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कुआं और बरगद के पेड़ में हुई शादी.. जानिए क्यों हुआ यह अनोखा विवाह

पटना में अनोखी शादी (Unique Wedding in Patna) हुई है. राजधानी से सटे धनरूआ प्रखंड के नीमा गांव में एक अनोखी शादी देखी गई. जहां0 प्रकृति की पटरानी कुआं और बरगद के वृक्ष का विवाह कराया गया. इस शादी का गवाह सैकड़ों ग्रामवासी बने. इस परंपरा का मुख्य उद्देश्य जल स्रोत का संरक्षण और प्रकृति की पूजा करना है. वैसे तो इस बारे में कई तरह की पौराणिक मान्यताएं हैं लेकिन सबसे अहम और मुख्य उद्देश्य है कि प्रकृति और जल संरक्षण की पूजा है. पढ़ें पूरी खबर...

कुआं और बरगद के पेड़ की शादी
कुआं और बरगद के पेड़ की शादी
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Published : May 27, 2022, 4:17 PM IST

पटना: क्या आपने कभी सुना है कि कुआं और बरगद के पेड़ की शादी (Well and Banyan Tree Wedding in Patna) होती हैं. जी हां ये शादी पटना से सटे धनरूआ में होती है और यह मानसून से पहले की जाती है. और इसमें हिन्दू रिति-रिवाज से शादी की सभी रस्में पूरे विधि विधान से की जाती है. कहा जाता है कि गांव में आज भी कुंवारे कुआं का पानी वर्जित माना जाता है, इसलिए उस कुएं की शादी बरगद के पेड़ से की जाती है. तभी कुआं का पानी शुद्ध माना जाता है. हर देवी-देवता और अन्य शुभ कार्य में उस जल का प्रयोग किया जाता है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार तर्क की कसौटी पर इसकी कई मायने हैं.

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कुआं और बरगद के पेड़ की शादी: माना जाता है कि बरगद पेड़ लंबे समय तक जीने वाले वृक्ष है. वहीं, कुआं प्रकृति की पटरानी है. महिलाएं वटवृक्ष के समक्ष पूजा करके अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं. कुआं इंद्र के सबसे करीब माना जाता है. मान्यता यह भी है कि जब तक बरगद की शादी नहीं होती है. प्रकृति की ये दो पालनहार जब तक आपस मे परिणय मे नहीं बधते हैं तब तक प्रकृति का संतुलन और जलस्रोत का सरंक्षण नहीं हो पाता है. गौरतलब है कि गांव में पूरे विधि-विधान और हिंदू रीति रिवाज के साथ ढिढारी और सिंदूरदान के साथ ये शादी कराई गई है.

ये शादी प्रकृति की पूजा है: जिस तरह से विवाह के लिए पहले विवाहित जोड़े को बैठाया जाता है उसी तरह से गांव के संतोष कुमार और सुनीता कुमारी को पहले बैठाया गया उसके बाद बरगद के पेड़ के बीच से दोनों परिणय सूत्र में बांधे गए. वर के रूप संतोष कुमार और उनकी पत्नी सुनीता कुमारी को बैठाया गया. महिलाएं विवाह गीत गाकर सिंदूरदान की रस्में पूरी की. उसके बाद विदाई का ऐसा पल आया कि पूरा माहौल भक्तिमय हो गया. विदाई के वक्त लोगों के आंसू छलका उठे. गठबंधन के वक्त ऐसा प्रतीत हुआ कि प्रकृति की दो पालनहार आपस में मिलने को आतुर हैं. करीब ढाई घंटे तक शादी की रस्म हुई.

इस शादी में बाराती बने गांववासी: कहा जाता है कि गांव में आज भी कुंवारे कुएं का पानी उपयोग करना खराब माना जाता है, विभिन्न पूजन, शुभ कार्य में देवताओं को खुश करने के लिए विवाहित कुआं से ही पानी लेना होता है. ऐसे में मानसून से पहले ही कुआं और बरगद के पेड़ की शादी की जाती है. यह दो प्रकृति के पालनहार प्रकृति को आपस में संजो कर रखते हैं. जल संरक्षण और मानसून से पहले अच्छी बारिश को लेकर पूजा की जाती है. इस मौके पर बरगद के बड़े भाई के रूप में ओम प्रकाश तथा कुआं के बड़े भाई के रूप में बृजेश कुमार ने शामिन हुए, पंडित राम आशीष शर्मा ने पूरे विधि-विधान से इस अनोखी शादी को संपन्न करवाया. पूरे कार्यक्रम में पंकज कुमार, राकेश कुमार, अंकित, शालिनी देवी आदि शामिल हुए.

