पटना: आज तेजस्वी यादव पर सिर्फ बिहार की ही नहीं बल्कि पूरे देश की नजर है. 31 साल के लालू के इस लाल में बिहार चुनाव 2020 में जिस तरह महारथियों का सामना किया उससे ये तय हो चुका है कि अब बिहार में आरजेडी की कमान तेजस्वी के हाथ ही रहने वाली है. आज कुछ ही घंटों में ये साफ हो जाएगा कि तेजस्वी बिहार के सीएम बनेंगे या नहीं. लेकिन इन सबसे अलग तेजस्वी ने चुनावों के दौरान अपनी एक खास छवी बनाई है.
कभी क्रिकेटर के रूप में अपना कैरियर शुरू करने वाले तेजस्वी यादव राजनीतिक पारी खेल रहे हैं और चौकों-छक्कों की बारिश कर रहे हैं. तेजस्वी यादव ने बीस साल की उम्र में क्रिकेट से अपने करियर की शुरुआत की थी और इसके लिए उन्हें अपने परिवार का सहयोग भी मिला था. उनके पिता लालू यादव भी बतौर प्रशासक क्रिकेट से जुड़े हुए थे. तेजस्वी ने 2009 में अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत की. इसी साल तेजस्वी झारखंड के प्रथम श्रेणी क्रिकेट टीम में शामिल किये गये. अपने हरफनमौला प्रदर्शन की बदौलत क्रिकेट में चौके छक्के लगाने लगे. हालांकि, तेजस्वी ने क्रिकेट खेलना तो शुरू किया लेकिन सही तौर पर अपना बेहतरीन प्रदर्शन नहीं कर सके.
IPL में दिल्ली की टीम में रहे तेजस्वी
तेजस्वी ने रणजी के साथ-साथ आईपीएल का भी रुख किया. आईपीएल के कई सीजन में दिल्ली डेयरडेविल्स टीम का हिस्सा रहे, लेकिन उन्हें एक भी मैच में खेलने का मौका नहीं मिल सका. तेजस्वी टीम में ऑलराउंडर की भूमिका में थे, जो बल्लेबाजी के साथ-साथ स्पिन गेंदबाजी भी करते थे. मैदान पर अपने छोटे से करियर में तेजस्वी ने मात्र एक प्रथम श्रेणी मैच, दो 'ए' श्रेणी की क्रिकेट और 4 टी-20 मैच खेले. लेकिन अपने पांच साल के सियासी करियर में तेजस्वी अब तक हिट रहे हैं.
2010 में शुरू हुआ राजनीति का करियर
तेजस्वी यादव का राजनीतिक सफर यूं तो 2010 में ही शुरू हुआ, 2010 में उनके पिता लालू यादव ने उन्हें अपने साथ-साथ रैलियों में शामिल करने लगे थे और लोगों को उनका परिचय दिया करते थे, धीरे-धीरे, वो अपनी पार्टी यानी आरजेडी के लिये भविष्य का चेहरा बन गये हैं. तेजस्वी यादव, बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं और पिता लालू यादव की गैरमौजूदगी में आरजेडी की कमान संभाल रहे हैं, अब तक राज्य की राजनीति में बनी-बनाई राह पर ही चलते रहे हैं. 2015 तक उनकी राजनीतिक गतिविधियां सिर्फ अपनी मां राबड़ी देवी के साथ राजनीतिक रैलियों में मौजूद रहने तक सीमित थीं. जब क्रिकेट में उनका करियर नाकाम हो गया तब उन्होंने राजनीति में कदम रखा.
पहली बार 2015 में राघोपुर से रहे प्रत्याशी
चुनावी राजनीति से पहली बार उनका सामना 2015 में हुआ जब नीतीश-लालू महागठबंधन के तहत उन्हें वैशाली जिले में लालू-राबड़ी की परंपरागत सीट राघोपुर से प्रत्याशी बनाया गया. चुनाव बाद तेजस्वी यादव को बिहार के उपमुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई गई और रोड कंस्ट्रक्शन और बिल्डिंग जैसे महत्वपूर्ण विभाग दिए गए. 26 साल की उम्र में जब वो बिहार के उप मुख्यमंत्री बने थे, तो उन्होंने ये कहते हुए अपना मोबाइल नंबर सार्वजनिक कर दिया था कि इस पर लोग उन्हें अपने इलाक़े की खस्ता-हाल सड़कों और गड्ढों की जानकारी एसएमएस कर सकते हैं. लेकिन कुछ ही दिनों में उनके पास 'व्हाट्सऐप' पर संदेशों की झड़ी लग गई, लेकिन उनमें से ज्यादातर में टूटी हुई सड़कों का नहीं, बल्कि टूटे हुए दिलों का ज़िक्र था. पता नहीं कितनी लड़कियों ने 26 साल के इस युवा को शादी का प्रस्ताव भेजा. वो उस समय और शायद इस समय भी बिहार के सब से 'एलिजिबल बैचलर' हैं.
जेल जाने से पहले लालू ने सौंपी कमान
इस बीच, उनके बड़े भाई तेज प्रताप को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया, लेकिन कुछ हद तक इस सवाल का जवाब सामने आ गया कि लालू का उत्तराधिकारी कौन होगा? उपमुख्यमंत्री के तौर पर तेजस्वी यादव के 18 माह के कार्यकाल में हालांकि ज्यादातर कामकाज परोक्ष रूप से लालू यादव ही चला रहे थे. तेजस्वी यादव को मिले विभागों में ज्यादातर सलाहकार लालू यादव के नजदीकी अफसर ही थे. इस बीच पारिवारिक झगड़ा सतह पर आ जाने के बावजूद लालू ने लंबे समय तक अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं की थीं. लेकिन 2017 में चारा घोटाले के सिलसिले में जेल जाने के दौरान उन्होंने यह स्पष्ट किया कि तेजस्वी पार्टी की कमान संभालेंगे और सांत्वना के तौर पर तेज प्रताप को आरजेडी की युवा इकाई की जिम्मेदारी संभालने को कहा.
राजनीतिक छवि को पहुंचा नुकसान
राजनीतिक नेता के तौर पर तेजस्वी की छवि को नुकसान पहुंचना तब शुरू हुआ जब 2017 में महागठबंधन टूटने और लालू यादव के जेल जाने के बाद वह सदन में नेता विपक्ष बने. विपक्ष के नेता की अपनी नई भूमिका में भी तेजस्वी ने राजनीतिक पंडितों का ध्यान अपनी तरफ खींचा. मार्च और मई 2018 के बीच बिहार में चार उप चुनाव हुए. तेजस्वी के नेतृत्व में ही उनकी पार्टी ने इनमें से तीन सीटें जीतीं. हालांकि इस बीच, तेजस्वी की क्षमता और नेतृत्व पर सवाल उठाए गए, इन सब के बावजूद उनकी सियासत चलती रही. बीते साल पटना में जल जमाव की समस्या हो या फिर इस साल कोरोना का संकट हो, उनका विरोध सिर्फ ट्विटर तक ही सीमित रहा.
2020 बिहार विधानसभा चुनाव की आहट के बीच तेजस्वी एक्टिव हुए. सियासी गलियारों में पूछा जाने लगा कि, क्या 9वीं तक पढ़े, क्रिकेट में फेल तेजस्वी यादव...अपने पिता को 2020 की जीत का गिफ्ट दे पाएंगे.