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आप जानते हैं मछलियों का भी अंतिम संस्कार होता है..? अगर नहीं तो बिहार के इस तरेत पाली मठ को जानिए

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Published : May 19, 2022, 8:06 PM IST

सनातन धर्म में छोटे से लेकर बड़े जीत तक को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है. आज के कलयुग में भी बिहार में एक ऐसा मठ है जहां मछलियों तक का भी अंतिम संस्कार (Funeral Of Fish In Patna) होता है. आगे पढ़ें पूरी खबर...

Taret Pali Math
Taret Pali Math

पटना : सनातन संस्कृति में आचार, विचार और व्यवहार का सर्वोच्च स्थान है. सनातन संस्कृति इस बात की तस्दीक करता है कि सब सुखी रहे, सब शिक्षित रहे, सब व्यवस्थित रहे. राजधानी से सटे नौबतपुर का तरेत पाली मठ (Taret Pali Math Naubatputpr) करीब ढाई सौ से इस परंपरा को जिंदा रखा हैं. लोगों के बीच शिक्षा व सद्गति का प्रचार प्रसार कर रहा है. सबसे बड़ी बात यह की इस मठ में जो कोई भी आता है वह खाली हाथ नहीं जाता.

ये भी पढ़ें - 50 से ज्यादा मठ मंदिरों के महंत की सरकार को चेतावनी- 'मठों की जमीन पर नजर डाली तो करेंगे आंदोलन'

''इसकी नींव 1742 में स्वामी राजेंद्र आचार्य जी के हाथों रखी गई थी. तब यह इलाका परेत पाली यानि प्रेत पाली के नाम से जाना जाता था. इलाका एकदम घनघोर जंगल से घिरा हुआ था. यहां दूर-दूर तक कोई आबादी नहीं रहती थी. इसकी शुरुआत परोपकार व सर्वहित के लिए किया गया था जो आज भी बदस्तूर जारी है. स्वामी राजेंद्र आचार्य बिहार के नहीं बल्कि नैमिषारण्य के रहने वाले थे. उन्होंने 12 साल में ही पदयात्रा करके पूरे भारतवर्ष को नाप दिया था. उनको यह जगह इतनी पसंद आई की यहीं पर उन्होंने अपना मठ बनाने का विचार किया.''- स्वामी सुदर्शनाचार्य जी महाराज, मठ के वर्तमान आचार्य


मठ में मछलियों का अंतिम संस्कार : आचार्य बताते हैं कि इस मठ की खासियत इसकी वैदिक रीति का पालन करना है. मठ में अपना पोखर है जिसमें हजारों की संख्या में मछलियां रहती हैं. इन मछलियों में अगर कोई मर जाती है तो उसका भी अंतिम संस्कार उस सनातन संस्कृति व वैदिक रीति के अनुसार किया जाता है. वह बताते हैं केवल मछलियां ही नहीं इस जगह पर कोई भी पशु अगर अपना देह त्याग देता है तो उसे वैदिक रीति के अनुसार ही अंतिम संस्कार किया जाता है.

मुफ्त में दी जाती शिक्षा : इस मठ का मुख्य कार्य जरूरतमंदों को मुफ्त में शिक्षा प्रदान करना है. यहां गुरुकुल है जिसमें हर आयु वर्ग के बटुक को शिक्षा दी जाती है. यह सारी शिक्षा संस्कृत में होती है. यहां शिक्षा ग्रहण करने वाला छोटे से छोटा बटुक भी धाराप्रवाह संस्कृत बोलता है.

''मठ यहां पर तो है ही. इसके अलावा देश के कई विभिन्न शहरों जैसे जहानाबाद, गया, बनारस के अलावा तमिलनाडु में कांचीपुरम में भी इसकी शाखा है. कोई भी अगर यहां पर या हमारे किसी ब्रांच में शिक्षा ग्रहण करता है तो उसके रहने खाने यहां तक की सेहत अगर खराब होती है तो इलाज करने की भी व्यवस्था मठ की तरफ से ही की जाती है. चाहे जितनी भी संख्या में लोग इस मठ में आ जाएं उनके मुफ्त में रहने और खाने की व्यवस्था मठ की तरफ से की जाती है.''- स्वामी सुदर्शनाचार्य जी महाराज, मठ के वर्तमान आचार्य

हजारों की संख्या में पहुंचते हैं श्रद्धालु : मठ में प्रत्येक दिन सुबह 8:00 बजे से लेकर दिन में 12:00 बजे तक मुफ्त चिकित्सा सुविधा भी आयुर्वेदिक पद्धति से प्रदान की जाती है. जिसके लिए हर रोज लोग आते हैं. उसमें अगर कोई दूर से आता है तो उसके रहने की भी व्यवस्था मठ की तरफ से की जाती है जो निशुल्क होती है. हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. यहां पर 147 फीट की एक मंदिर भी है.