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पटना: क्या आपने कभी सुना है कि कुआं और बरगद के पेड़ की शादी (Well and Banyan Tree Wedding in Patna) होती हैं. जी हां ये शादी पटना से सटे धनरूआ में होती है और यह मानसून से पहले की जाती है. और इसमें हिन्दू रिति-रिवाज से शादी की सभी रस्में पूरे विधि विधान से की जाती है. कहा जाता है कि गांव में आज भी कुंवारे कुआं का पानी वर्जित माना जाता है, इसलिए उस कुएं की शादी बरगद के पेड़ से की जाती है. तभी कुआं का पानी शुद्ध माना जाता है. हर देवी-देवता और अन्य शुभ कार्य में उस जल का प्रयोग किया जाता है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार तर्क की कसौटी पर इसकी कई मायने हैं.

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कुआं और बरगद के पेड़ की शादी: माना जाता है कि बरगद पेड़ लंबे समय तक जीने वाले वृक्ष है. वहीं, कुआं प्रकृति की पटरानी है. महिलाएं वटवृक्ष के समक्ष पूजा करके अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं. कुआं इंद्र के सबसे करीब माना जाता है. मान्यता यह भी है कि जब तक बरगद की शादी नहीं होती है. प्रकृति की ये दो पालनहार जब तक आपस मे परिणय मे नहीं बधते हैं तब तक प्रकृति का संतुलन और जलस्रोत का सरंक्षण नहीं हो पाता है. गौरतलब है कि गांव में पूरे विधि-विधान और हिंदू रीति रिवाज के साथ ढिढारी और सिंदूरदान के साथ ये शादी कराई गई है.

ये शादी प्रकृति की पूजा है: जिस तरह से विवाह के लिए पहले विवाहित जोड़े को बैठाया जाता है उसी तरह से गांव के संतोष कुमार और सुनीता कुमारी को पहले बैठाया गया उसके बाद बरगद के पेड़ के बीच से दोनों परिणय सूत्र में बांधे गए. वर के रूप संतोष कुमार और उनकी पत्नी सुनीता कुमारी को बैठाया गया. महिलाएं विवाह गीत गाकर सिंदूरदान की रस्में पूरी की. उसके बाद विदाई का ऐसा पल आया कि पूरा माहौल भक्तिमय हो गया. विदाई के वक्त लोगों के आंसू छलका उठे. गठबंधन के वक्त ऐसा प्रतीत हुआ कि प्रकृति की दो पालनहार आपस में मिलने को आतुर हैं. करीब ढाई घंटे तक शादी की रस्म हुई.

इस शादी में बाराती बने गांववासी: कहा जाता है कि गांव में आज भी कुंवारे कुएं का पानी उपयोग करना खराब माना जाता है, विभिन्न पूजन, शुभ कार्य में देवताओं को खुश करने के लिए विवाहित कुआं से ही पानी लेना होता है. ऐसे में मानसून से पहले ही कुआं और बरगद के पेड़ की शादी की जाती है. यह दो प्रकृति के पालनहार प्रकृति को आपस में संजो कर रखते हैं. जल संरक्षण और मानसून से पहले अच्छी बारिश को लेकर पूजा की जाती है. इस मौके पर बरगद के बड़े भाई के रूप में ओम प्रकाश तथा कुआं के बड़े भाई के रूप में बृजेश कुमार ने शामिन हुए, पंडित राम आशीष शर्मा ने पूरे विधि-विधान से इस अनोखी शादी को संपन्न करवाया. पूरे कार्यक्रम में पंकज कुमार, राकेश कुमार, अंकित, शालिनी देवी आदि शामिल हुए.

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