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एक साल पूरा होने से पहले ही आरसीपी सिंह पर लटक गई तलवार ... जानिए क्यों

जेडीयू ने आरसीपी सिंह को राज्यसभा का टिकट (Union Minister RCP Singh) नहीं दिया है. अब इसके कई कारण गिनाये जा रहे हैं. हालांकि पार्टी की ओर से औपचारिक तौर पर इस आशय का कोई बयान नहीं आया है लेकिन राजनीतिक पंडितों का मानना है पार्टी नेतृत्व उनसे खुश नहीं था. पढ़ें पूरी खबर.

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Published : May 30, 2022, 9:18 PM IST

पटना: सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के काफी करीबी कहे जाने वाले जेडीयू नेता व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह (Union Minister RCP Singh) अपने कार्यकाल का 1 साल भी पूरा नहीं कर सके कि पार्टी में उन पर तलवार लटक गयी. पार्टी ने उन्हें राज्यसभा का टिकट नहीं दिया. इससे उनके केंद्रीय मंत्रिमंडल में बने रहने को लेकर संशय उत्पन्न होना स्वाभाविक है. जेडीयू के इस प्रकार के फैसले के लिए कई बातें कही जा रही हैं. सीएम नीतीश कुमार और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के साथ उनके संबंधों में आयी खटास समेत कई कारण गिनाये जा रहे हैं. दूसरी ओर आरसीपी सिंह भी इस राजनीतिक परिस्थिति हिम्मत हारने को तैयार नहीं हैं.

ये भी पढ़ें: आरसीपी सिंह की दो टूक- 'केंद्रीय मंत्रिमंडल से नहीं देंगे इस्तीफा, पहले पीएम मोदी से मिलेंगे'

मजबूती से नहीं रख सके पार्टी का एजेंडा: जदयू नेता आरसीपी सिंह मोदी कैबिनेट में इस्पात मंत्री हैं. जुलाई 2021 को आरसीपी सिंह मोदी कैबिनेट में शामिल हुए थे. तब वे जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और सर्वसम्मति से कैबिनेट का हिस्सा बने थे. आरसीपी सिंह केंद्र में मंत्री बने और ललन सिंह को जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया. केंद्र में मंत्री बने 11 महीने भी नहीं बीते थे कि नीतीश कुमार का आरसीपी सिंह से मोहभंग होना शुरू हो गया. राज्यसभा में आरसीपी सिंह का कार्यकाल 7 जुलाई को खत्म हो रहा है. अब आरसीपी सिंह संभावनाओं की तलाश करेंगे. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से भी आरसीपी सिंह को उम्मीदें हैं.

देखें वीडियो

नीतीश कुमार और ललन सिंह के कड़े फैसले लेने की वजह: 1. जदयू नेताओं को यह लग रहा था कि आरसीपी सिंह भाजपा के फोल्डर में जा चुके हैं.

2. आरसीपी सिंह भाजपा और जदयू के बीच सेतु का काम नहीं कर सके.

3. कई मुद्दों पर आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार से दिशा-निर्देश नहीं लिए.

4. नीतीश कुमार पार्टी में दूसरा पावर सेंटर नहीं चाहते थे.

5. आरसीपी सिंह के केंद्र में मंत्री बनने के बाद से नीतीश कुमार राजनीतिक सौदेबाजी में कमजोर पड़ रहे थे.

6. समानुपातिक प्रतिनिधित्व नहीं मिलने से नीतीश नाराज थे.

7. स्पेशल स्टेटस और जातिगत जनगणना आंदोलन कमजोर हुआ.

8. आरसीपी सिंह के जरिए बिहार को अतिरिक्त लाभ नहीं हुआ.

9. नीतीश कुमार के बयान का खंडन किया था.

नहीं थी नीतीश की सहमति: नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह के मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद कहा था कि हमने सहमति नहीं दी थी. आरसीपी सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और मंत्रिमंडल में शामिल होने का फैसला उनका है. हालांकि आरसीपी सिंह ने कहा कि मंत्रिमंडल में शामिल नीतीश कुमार और ललन सिंह की सहमति से हुआ था.

आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार को कटघरे में खड़ा किया: आरसीपी सिंह ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि मुझे किस बात की सजा मिली है, यह मुझे पता नहीं है. नीतीश कुमार ही बता सकते हैं. जहां तक मंत्रिमंडल में शामिल होने की बात है तो मैं मुख्यमंत्री की सहमति से मंत्रिमंडल में शामिल हुआ था.

