पटना: जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह (RCP Singh) लंबे अंतराल के बाद पटना आ रहे हैं. बहुत कुछ बदल चुका है और नई सियासत की बदलाव की दूसरी डोर पकड़ कर आरसीपी के स्वागत की तैयारी सड़कों पर चल रही है. पूरा पटना पोस्टर से पाट दिया गया है. 3 दिनों तक आरसीपी सिंह बिहार में रहेंगे. इसे लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह है लेकिन जो बदला है अगर उसे समझ ले तो राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर आरसीपी दिल्ली गए थे और केंद्रीय मंत्री के तौर पर पटना लौट रहे हैं.
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इस सफर में जो बदला है, वह जदयू के लिए कितने फायदेमंद रहेगा, आरसीपी की सियासत कहां रहेगी. नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) का भरोसा जो केंद्र और राज्य के बीच में आरसीपी को एक सेतु बनाने के तौर पर रखा गया है, उसकी बानगी क्या होगी, यह अगली सियासत और उठने वाले पर्दे की कड़ी है.
नीतीश जिस राजनीति को कर रहे हैं, उसमें उनके साथ के लोग बिहार में सरकार रहते या बिहार में नीतीश की पार्टी रहते केंद्र में कोई मंत्री नहीं बना था. नीतीश कुमार ने 2003 में जनता दल यूनाइटेड का गठन किया. उससे पहले नीतीश कुमार ही केंद्र में मंत्री थे. नीतीश की पार्टी बनने के बाद जदयू कोटे से केंद्र में कोई भी मंत्री नहीं बना. चाहे वह यूपीए की सरकार रही हो या फिर बीजेपी की. यूपीए की सरकार बस यूं ही बताने के लिए है क्योंकि जब नीतीश कुमार यूपीए का हिस्सा बने थे तो केंद्र में बीजेपी थी. जब बिहार में नीतीश की मजबूत सियासत धुरी पकड़ रही थी तो केंद्र में यूपीए की सरकार थी.
2003 में नीतीश कुमार ने जदयू का गठन किया. 2004 में केंद्र में यूपीए की सरकार बनी जो 2014 तक चली. 2014 में नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के बीच राजनीतिक विभेद ने दिल्ली से दूरी खड़ी की तो बनने वाली सरकार में जदयू की हिस्सेदारी का सवाल ही नहीं था. लेकिन 26 जुलाई 2017 को जब नीतीश कुमार फिर बीजेपी के साथ आये तो चर्चा शुरू हुई कि केंद्र में भी नीतीश की पार्टी हिस्सेदार बनेगी. 2017 से 2019 तक दिल्ली और बिहार में दो इंजन की सरकार के बाद हुए चुनाव में नीतीश ने बिहार में मजबूत दखल दिखाई. लेकिन जब सरकार बनने की बात आई तो 2019 में जदयू को 1 सीट मिली थी जिसे नीतीश ने नकार दिया. दिल्ली में बनी सरकार में जदयू की हिस्सेदारी नहीं हो पाई.
बदले राजनीतिक हालात और केंद्र की सियासत पर अपनी पकड़ बनाये रखने के लिए नीतीश कुमार मंसूबा तो बना रहे थे. 2019 में जिस एक सीट को नीतीश कुमार ने नकार दिया था, 2021 में उसी सीट पर उन्होंने हामी भर दी. वजह साफ थी कि दिल्ली में सरकारी दखल अगर नहीं होगी तो बिहार की बहुत सारी बातें दिल्ली सल्तनत तक नहीं पहुंच पाएंगी. आरसीपी उसके सूत्रधार भी हैं और कार्णधार भी. यही वजह है कि जदयू में आरसीपी की एक अलग यूएसपी बन गई है.
केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार ने आरसीपी को इसलिए भी बहुत आसानी से ले लिया क्योंकि वे पूर्व नौकरशाह हैं. 2021 में जो केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार का जो विस्तार हुआ, उसमें कई पूर्व नौकरशाहों को जगह मिली है. उद्देश्य साफ था कि विकास को जो दिशा देना है, उसे नौकरशाह ज्यादा मजबूती से कर पायेंगे. इसीलिए नीतीश के मजबूत सिपहसालार आरसीपी को जगह मिल गई. वे पूर्व नौकरशाह हैं. वे सरकारी कामकाजों के बारे में बेहतर तरीके से जानते हैं. यह भी आरसीबी की एक यूएसपी है.
बिहार में आरसीपी के आने को लेकर जबरदस्त तैयारी है. इसकी वजह भी साफ है कि आरसीपी ही पहले नेता है जो जदयू के लिखे जाने वाले इतिहास के पन्नों में दर्ज होंगे कि वे केंद्र में मंत्री बने थे. क्योंकि जदयू के कोटे से केंद्र में पहले मंत्री आरसीपी सिंह ही हैं. यह भी आरसीपी की यूएसपी बन गई.
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अब रही बात बिहार की तो आरसीपी की जो जाति है, उसे पकड़ने के लिए नीतीश कुमार को किसी दूसरे नाम की जरूरत नहीं है. कुल मिलाकर अगर जाति समीकरण की गोलबंदी को ही समझ लिया जाए तो बिहार में नीतीश ने आरसीपी को जिस मोहरे के रूप में रखा है, उसमें वह पूरे तौर पर सफल रहे हैं. यह भी आरसीपी की एक यूएसपी ही है.
2020 की सियासत के बाद बिहार में नीतीश कुमार की जो राजनीति अब जगह ले रही है, उसमें पार्टी को बड़ा करना जरूरी है. ऐसे में दिल्ली तक तो पार्टी अपनी दखल के साथ पहुंच गई है. यूपी में सियासी दखल की तैयारी है. बाकी जगहों पर भी पार्टी आगे बढ़ेगी. ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व और निगेहबानी दोनों की जरूरत है. इसके लिए आरसीपी नीतीश के भरोसेमंद हैं. अब देखना होगा कि जिस नए अवतार में आरसीपी अपनी इस यूएसपी के साथ आये हैं, उसका मजमून और आने वाले समय में राजनीति का आधार किस यूएसपी के साथ होता है. यह सबसे अहम होगा.