तरेत पाली मठ जीव जंतुओं के लिए स्वर्ग : इस मठ की खूबसूरती यहां का रहन-सहन भी है. यहां एक तरफ तो बटुक संस्कृत का पाठ करते हैं तो दूसरी तरफ यहां जीव जंतु स्वच्छंद विचरण करते हैं. मठ की गौशाला में 70 से ज्यादा गाय व भैंस हैं. हिरण, घोड़े और हंस भी यहां देखने को मिल जाते हैं. आचार्य बताते हैं कि पहले मोर और हाथी भी हुआ करता था, लेकिन उनका समय पूरा हो गया और वह इस धरती को छोड़कर दूसरी दुनिया में चले गए.

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पटना : सनातन संस्कृति में आचार, विचार और व्यवहार का सर्वोच्च स्थान है. सनातन संस्कृति इस बात की तस्दीक करता है कि सब सुखी रहे, सब शिक्षित रहे, सब व्यवस्थित रहे. राजधानी से सटे नौबतपुर का तरेत पाली मठ (Taret Pali Math Naubatputpr) करीब ढाई सौ से इस परंपरा को जिंदा रखा हैं. लोगों के बीच शिक्षा व सद्गति का प्रचार प्रसार कर रहा है. सबसे बड़ी बात यह की इस मठ में जो कोई भी आता है वह खाली हाथ नहीं जाता.

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''इसकी नींव 1742 में स्वामी राजेंद्र आचार्य जी के हाथों रखी गई थी. तब यह इलाका परेत पाली यानि प्रेत पाली के नाम से जाना जाता था. इलाका एकदम घनघोर जंगल से घिरा हुआ था. यहां दूर-दूर तक कोई आबादी नहीं रहती थी. इसकी शुरुआत परोपकार व सर्वहित के लिए किया गया था जो आज भी बदस्तूर जारी है. स्वामी राजेंद्र आचार्य बिहार के नहीं बल्कि नैमिषारण्य के रहने वाले थे. उन्होंने 12 साल में ही पदयात्रा करके पूरे भारतवर्ष को नाप दिया था. उनको यह जगह इतनी पसंद आई की यहीं पर उन्होंने अपना मठ बनाने का विचार किया.''- स्वामी सुदर्शनाचार्य जी महाराज, मठ के वर्तमान आचार्य


मठ में मछलियों का अंतिम संस्कार : आचार्य बताते हैं कि इस मठ की खासियत इसकी वैदिक रीति का पालन करना है. मठ में अपना पोखर है जिसमें हजारों की संख्या में मछलियां रहती हैं. इन मछलियों में अगर कोई मर जाती है तो उसका भी अंतिम संस्कार उस सनातन संस्कृति व वैदिक रीति के अनुसार किया जाता है. वह बताते हैं केवल मछलियां ही नहीं इस जगह पर कोई भी पशु अगर अपना देह त्याग देता है तो उसे वैदिक रीति के अनुसार ही अंतिम संस्कार किया जाता है.

मुफ्त में दी जाती शिक्षा : इस मठ का मुख्य कार्य जरूरतमंदों को मुफ्त में शिक्षा प्रदान करना है. यहां गुरुकुल है जिसमें हर आयु वर्ग के बटुक को शिक्षा दी जाती है. यह सारी शिक्षा संस्कृत में होती है. यहां शिक्षा ग्रहण करने वाला छोटे से छोटा बटुक भी धाराप्रवाह संस्कृत बोलता है.

''मठ यहां पर तो है ही. इसके अलावा देश के कई विभिन्न शहरों जैसे जहानाबाद, गया, बनारस के अलावा तमिलनाडु में कांचीपुरम में भी इसकी शाखा है. कोई भी अगर यहां पर या हमारे किसी ब्रांच में शिक्षा ग्रहण करता है तो उसके रहने खाने यहां तक की सेहत अगर खराब होती है तो इलाज करने की भी व्यवस्था मठ की तरफ से ही की जाती है. चाहे जितनी भी संख्या में लोग इस मठ में आ जाएं उनके मुफ्त में रहने और खाने की व्यवस्था मठ की तरफ से की जाती है.''- स्वामी सुदर्शनाचार्य जी महाराज, मठ के वर्तमान आचार्य

हजारों की संख्या में पहुंचते हैं श्रद्धालु : मठ में प्रत्येक दिन सुबह 8:00 बजे से लेकर दिन में 12:00 बजे तक मुफ्त चिकित्सा सुविधा भी आयुर्वेदिक पद्धति से प्रदान की जाती है. जिसके लिए हर रोज लोग आते हैं. उसमें अगर कोई दूर से आता है तो उसके रहने की भी व्यवस्था मठ की तरफ से की जाती है जो निशुल्क होती है. हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. यहां पर 147 फीट की एक मंदिर भी है.

तरेत पाली मठ जीव जंतुओं के लिए स्वर्ग : इस मठ की खूबसूरती यहां का रहन-सहन भी है. यहां एक तरफ तो बटुक संस्कृत का पाठ करते हैं तो दूसरी तरफ यहां जीव जंतु स्वच्छंद विचरण करते हैं. मठ की गौशाला में 70 से ज्यादा गाय व भैंस हैं. हिरण, घोड़े और हंस भी यहां देखने को मिल जाते हैं. आचार्य बताते हैं कि पहले मोर और हाथी भी हुआ करता था, लेकिन उनका समय पूरा हो गया और वह इस धरती को छोड़कर दूसरी दुनिया में चले गए.

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