'आरसीपी सिंह को जदयू नेता संदेश की दृष्टि से देखने लगे थे. जदयू के बड़े नेताओं को यह लग रहा था कि आरसीपी सिंह बीजेपी के साथ चले गए हैं. जिन मुद्दों पर उन्हें मुखर होना चाहिए था, उन मुद्दों पर वह बीजेपी के साथ खड़े दिखे. ऐसे में नीतीश कुमार ने उन्हें मंत्रिमंडल से ड्राप करना ही मुनासिब समझा.'- अशोक मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार.

ये भी पढ़ें: आरसीपी ने दिखाने शुरू किये बगावती तेवर, जेडीयू के पुराने प्रकोष्ठों काे पुर्नबहाल करने में जुटेंगे

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पटना: सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के काफी करीबी कहे जाने वाले जेडीयू नेता व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह (Union Minister RCP Singh) अपने कार्यकाल का 1 साल भी पूरा नहीं कर सके कि पार्टी में उन पर तलवार लटक गयी. पार्टी ने उन्हें राज्यसभा का टिकट नहीं दिया. इससे उनके केंद्रीय मंत्रिमंडल में बने रहने को लेकर संशय उत्पन्न होना स्वाभाविक है. जेडीयू के इस प्रकार के फैसले के लिए कई बातें कही जा रही हैं. सीएम नीतीश कुमार और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के साथ उनके संबंधों में आयी खटास समेत कई कारण गिनाये जा रहे हैं. दूसरी ओर आरसीपी सिंह भी इस राजनीतिक परिस्थिति हिम्मत हारने को तैयार नहीं हैं.

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मजबूती से नहीं रख सके पार्टी का एजेंडा: जदयू नेता आरसीपी सिंह मोदी कैबिनेट में इस्पात मंत्री हैं. जुलाई 2021 को आरसीपी सिंह मोदी कैबिनेट में शामिल हुए थे. तब वे जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और सर्वसम्मति से कैबिनेट का हिस्सा बने थे. आरसीपी सिंह केंद्र में मंत्री बने और ललन सिंह को जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया. केंद्र में मंत्री बने 11 महीने भी नहीं बीते थे कि नीतीश कुमार का आरसीपी सिंह से मोहभंग होना शुरू हो गया. राज्यसभा में आरसीपी सिंह का कार्यकाल 7 जुलाई को खत्म हो रहा है. अब आरसीपी सिंह संभावनाओं की तलाश करेंगे. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से भी आरसीपी सिंह को उम्मीदें हैं.

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नीतीश कुमार और ललन सिंह के कड़े फैसले लेने की वजह: 1. जदयू नेताओं को यह लग रहा था कि आरसीपी सिंह भाजपा के फोल्डर में जा चुके हैं.

2. आरसीपी सिंह भाजपा और जदयू के बीच सेतु का काम नहीं कर सके.

3. कई मुद्दों पर आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार से दिशा-निर्देश नहीं लिए.

4. नीतीश कुमार पार्टी में दूसरा पावर सेंटर नहीं चाहते थे.

5. आरसीपी सिंह के केंद्र में मंत्री बनने के बाद से नीतीश कुमार राजनीतिक सौदेबाजी में कमजोर पड़ रहे थे.

6. समानुपातिक प्रतिनिधित्व नहीं मिलने से नीतीश नाराज थे.

7. स्पेशल स्टेटस और जातिगत जनगणना आंदोलन कमजोर हुआ.

8. आरसीपी सिंह के जरिए बिहार को अतिरिक्त लाभ नहीं हुआ.

9. नीतीश कुमार के बयान का खंडन किया था.

नहीं थी नीतीश की सहमति: नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह के मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद कहा था कि हमने सहमति नहीं दी थी. आरसीपी सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और मंत्रिमंडल में शामिल होने का फैसला उनका है. हालांकि आरसीपी सिंह ने कहा कि मंत्रिमंडल में शामिल नीतीश कुमार और ललन सिंह की सहमति से हुआ था.

आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार को कटघरे में खड़ा किया: आरसीपी सिंह ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि मुझे किस बात की सजा मिली है, यह मुझे पता नहीं है. नीतीश कुमार ही बता सकते हैं. जहां तक मंत्रिमंडल में शामिल होने की बात है तो मैं मुख्यमंत्री की सहमति से मंत्रिमंडल में शामिल हुआ था.

'आरसीपी सिंह को जदयू नेता संदेश की दृष्टि से देखने लगे थे. जदयू के बड़े नेताओं को यह लग रहा था कि आरसीपी सिंह बीजेपी के साथ चले गए हैं. जिन मुद्दों पर उन्हें मुखर होना चाहिए था, उन मुद्दों पर वह बीजेपी के साथ खड़े दिखे. ऐसे में नीतीश कुमार ने उन्हें मंत्रिमंडल से ड्राप करना ही मुनासिब समझा.'- अशोक मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार.

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