख्या में योगदान दिया जो 1970 में लगभग 16.6 करोड़ से बढ़कर 2019 में 1.5 अरब हो गया. लेकिन इसका मतलब यह भी था कि एयरलाइंस को लाभ कमाने के लिए यात्रियों से भरे विमानों की जरूरत थी.

अगले साल यह संभावना है कि हम उद्योग के भीतर एकीकरण देखेंगे, उन विमानन कंपनियों के साथ जो खानपान या बीमा जैसे अन्य व्यवसायों में विविधता लाने की तलाश में हैं. कम लागत वाली विमानन कंपनियां परिचालन करती रहेंगी, लेकिन उन्हें ग्राहकों को सीट के अलावा नाश्ते की सुविधा, अतिरिक्त सामान क्षमता या किराए की कार की बुकिंग जैसी सुविधाओं के लिए भुगतान के लिए तैयार करना होगा. आगामी दिनों में कम यात्री संख्या के साथ ज्यादा मार्जिन अधिक संभावित मॉडल लगता है.

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(एक्स्ट्रा इनपुट- पीटीआई)

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