पटना: बिहार विधानसभा ( Bihar Assembly ) में विधायकों के साथ मारपीट और दुर्व्यवहार करने के आरोप में 2 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया. बिहार विधानसभा में 23 मार्च को विधायकों की हुई पिटाई के मामले में दो पुलिसकर्मियों शेषनाथ प्रसाद और रंजीत कुमार के खिलाफ ये एक्शन लिया गया है. उन पर आरोप है कि उन्होंने गैरजिम्मेदाराना व्यवहार किया और नियमों का भी उल्लघंन हुआ.
दरअसल, दोनों पुलिसकर्मियों की पदस्थापना पुलिस लाइन में थी, परंतु बजट सत्र के दौरान इन्हें विधानसभा की कार्यवाही हेतु विधानसभा ( Bihar Vidhansabha ) में ड्यूटी लगाई गई थी. इधर विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ( Assembly Speaker Vijay Kumar Sinha ) द्वारा की गई कार्रवाई के बाद बिहार में सियासत तेज है. सत्ता पक्ष भले ही कार्रवाई के पक्ष में है, लेकिन विपक्ष सवाल उठा रहा है. वहीं पूर्व आईपीएस अधिकारी इस कार्रवाई को औपचारिकता बता रहे हैं.
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रिटायर्ड आईपीएस अमिताभ दास के अनुसार, विधायकों से मारपीट में जो सबसे कमजोर व्यक्ति था, उसे बलि का बकरा बना दिया गया और दो सिपाहियों सस्पेंड कर सिर्फ खानापूर्ति की गई है.
'विधानसभा के अंदर आतंकी तो रहते नहीं हैं, आखिर क्या कारण था कि पुलिस को विधानसभा के अंदर प्रवेश करवाया गया था? सिपाही ने जो भी एक्शन लिया होगा, वह वरीय पदाधिकारी के कहने पर ही लिया होगा तो ऐसे में वरीय पदाधिकारी को क्यों बचाया जा रहा है?'- अमिताभ दास, रिटायर्ड आईपीएस
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बता दें कि 23 मार्च को नए पुलिस बिल के विरोध में आरजेडी, कांग्रेस और वाम दल सहित सभी विपक्षी दलों ने सदन के अंदर जमकर हंगामा किया था. हंगामे की वजह से छह बार विधानसभा की कार्रवाई को स्थगित करनी पड़ी थी. विधानसभा सत्र इतना हंगामेदार रहा था कि मार्शल के रहने के बावजूद बाहर से पुलिसकर्मियों को सदन के अंदर बुलाया गया था.
हंगामा कर रहे विधायकों को बलपूर्वक विधानसभा से बाहर किया गया था. जिसमें कई पुलिसकर्मी विधायकों पर लात-घुसों से वार करते नजर आए थे. विधायकों की मांग पर विधानसभा अध्यक्ष ने इस मामले में डीजीपी और गृह सचिव को जांच करने का निर्देश दिया था, उसी के रिपोर्ट के आधार पर सुरक्षा में लगे 2 सिपाही शेषनाथ प्रसाद और रंजीत कुमार पर कार्रवाई हुई है.
दरअसल, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने पूरी घटना को लेकर विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा को चिट्ठी लिखी थी कि इस घटना के बाद सदस्यों को सदन में जाने से डर लग रहा है. विपक्ष का कहना है कि मानसून सत्र जो कि 26 जुलाई से शुरू हो रहा है, उसे देखते हुए ये कार्रवाई की गई है और दिखाने के लिए दो सिपाहियों को सस्पेंड किया गया है.
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इस कार्रवाई पर कांग्रेस प्रवक्ता राजेश राठौड़ ने कहा कि लोकतंत्र के मंदिर में सरकार के निर्देशानुसार पुलिस के द्वारा जो कृत्य किया गया था, उसमें महज दो सिपाहियों पर कार्रवाई करने से कुछ नहीं होगा. कहीं ना कहीं, दो सिपाहियों को बलि का बकरा बनाया गया है.
'विधानसभा के अंदर का फुटेज निकाला जाए और उस फुटेज के आधार पर कार्रवाई की जाए. जब तक के वरिष्ठ अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होगी, तब तक यह नहीं माना जा सकता है कि विधानसभा अध्यक्ष ने निष्पक्ष होकर कार्रवाई की है, अन्यथा यह माना जाएगा कि उनके संरक्षण में ही विधायकों की पिटाई की गई है.'- राजेश राठौड़, प्रवक्ता, कांग्रेस
वहीं, सत्ताधारी पार्टी जेडीयू प्रवक्ता का कहना है कि जो भी आरोप लगाए जा रहे हैं, वह बेबुनियाद है. उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि विपक्ष बजट सत्र के दौरान किए गए व्यवहार को इस बार नहीं दोहराएगा.
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'विधानसभा के अध्यक्ष को बंधक नहीं बनाया जा सकता है. विधानसभा को विपक्ष द्वारा रणभूमि बना दिया गया था. सिपाही या पुलिस अधिकारी ड्यूटी कर रहे थे. विपक्ष को अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए कि जो उन्होंने किया था क्या वह ठीक था? जिन पर कार्रवाई करनी थी, कर दी गई है.'- अजय आलोक, प्रवक्ता, जेडीयू
हालांकि सिपाहियों पर की गई कार्रवाई को लेकर पुलिस मुख्यालय कुछ भी बोलने से बच रहा है. ऐसे में ये माना जा रहा है कि मानसून सत्र के दौरान सस्पेंशन पर सियासत होगी और विपक्ष इसे मुद्दा बनाएगा.