पटना: बिहार में मंकीपॉक्स का एक संदिग्ध मरीज मिला है. महिला मरीज पटना सिटी के गुरहट्टा इलाके की (Suspected Patient Of MonkeyPox Found In Patna) निवासी है. मंकीपॉक्स को लेकर स्वास्थ्य विभाग की हाई लेवल बैठक (Meeting Of Health Department Regarding Monkeypox) हुई है. जिसके बाद सभी जिलों को अलर्ट किया गया है. इसी बीच पटना में एक सस्पेक्टेड महिला मिलने के बाद स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया है और इसको लेकर के स्वास्थ्य विभाग ने 4 सदस्य टीम बनाई है. पटना जिला सिविल सर्जन डॉ केके रॉय (Patna CS Dr KK Roy) ने बताया कि विभाग को पटना सिटी इलाके में मंकीपॉक्स की सस्पेक्टेड महिला के बारे में जानकारी मिली है.
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मंकीपॉक्स में साफ-सफाई का रखें ध्यान : सिविल सर्जन डॉक्टर केके रॉय ने बताया कि यह बीमारी संक्रमित मरीज को छूने और उसके फफोले के मवाद को टच करने से फैलता है. इसका इनक्यूबेशन पीरियड 5 दिन से 21 दिन का है. यह संक्रमण संक्रमित मरीज के खांसने, छींकने और संक्रमित मरीज के यूज किए गए कपड़े को इस्तेमाल करने से भी फैलता है. उन्होंने बताया कि संक्रमित मरीज का सैंपल लेने के लिए टीम गई हुई है और मरीज का ट्रैवल हिस्ट्री और कॉन्ट्रैक्ट हिस्ट्री के बारे में भी जानकारी जुटाई जा रही है.
'पीएमसीएच के एक प्रोफेसर के माध्यम से यह जानकारी मिली, जिसके बाद से पीएमसीएच के एक वायरोलॉजिस्ट, एक चिकित्सक, स्वास्थ्य विभाग के पटना जिले से एक एपिडेमोलॉजिस्ट और डब्ल्यूएचओ की एक एसीएमओ को मिलाकर 4 सदस्य टीम बनाया गया है. टीम महिला के घर पर सैंपल कलेक्ट के लिए निकली हुई है और महिला का सैंपल कलेक्ट कर के पीएमसीएच लाया जाएगा. जहां से पीएमसीएच के वायरोलॉजी द्वारा डब्ल्यूएचओ के सहयोग से नेशनल क्यूट ऑफ वायरोलॉजी में सैंपल को जांच के लिए भेजा जाएगा. सैंपल का रिपोर्ट कब तक आएगा इसके बारे में अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन रिपोर्ट जब भी आएगा उसके बाद आगे की रणनीति तैयार की जाएगी.' - डॉ केके रॉय, पटना जिला सिविल सर्जन
संक्रमित मरीज के टच में आने से बचें : पटना जिला सिविल सर्जन डॉ केके रॉय ने बताया कि टीम महिला के घर पर गई हुई है और इस बीमारी में साफ-सफाई और हाइजीन का बहुत महत्व है. ऐसे में अगर महिला के घर पर उसके सेपरेट आइसोलेशन के लिए अगर कमरे की व्यवस्था होगी तो उसे उसको घर पर ही होम आइसोलेशन में रख दिया जाएगा. यदि होम आइसोलेशन की कोई अच्छी व्यवस्था नहीं रही तो जिले के आईपीडी में उसे एडमिट किया जाएगा.
संक्रमण से फैलता है मंकीपॉक्स : सिविल सर्जन ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा मंकीपॉक्स को लेकर स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि इस बीमारी में शरीर पर मोटे फफोले उठते हैं. स्मॉल पॉक्स फैमिली का ही यह बीमारी है और लक्षण भी उससे मिलते जुलते हैं. इस डिजीज में सिर में दर्द, बदन में दर्द, मांसपेशियों में खिंचाव, बुखार, लिम्बस का बढ़ना प्रमुख लक्षण है.
पटना पर मंडराया मंकीपॉक्स का खतरा : पटना में मंकीपॉक्स के पहले संदिग्ध (Suspected Patient Of Monkeypox In Patna ) मामले को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने अलर्ट (Alert For Monkeypox In Bihar) जारी कर दिया है. मरीज का सैंपल जांच के लिए भेजा गया है. इधर केंद्र सरकार ने भी मंकीपॉक्स को लेकर बिहार सरकार को अलर्ट किया है. संभावित खतरे को लेकर बिहार सरकार भी तैयारियों में जुट गई है. बिहार में एक ओर कोरोनावायरस संक्रमण बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ मंकीपॉक्स के संभावित खतरे से लोग डरे सहमे हैं. केंद्र सरकार ने भी 3 दिन पहले बिहार सरकार को अलर्ट भेजा था. बिहार सरकार भी तैयारियों में जुटी है.
मंकीपॉक्स के लक्षण : बताते चलें कि मंकीपॉक्स भी चेचक परिवार के वायरसओं का हिस्सा है. हालांकि मंकीपॉक्स के लक्षण (symptoms of monkeypox) चेचक यानी कि स्मॉल पॉक्स की तरह गंभीर नहीं बल्कि हल्के होते हैं. लेकिन इसका चिकन पॉक्स से लेना देना नहीं है. यह बीमारी संक्रमण की चपेट में आने के 20 दिनों के बाद शरीर में असर दिखाना शुरू करता है. इसमें शरीर पर पॉक्स जैसी मवाद भरे दाने होने के साथ सिर दर्द, बुखार, थकान, मांसपेशियों में दर्द, कपकपी छूटना, पीठ और कमर में दर्द महसूस होते हैं.
मंकीपॉक्स क्या है? (What is monkeypox?) : मंकीपॉक्स एक वायरस है, जो रोडेन्ट और प्राइमेट जैसे जंगली जानवरों में पैदा होता है. इससे कभी-कभी मानव भी संक्रमित हो जाता है. मानवों में अधिकतक मामले मध्य और पश्चिम अफ्रीका में देखे गए है, जहां यह इन्डेमिक बन चुका है. इस बीमारी की पहचान सबसे पहले वैज्ञानिकों ने 1958 में की थी, जब शोध करने वाले बंदरों में चेचक जैसी बीमारी के दो प्रकोप हुए थे, इसलिए इसे मंकीपॉक्स कहा जाता है. मानव में मंकीपॉक्स का पहला मामला 1970 में मिला था, जब कांगो में रहने वाला 9 साल बच्चा इसकी चपेट में आया था. मंकीपॉक्स का मनुष्य से मनुष्य संचरण मुख्य रूप से सांस के जरिए होता है. इसके लिए लंबे समय तक निकट संपर्क की आवश्यकता होती है. यह शरीर के तरल पदार्थ या घाव सामग्री के सीधे संपर्क के माध्यम से और घाव सामग्री के साथ अप्रत्यक्ष संपर्क के माध्यम से भी फैल सकता है.