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चुनाव प्रचार में नेताओं के बिगड़े बोल, लांघी मर्यादा की सारी सीमाएं

इन दिनों लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान नेताओं के बोल इस कदर बिगड़े हैं कि चुनाव आयोग को सख्ती बरतनी पड़ रही है. हालांकि राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि इससे व्यक्ति की हताशा का पता चलता है.

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Published : May 16, 2019, 8:32 PM IST

पटना: देश में लोकसभा चुनाव का शोर चारों ओर है. हालांकि इस बार चुनाव प्रचार का तरीका लगातार गलत दिशा में जाता दिखा. चुनाव प्रचार के दौरान नेता एक दूसरे पर पर्सनल अटैक पहले भी करते रहे हैं, लेकिन इस बार इसका स्तर काफी नीचे जाता दिखा.

चुनाव आयोग की सख्ती बेअसर
इस चुनाव में नेताओं के बोल इतने खतरनाक तरीके से बिगड़े हैं कि चुनाव आयोग की सख्ती भी बेअसर दिखी. चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह नेताओं ने एक दूसरे पर्सनल और सोशल कमेंट किए वह चुनाव प्रचार में जहर घोलने जैसा था. विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में तो कई बार चुनाव आयोग को सख्त रूप अपनाना पड़ा. यहां तक कि बीते दिनों भी बंगाल में भी अमित शाह के रोड शो के दौरान हिंसा की घटना के बाद भी नेताओं ने एक दूसरे पर काफी आक्रामक रुख अख्तियार किया.

किए गए पर्सनल और सोशल कमेंट
आयोग ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बसपा सुप्रीमो मायावती समेत कई नेताओं को चुनाव प्रचार से सीमित अवधि के लिए अलग रखने के निर्देश जारी किए. योगी और मायावती के अलावा आजम खान, नवजोत सिंह सिद्धू और राहुल गांधी ने कई बार सीधे प्रधानमंत्री पर भी कई बार आपत्तिजनक शब्दों से वार किया. वहीं, यूपी में आजम खान ने जयाप्रदा के बारे में काफी कुछ कहा.

पटना से संवाददाता अमित वर्मा की रिपोर्ट

नेताओं के बीच कड़वाहट
बिहार में भी नेताओं के बीच कड़वाहट खुलकर सामने आई. कई बार राजद की तरफ से प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए भी अभद्र शब्दों का इस्तेमाल किया गया. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों नेता इस तरह के कमेंट करते हैं. क्या चुनाव में इसका उन्हें फायदा मिलता है?

झलकती है नेताओं की हताशा
इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि इससे व्यक्ति की हताशा का पता चलता है. इस बार हर प्रत्याशी पशोपेश में है कि चुनाव में क्या होगा. ऐसे में अभद्र शब्दों के जरिए उनकी हताशा झलक रही है. वहीं, राजनेता मानते हैं कि जो लोग अपनी हार तय मान चुके हैं और जिन्हें यह पता है कि अब किसी भरोसे उनकी जीत नहीं हो सकती, वही दूसरे प्रत्याशियों के लिए या नेताओं के लिए ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं.

पटना: देश में लोकसभा चुनाव का शोर चारों ओर है. हालांकि इस बार चुनाव प्रचार का तरीका लगातार गलत दिशा में जाता दिखा. चुनाव प्रचार के दौरान नेता एक दूसरे पर पर्सनल अटैक पहले भी करते रहे हैं, लेकिन इस बार इसका स्तर काफी नीचे जाता दिखा.

चुनाव आयोग की सख्ती बेअसर
इस चुनाव में नेताओं के बोल इतने खतरनाक तरीके से बिगड़े हैं कि चुनाव आयोग की सख्ती भी बेअसर दिखी. चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह नेताओं ने एक दूसरे पर्सनल और सोशल कमेंट किए वह चुनाव प्रचार में जहर घोलने जैसा था. विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में तो कई बार चुनाव आयोग को सख्त रूप अपनाना पड़ा. यहां तक कि बीते दिनों भी बंगाल में भी अमित शाह के रोड शो के दौरान हिंसा की घटना के बाद भी नेताओं ने एक दूसरे पर काफी आक्रामक रुख अख्तियार किया.

किए गए पर्सनल और सोशल कमेंट
आयोग ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बसपा सुप्रीमो मायावती समेत कई नेताओं को चुनाव प्रचार से सीमित अवधि के लिए अलग रखने के निर्देश जारी किए. योगी और मायावती के अलावा आजम खान, नवजोत सिंह सिद्धू और राहुल गांधी ने कई बार सीधे प्रधानमंत्री पर भी कई बार आपत्तिजनक शब्दों से वार किया. वहीं, यूपी में आजम खान ने जयाप्रदा के बारे में काफी कुछ कहा.

