पटना: बिहार में पूर्ण शराबबंदी (Liquor Ban in Bihar) लागू है लेकिन शराब से मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. पिछले 24 घंटे में 5 और लोगों की जहरीली शराब से मौत हो गई है. शराबबंदी के मॉडल को लेकर बहस शुरू हो गई है. बिहार में गुजरात मॉडल की वकालत की जाने लगी है.
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जहरीली शराब से मौत ने सरकार की नींद उड़ा दी है. बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बावजूद इस साल अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हो गई है. पिछले 24 घंटों में पांच की मौत जहरीली शराब पीने से हुई है. राज्य में जहरीली शराब से मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. 2 सेना के जवानों की मौत भी जहरीली शराब के वजह से हो चुकी है. होली और दीपावली जैसे त्यौहारों के दौरान नकली शराब की जबरदस्त तस्करी होती है. शराब माफिया पुलिस के साथ गठजोड़ कर अवैध कारोबार को अंजाम देने में सफल हो जाते हैं.
जहरीली शराब से मौत के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में सियासी संग्राम छिड़ गया है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने शराबबंदी कानून की समीक्षा की बात कह कर बहस छेड़ दी है. अब भाजपा नेता शराबबंदी के बिहार मॉडल पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं. एक तरीके से भाजपा ने शराबबंदी के बिहार मॉडल को खारिज करते हुए गुजरात मॉडल की वकालत की है. दरअसल, गुजरात में भी शराब बंदी लागू है. वहां, परमिट के आधार पर लोगों को शराब दिया जाता है. 6.75 करोड़ की बसावट में गुजरात में मेडिकल आधार 31,000 लोगों को लिकर परमिट दिया गया है. जबकि विजिटर और टूरिस्ट परमिट जैसे टेंपरेरी परमिट को मिलाकर कुल 66,000 लोगों को परमिट दिया गया है.
स्वास्थ्य कारण बताकर सुबह में शराब पीने का परमिट मिल सकता है जिसे हेल्थ परमिट कहते हैं. गुजरात राज्य में शराब की बिक्री करने वाली सिर्फ 60 दुकानें हैं. शराबबंदी से होने वाले टैक्स की भरपाई के लिए केंद्र सरकार हर साल गुजरात को 1200 सौ करोड़ की राशि देती है. गुजरातियों को कानूनी रूप से शराब पीने के लिए राज्य के प्रोहिबिशन विभाग द्वारा परमिट दिया जाता है. इंडिया परमिट हासिल करने के लिए शारीरिक या मानसिक तौर पर बीमारी का प्रमाण पत्र दिखाना जरूरी है जो किसी एमडी डॉक्टर ने जारी किया गया हो.
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परमिट हासिल करने के लिए आवेदन पत्र के साथ डॉक्टर से प्राप्त प्रमाण पत्र और आयकर दस्तावेज भी दाखिल करने होते हैं. रोज कितनी मात्रा में शराब की जरूरत है या सिविल अस्पताल का डॉक्टर ही तय करता है और परमिट धारी राज्य सरकार की प्रमाणित लिकर शॉप से शराब की खरीदारी कर सकते हैं. गुजरात घूमने वाले बाहर के लोग गुजरात में शराब पी सकते हैं लेकिन गुजरातियों को छूट नहीं है. कोई बिहार का व्यक्ति शराब खरीदने जाता है तो उसे शराब नहीं दिया जाता इसलिए कि बिहार में शराबबंदी है. ऐसे में शराबबंदी के बिहार मॉडल और गुजरात मॉडल को लेकर बहस शुरू हो गई है. भाजपा नेता जहां गुजरात मॉडल की वकालत कर रहे हैं, वहीं जदयू बिहार मॉडल के पक्ष में खड़ी दिख रही है.
भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा है कि शराबबंदी को लेकर बिहार से सर्व सम्मत प्रस्ताव पारित किया गया था लेकिन लगातार राज्य में जहरीली शराब पीने से लोगों की मौतें हो रही है. यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. ऐसे में एक ओर जहां अधिकारियों पर लगाम कसने की जरूरत है, वहीं दूसरी तरफ शराबबंदी के गुजरात मॉडल पर भी सरकार को विचार करना चाहिए. गुजरात में कभी भी जहरीली शराब पीने से मौत की घटना सामने नहीं हुई है.
जदयू प्रवक्ता अरविंद निषाद ने कहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महात्मा गांधी के सपने को सच कर रहे हैं. शराबबंदी का बिहार मॉडल सबसे बेहतर है. कई राज्यों की टीम ने बिहार के मॉडल का अध्ययन किया है और उसे सराहा भी गया है. वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी का मानना है कि बिहार में सही मंसूबों के साथ शराबबंदी लागू की गयी थी लेकिन अधिकारियों की वजह से इस कानून की हवा निकलती दिख रही है. जहरीली शराब से मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. ऐसे में शराबबंदी के मॉडल को लेकर बृहद रूप में विमर्श की जरूरत है.
प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने भी इशारे में कह दिया है और अब भाजपा के नेता भी मुखर हो रहे हैं. महिलाओं के अनुरोध पर मुख्यमंत्री ने बिहार में शराब बंदी लागू की थी लेकिन जहरीली शराब की वजह से महिलाओं के सुहाग उजड़ रहे हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिस सपने को लेकर नीतीश कुमार आगे बढ़े थे, उसे अधिकारियों ने धूल धूसरित कर दिया. जाहिर तौर पर शराबबंदी के मॉडल पर सवाल उठना लाजमी है.
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