पटनाः चाहे जिस कारण से भी राजद और कांग्रेस में दूरी रही हो, लेकिन अब ऐसे समीकरण बन रहे हैं कि राजद और कांग्रेस की वह दूरी अब खत्म हो रही है. दरअसल हाल के कुछ महीनों में कुछ ऐसी घटनाएं हुई जिससे यह साफ दिख रहा था कि महागठबंधन में रहने के बाद भी कांग्रेस आरजेडी के साथ नहीं है, लेकिन केवल एक हैंड बिल ने इस चर्चा को और गर्म कर दिया है कि क्या अब कांग्रेस और राजद साथ आ रहे हैं?
पढ़ें-इतिहास गवाह है.. जब-जब अलग हुए हैं कांग्रेस-RJD, उठाना पड़ा है भारी नुकसान
प्रतिरोध मार्च की तैयारी में विपक्षः दरअसल आगामी अगस्त माह में केंद्र सरकार की विभिन्न नीतियों के खिलाफ राजद की तरफ से एक प्रतिरोध मार्च प्रस्तावित है. इस प्रतिरोध मार्च में 10 ऐसी मांगें हैं जो महा गठबंधन की तरफ से की गई है. खास बात यह है कि इसके लिए जो हैंड बिल छापा गया है. उसमें राजद के तमाम नेताओं के साथ ही वाम दलों के प्रमुख नेताओं के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की भी तस्वीर शामिल है.
हैंडबील में विपक्षी एकता दिखाने का प्रयासः हैंडबील के सामने आने के साथ ही अब राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई है कि, कुछ देर के लिए ही सही अलग-अलग रहने के बाद राजद और कांग्रेस एक बार फिर अब एक-दूसरे के नजदीक आ रहे हैं. दरअसल पिछले कुछ महीनों में अगर एक आध मौके को छोड़ दें तो बिहार में महागठबंधन की तरफ से कई ऐसे आयोजन हुए, जिसमें नाम तो महागठबंधन का था लेकिन उसमें कांग्रेस की तरफ से न तो कोई विधायक और न ही किसी वरिष्ठ नेता ने हिस्सा लिया.
संपूर्ण क्रांति दिवस महागठबंधन की एकता में दिखी थी कमीः हाल के दिनों में बिहार की चर्चित राजनीतिक घटनाक्रम को अगर देखा जाए तो उसमें महागठबंधन के नाम पर राजद के साथ वामदल भी साथ खड़े नजर आए. गत 5 जून को जब राजधानी के बापू सभागार में महागठबंधन की तरफ से संपूर्ण क्रांति दिवस पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया तो उसमें राजद के अलावा केवल वाम दलों के वरिष्ठ नेताओं ने हिस्सा लिया. तब उसमें कांग्रेस की तरफ से कोई भी विधायक या वरिष्ठ नेता शामिल नहीं हुए.
विधानसभा से राजभवन मार्च से कांग्रेस ने बनायी थी दूरीः इसी तरह 22 जून को तेजस्वी यादव (RJD LEADER TEJASHWI YADAV) ने विधानसभा से राजभवन मार्च का आयोजन किया गया था तो उसमें भी केवल वामदलों के विधायक और राजद के नेता ही सामने नजर आए थे. इस मौके पर भी कांग्रेस की तरफ से कोई प्रतिनिधि उपस्थित नहीं था. खबर यहां तक भी आई कि इस राजभवन मार्च के ठीक पहले ही कांग्रेस आलाकमान ने अपने सभी विधायकों को दिल्ली बुला लिया था.
2021 विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस और राजद में दिखी दूरियांः राजनीति के जानकारों की मानें तो दरअसल राजद और कांग्रेस के बीच तल्खी का एक और कारण राज्य में 2021 में हुए विधानसभा उपचुनाव को भी माना जाता है. तब तारापुर और कुशेश्वरस्थान में विधानसभा उपचुनाव होना था. राजद ने अपने दोनों सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया था, जिसमें तारापुर से अरुण कुमार साह और कुशेश्वरस्थान से गणेश भारती को टिकट दिया गया था. उसी के बाद कांग्रेस ने भी अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा करते हुए तारापुर से राजेश कुमार मिश्रा और कुशेश्वरस्थान से अतिरेक कुमार को उम्मीदवार घोषित कर दिया था.
