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JDU नेतृत्व में जार्ज-शरद की तलाश कर रहे हैं नीतीश कुमार! - पटना ताजा समाचार

जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर आज स्थिति स्पष्ट हो जायेगी. पार्टी की कमान चाहे जिसके हाथों में जाये, नीतीश कुमार चाहते हैं कि जॉर्ज फर्नांडीस और शरद यादव जैसा कोई मिले जिससे बड़े फैसले लेने में उन्हें सहूलियत हो.

Nitish Sharad
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Published : Jul 31, 2021, 12:54 PM IST

Updated : Jul 31, 2021, 1:48 PM IST

पटना: बिहार के सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) जब भी किसी बदलाव की तरफ जाते हैं, उनकी नीतियों और निर्णय पर चर्चा लाजमी है. नीतीश कुमार ने बिहार में जो कुछ किया और बिहार के साथ जिस तरह उनका निर्णयों सफल रहा है, उसमें कुछ नाम ऐसे हैं जो उनकी सफलता की कहानी कहते हैं. जब वे अलग हो गए तो नीतीश के लिए परेशानियां बढ़ गई हैं. उस दौर की सियासत में जैसी स्थिरता नीतीश कुमार को मिली, आज राजनीतक स्थिरता की कमी साफ दिखती है.

ये भी पढ़ें: JDU अध्यक्ष की रेस: 'शनि' देव किसकी कराएंगे ताजपोशी, किसका बिगाड़ेंगे 'खेल'

नीतीश कुमार की राजनीति में सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) और पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी (Former PM Atal Bihari Bajpai) का जॉर्ज फर्नांडीस से मिलने एम्स जाना था. यहां से बदली सियासत ने नीतीश के कैरियर में वह स्थान दिया जहां उनके आगे बैठा नेता सिर्फ उनको संरक्षण देता रहा.

नीतीश जब तक जॉर्ज फर्नांडिस की छांव में थे, लगातार राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते गये. लेकिन यह भी तय था कि नीतीश के निर्णय में बहुत हद तक शब्दों में ही सही, लेकिन वरिष्ठ नेताओं की राय रहती थी. अब नीतीश कुमार स्वयं निर्णय लेते हैं. ऐसे में नीतियां बहुत हद तक बड़ी नहीं हो पा रही हैं.

नीतीश कुमार बिहार की सियासत में स्थापित हुए क्योंकि राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव (Sharad Yadav) ने दिल्ली में डेरा जमा लिया था. नीतीश बिहार की सियासत में जो कुछ करते, अगर उससे दिल्ली की कोई नाराजगी होती भी थी तो शरद यादव उसे निपटा देते थे. नीतीश के लिए सबसे सुकून की बात यही थी.

पार्टी में कुछ चीजें इधर-उधर भी होती थीं तो नीतीश के पास एक ही उत्तर होता था कि राष्ट्रीय अध्यक्ष से पूछ कर इस पर निर्णय लिया जाएगा. जब पूछे लेने वाली परिपाटी जदयू में खत्म हुई, नीतीश कुमार स्वयं निर्णय लेने लगे तो पार्टी में कई तरह के सवाल उठने लगे.

नीतीश कुमार की पार्टी दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन कर रही है. ऐसे में नीतीश की अगली पंक्ति के दो नेताओं का नाम इसलिए भी आ रहा है कि जब तक नीतीश के आगे दो नाम थे, तब वे लगातार आगे थे. उनके सभी निर्णय मजबूती से जमीन पर उतरते थे.

जबसे नीतीश के आगे खड़े होने वाले नाम हट गये, तब से उनके हर निर्णय पर सवाल उठने लगे. अब देखना यह होगा कि जिस राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन के लिए पूरी जदयू दिल्ली में है. उसमें नीतीश की नीतियों को अमलीजामा पहनाने के लिए कौन दूसरा शरद यादव बनेगा. यह जदयू के आगे की राजनीतिक सफर को तय करेगा.

पटना: बिहार के सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) जब भी किसी बदलाव की तरफ जाते हैं, उनकी नीतियों और निर्णय पर चर्चा लाजमी है. नीतीश कुमार ने बिहार में जो कुछ किया और बिहार के साथ जिस तरह उनका निर्णयों सफल रहा है, उसमें कुछ नाम ऐसे हैं जो उनकी सफलता की कहानी कहते हैं. जब वे अलग हो गए तो नीतीश के लिए परेशानियां बढ़ गई हैं. उस दौर की सियासत में जैसी स्थिरता नीतीश कुमार को मिली, आज राजनीतक स्थिरता की कमी साफ दिखती है.

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नीतीश कुमार की राजनीति में सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) और पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी (Former PM Atal Bihari Bajpai) का जॉर्ज फर्नांडीस से मिलने एम्स जाना था. यहां से बदली सियासत ने नीतीश के कैरियर में वह स्थान दिया जहां उनके आगे बैठा नेता सिर्फ उनको संरक्षण देता रहा.

नीतीश जब तक जॉर्ज फर्नांडिस की छांव में थे, लगातार राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते गये. लेकिन यह भी तय था कि नीतीश के निर्णय में बहुत हद तक शब्दों में ही सही, लेकिन वरिष्ठ नेताओं की राय रहती थी. अब नीतीश कुमार स्वयं निर्णय लेते हैं. ऐसे में नीतियां बहुत हद तक बड़ी नहीं हो पा रही हैं.

नीतीश कुमार बिहार की सियासत में स्थापित हुए क्योंकि राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव (Sharad Yadav) ने दिल्ली में डेरा जमा लिया था. नीतीश बिहार की सियासत में जो कुछ करते, अगर उससे दिल्ली की कोई नाराजगी होती भी थी तो शरद यादव उसे निपटा देते थे. नीतीश के लिए सबसे सुकून की बात यही थी.

पार्टी में कुछ चीजें इधर-उधर भी होती थीं तो नीतीश के पास एक ही उत्तर होता था कि राष्ट्रीय अध्यक्ष से पूछ कर इस पर निर्णय लिया जाएगा. जब पूछे लेने वाली परिपाटी जदयू में खत्म हुई, नीतीश कुमार स्वयं निर्णय लेने लगे तो पार्टी में कई तरह के सवाल उठने लगे.

नीतीश कुमार की पार्टी दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन कर रही है. ऐसे में नीतीश की अगली पंक्ति के दो नेताओं का नाम इसलिए भी आ रहा है कि जब तक नीतीश के आगे दो नाम थे, तब वे लगातार आगे थे. उनके सभी निर्णय मजबूती से जमीन पर उतरते थे.

जबसे नीतीश के आगे खड़े होने वाले नाम हट गये, तब से उनके हर निर्णय पर सवाल उठने लगे. अब देखना यह होगा कि जिस राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन के लिए पूरी जदयू दिल्ली में है. उसमें नीतीश की नीतियों को अमलीजामा पहनाने के लिए कौन दूसरा शरद यादव बनेगा. यह जदयू के आगे की राजनीतिक सफर को तय करेगा.

Last Updated : Jul 31, 2021, 1:48 PM IST
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