पटना: भारत में सूचना का अधिकार कानून 2006 में लाया गया था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2007 में जानकारी कॉल सेंटर के तहत सूचना का अधिकार कानून को और मजबूती से बिहार में लागू किया था. जानकारी कॉल सेंटर चलाने पर बिहार सरकार को पुरस्कार भी मिल चुका है. लेकिन आज वही पुरस्कार पाने वाले नीतीश कुमार का विभाग आम जनता के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है.
काले कारनामे हुए उजागर
दरअसल, पिछले 2 वर्षों से जानकारी कॉल सेंटर बिहार में बंद पड़ा है. स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि बिहार सूचना आयोग का वेबसाइट भी दो साल से अपडेट नहीं हुआ है. इस बारे में आरटीआई एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय बताते हैं कि शुरुआत के दिनों में इस कानून का इस्तेमाल कर बड़े-बड़े घोटालों को उजागर किया गया था. इसके माध्यम से आम जनता के बीच काले कारनामे आन लगे. जिसके कारण इस कानून को लगातार कमजोर किया जा रहा है.
वर्तमान की सरकार जिम्मेदार
शिव प्रकाश राय कहते हैं पिछले तकरीबन 6 महीने से बिहार में मुख्य सूचना आयुक्त का पद क्यों रिक्त है या समझ नहीं आता. इसके लिए वर्तमान की सरकार जिम्मेदार है. यह सरकार अपने काले कारनामों को छिपाने के लिए इस तरह का रवैया अपना रही है.
समाज के लिए खतरनाक
इस मामले पर पूर्व एमएलसी प्रेम कुमार मणि ने कहा कि जो लोग उत्साहित होकर आरटीआई का स्वागत कर रहे थे आखिर आज वह इस तरह हरकत क्यों कर रहे हैं ? पूर्व एमएलसी कहते हैं कि सरकार कुछ गलत कर रही है जिसके कारण उसे छुपाने में लगी हुई है. किसी भी सरकार को पारदर्शी होनी चाहिए और पारदर्शिता का सबसे बड़ा माध्यम सूचना का अधिकार है. लेकिन वर्तमान सरकार द्वारा सूचना का अधिकार को लेकर जिस तरह का रवैया अपनाया जा रहा है वह समाज के लिए खतरनाक है.