महागठबंधन में तल्खी को स्वीकारते हैं नेताः हालांकि राजद और महागठबंधन में शामिल कांग्रेस में तल्खी के सवाल पर राजद के नेता धीमे स्वर में ही सही लेकिन बहुत कुछ कह जाते हैं. राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं, तल्खी तो कुछ थी नहीं. उपचुनाव में जब कुशेश्वरस्थान और तारापुर में महागठबंधन के उम्मीदवार दे दिए गए थे तो कांग्रेस ने भी अपने उम्मीदवार उतार दिए थे. कांग्रेस से हमारा पुराना गठबंधन रहा है. हमारी वैचारिक लड़ाई में कांग्रेस हर दिन बिहार में हमारे साथ रही है.
"महागठबंधन में तेजस्वी यादव सीएम फेस थे. आरजेडी ड्राइविंग सीट पर थी और सेंट्रल में कांग्रेस ड्राइविंग सीट पर रहती है, राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए. इसे तल्खी नहीं कह सकते हैं. तेजस्वी विपक्ष के नेता हैं. कई मौकों पर कांग्रेस के नेता उस रणनीति में भी शामिल हुए थे, जब सरकार के खिलाफ लड़ाई की रणनीति बनी थी. विधान परिषद में भी जब उम्मीदवार दिए गए थे तो कयास लगाए जा रहे थे कि कांग्रेस अपना उम्मीदवार दे देगी." मृत्युंजय तिवारी, राजद प्रवक्ता
"महागठबंधन बना था वह सरकार के परिवर्तन और विपक्षी एकता के लिए बना था. चाहे विधानसभा या फिर लोकसभा का चुनाव हो महागठबंधन साथ रहा है. बीच में कई ऐसे मौके आए जब हम साथ में नहीं थे. चाहे वह उपचुनाव का मामला हो या फिर एमएलसी का मामला हो, लेकिन जब जनता के ज्वलंत मुद्दे की बात आती है, तो विपक्षी दलों का कर्तव्य बनता है कि एकजुटता के साथ सरकार का प्रतिरोध करें."-राजेश राठौर, कांग्रेस का प्रवक्ता
"अगर वास्तविकता देखी जाएगी तो इन दोनों दलों में तल्खी बहुत ज्यादा कभी नहीं रही है। दोनों ही दल एक दूसरे के लिए मजबूरी है। खास करके बिहार में ना कांग्रेस राजद को छोड़ना चाहती है ना राजद कांग्रेस को। लालू प्रसाद यादव ने भी कहा था कि बिहार में उनको हम को साथ देना चाहिए था और केंद्र में हम उनका साथ देंगे" मनोज पाठक, वरिष्ठ पत्रकार
मृत्युंजय तिवारी इस बात को स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि कांग्रेस हमारे साथ है. सरकार के खिलाफ पूरा विपक्ष उतर रहा है. 7 अगस्त को सारे विपक्षी पार्टियां और कांग्रेस हमारे साथ हैं. उपचुनाव के बाद कहीं-कहीं कार्यक्रम में कांग्रेस पार्टी शामिल नहीं हो पाई, लेकिन कांग्रेस पार्टी के साथ हमारा वर्षों से गठबंधन रहा है और आज भी हम मानते हैं कि कांग्रेस पार्टी, हमारी पार्टी के विचार से सहमत है. बिहार में मजबूत लड़ाई लड़ने के लिए कांग्रेस तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी के महागठबंधन के साथ है.
कांग्रेस नेता राजेश राठौड़ यह भी कहते हैं कि महागठबंधन द्वारा तय किए गए प्रतिरोध मार्च को लेकर जब मीटिंग हुई थी तो हमारे नेता भी इसमें शामिल हुए थे, सबको पता है कि राज्य स्तर पर अलग-अलग मुद्दे हो सकते हैं. राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का सबसे बड़ा दल कांग्रेस पार्टी है और कांग्रेस पार्टी यह कहती आ रही है कि अभी जो वक़्त और हालात हैं. इसमें विपक्षी एकता की आवश्यकता है. तभी हम संविधान की रक्षा कर पाएंगे.
वरिष्ठ पत्रकार मनोज पाठक कहते हैं कि, इसका मतलब है कि बिहार में राजद किसी भी हालत में उसे ऊपर नहीं चढ़ने देना चाहती है. विधायक या विधान पार्षद बनाना सब की नियति है. विधानसभा उपचुनाव में भी राजद और कांग्रेस अलग-अलग लड़े. विधान परिषद में भी अलग-अलग लड़े. यह केवल सीट के बंटवारे की लड़ाई लड़ाई थी न कि तल्खी थी.
पढ़ें-हाथ को नहीं चाहिए लालटेन का साथ, शीतकालीन सत्र में अलग-अलग दिखेंगे RJD और कांग्रेस