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राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकार के गठन पर HC सख्त, कहा- चार दिनों में चाहिए ठोस जवाब - etv bihar news

राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकार को लेकर पटना हाईकोर्ट काफी सख्त नजर आ रहा है. कोर्ट ने सरकार को चार दिनों का समय देते हुए इस प्राधिकार को पूरी तरह से शुरू करने के लिए एक समय सीमा देने का निर्देश दिया है. आगे पढ़ें पूरी खबर...

Patna High Court
Patna High Court
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Published : Apr 2, 2022, 2:05 PM IST

पटना : पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) में मानसिक रोग चिकित्सा के सिलसिले में राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकार (Mental Health Authority) के गठन व उसके कर्तव्यों का लाभ मानसिक रोगियों को नहीं पहुंचाने के मामले पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस संजय करोल संजय करोल की खण्डपीठ ने आकांक्षा मालवीय की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को अगली सुनवाई में कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया.

ये भी पढ़ें - पटना हाईकोर्ट ने उत्पाद कोर्ट पर किये जा रहे काम का मांगा ब्यौरा, सरकार को दिया 3 सप्ताह का समय

'चार दिनों में चाहिए ठोस जवाब' : कोर्ट ने चार दिनों का समय देते हुए इस प्राधिकार को पूरी तरह से शुरू करने के लिए एक समय सीमा देने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यदि मेंटल हेल्थ केयर कानून जो 2017 में बनी है, उसे बिहार में गठित कर पूरी तरह से चालू करने के सिलसिले में यदि चार दिनों में ठोस जवाब नहीं मिला, तो कोर्ट को मुख्य सचिव सहित स्वास्थ्य विभाग के वरीय अधिकारी को तलब करना होगा.

'चार साल क्यों लग गए?' : कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जतायी कि जब कानून के अधिसूचित होने के 9 महीने के अंदर ही सभी राज्यों को मेंटल हेल्थ केयर ऑथोरिटी का गठन कर लेना था, तो राज्य सरकार को इसमें चार साल क्यों लग गए? इस ऑथोरिटी का गठन राज्य स्तर पर मानसिक रोगियों की चिकित्सा सेवा, उन्हें समुचित जगह मुहैय्या कराने और उन्हें अमानवीय बर्ताव से बचाने एवम राज्य के मानसिक चिकित्सा संस्थान की देखरेख के लिए गठन हुआ कानूनी तरीके से आवश्यक है.

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया कि देश के लगभग 10 फीसदी आबादी बिहार में रहती है. फिर भी यहां सिर्फ एक मानसिक रोग अस्पताल कोइलवर में हैं. कोर्ट ने राज्य व केंद्र सरकार से इस सम्बन्ध में विस्तृत ब्यौरा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है. इस मामले पर अगली सुनवाई 7 अप्रैल को होगी.

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पटना : पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) में मानसिक रोग चिकित्सा के सिलसिले में राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकार (Mental Health Authority) के गठन व उसके कर्तव्यों का लाभ मानसिक रोगियों को नहीं पहुंचाने के मामले पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस संजय करोल संजय करोल की खण्डपीठ ने आकांक्षा मालवीय की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को अगली सुनवाई में कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया.

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'चार दिनों में चाहिए ठोस जवाब' : कोर्ट ने चार दिनों का समय देते हुए इस प्राधिकार को पूरी तरह से शुरू करने के लिए एक समय सीमा देने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यदि मेंटल हेल्थ केयर कानून जो 2017 में बनी है, उसे बिहार में गठित कर पूरी तरह से चालू करने के सिलसिले में यदि चार दिनों में ठोस जवाब नहीं मिला, तो कोर्ट को मुख्य सचिव सहित स्वास्थ्य विभाग के वरीय अधिकारी को तलब करना होगा.

'चार साल क्यों लग गए?' : कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जतायी कि जब कानून के अधिसूचित होने के 9 महीने के अंदर ही सभी राज्यों को मेंटल हेल्थ केयर ऑथोरिटी का गठन कर लेना था, तो राज्य सरकार को इसमें चार साल क्यों लग गए? इस ऑथोरिटी का गठन राज्य स्तर पर मानसिक रोगियों की चिकित्सा सेवा, उन्हें समुचित जगह मुहैय्या कराने और उन्हें अमानवीय बर्ताव से बचाने एवम राज्य के मानसिक चिकित्सा संस्थान की देखरेख के लिए गठन हुआ कानूनी तरीके से आवश्यक है.

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया कि देश के लगभग 10 फीसदी आबादी बिहार में रहती है. फिर भी यहां सिर्फ एक मानसिक रोग अस्पताल कोइलवर में हैं. कोर्ट ने राज्य व केंद्र सरकार से इस सम्बन्ध में विस्तृत ब्यौरा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है. इस मामले पर अगली सुनवाई 7 अप्रैल को होगी.

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