पटना से संवाददाता अमित वर्मा की रिपोर्ट

नेताओं के बीच कड़वाहट
बिहार में भी नेताओं के बीच कड़वाहट खुलकर सामने आई. कई बार राजद की तरफ से प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए भी अभद्र शब्दों का इस्तेमाल किया गया. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों नेता इस तरह के कमेंट करते हैं. क्या चुनाव में इसका उन्हें फायदा मिलता है?

झलकती है नेताओं की हताशा
इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि इससे व्यक्ति की हताशा का पता चलता है. इस बार हर प्रत्याशी पशोपेश में है कि चुनाव में क्या होगा. ऐसे में अभद्र शब्दों के जरिए उनकी हताशा झलक रही है. वहीं, राजनेता मानते हैं कि जो लोग अपनी हार तय मान चुके हैं और जिन्हें यह पता है कि अब किसी भरोसे उनकी जीत नहीं हो सकती, वही दूसरे प्रत्याशियों के लिए या नेताओं के लिए ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं.

Intro:देश में इस वक्त लोकसभा चुनाव का सूर्य और है सोर चारों ओर है हालांकि चुनाव प्रचार का तरीका लगातार गलत दिशा में जाता दिखा चुनाव प्रचार के दौरान नेता एक दूसरे पर पर्सनल अटैक पहले भी करते रहे हैं लेकिन इस बार इसका स्तर काफी नीचे जाता हुआ दिखा आखिर क्यों नेता जी निम्न स्तर की भाषा चुनाव में इस्तेमाल करते हैं । पेश है, इसपर पटना से एक खास रिपोर्ट।


Body: इस चुनाव में नेताओं के बोल इतने खतरनाक सुबह कि आयोग की सख्ती भी कहीं ना कहीं असर खोती दिखी। चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह नेताओं ने एक दूसरे पर निहायत ही पर्सनल और और सामाजिक कमेंट किए वह चुनाव प्रचार में ज़हर घोलने के जैसा था विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में तो कई बार चुनाव आयोग को सख्त रूप अपनाते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूर्व मुख्यमंत्री मायावती समेत कई नेताओं को चुनाव प्रचार से सीमित अवधि के लिए अलग करना पड़ा।
योगी और मायावती के अलावा आजम खान, नवजोत सिंह सिद्धू और राहुल गांधी ने तो सीधे प्रधानमंत्री पर ही कई बार आपत्तिजनक शब्दों से वार किया।
इस बार तो महिलाओं को लेकर भी खुद प्रधानमंत्री तक ने ऐसी टिप्पणी की जिसकी खूब चर्चा हुई प्रधानमंत्री ने रेणुका चौधरी की हंसी की तुलना शूर्पणखा से की थी। यूपी में आजम खान ने जयाप्रदा के बारे में काफी कुछ कहा।
बिहार में भी नेताओं के बीच कड़वाहट खुलकर सामने आई। कई बार राजद की तरफ से प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए भी अभद्र शब्दों का प्रयोग किया गया। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों नेता जी इस तरह के कमेंट करते हैं। चुनाव में उन्हें क्या फायदा मिलता है। क्या अभद्र शब्दों के इस्तेमाल से नेताओं को चुनाव में फायदा मिलता है।
इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि इससे कहीं ना कहीं व्यक्ति की हताशा का पता चलता है। इस बार हर प्रत्याशी पशोपेश में है कि चुनाव में क्या होगा। ऐसे में अभद्र शब्दों के जरिए उनकी हताशा झलक रही है। वही राजनेता मानते हैं कि जो लोग अपनी हार तय मान चुके हैं और जिन्हें यह पता है कि अब किसी भरोसे उनकी जीत नहीं हो सकती वही दूसरे प्रत्याशियों के लिए या नेताओं के लिए ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं।


Conclusion:ऐसा नहीं है कि नेताओं के बिगड़े बोल सिर्फ भारत में ही चुनाव के दौरान देखने को मिल रहे हैं। ऐसा ही कुछ अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान दिखा था जब डोनाल्ड ट्रंप ने कभी मुसलमानों को लेकर तो कभी हिलेरी क्लिंटन को लेकर विवादास्पद टिप्पणी की थी।

बाइट डी एम दिवाकर, राजनीतिक विश्लेषक
अजय कुमार झा, राजनीतिक विश्लेषक
प्रेम रंजन पटेल बीजेपी नेता
पीटीसी
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