पटना: बिहार में भूमि विवाद (Land Dispute In Bihar) के मामले सबसे ज्यादा सामने आते हैं. भूमि विवाद के चलते आपराधिक घटनाएं भी होती हैं. राज्य के अंदर भूमि विवाद कम हो इसके लिए सरकार ने बड़ी पहल की है. पोर्टल के जरिए लोग अब भूमि से जुड़े तमाम कार्य सुलझा सकते हैं. इसके साथ ही चकबंदी (Bihar Chakbandi Rules) के लिए भी आईआईटी रुड़की से सर्वे (IIT Roorkee Survery In Bihar) कराया गया है. भूमि सुधार विभाग के मंत्री राम सूरत राय (Minister Ram Surat Rai) ने कहा कि सर्वे के काम को आईआईटी रुड़की की पांच सदस्य टीम से करवाया गया है.
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बिहार भूमि विवाद के मामले में अव्वल है. भूमि विवाद कम से कम हो इसके लिए सरकार डिजिटाइजेशन पर जोर दे रही है. जमीन की मापी जहां मशीन के द्वारा कराने की योजना है. वहीं मानव बल की कमी को लेकर भी सरकार कार्रवाई कर रही है. बिहार सरकार ने आईआईटी रुड़की से सर्वेक्षण का काम करा लिया है. आने वाले दिनों में किसानों के जमीन को एक जगह किया जाएगा.
"आने वाले दिनों में हम लोग चकबंदी कर किसानों को जमीन मुहैया करवा देंगे. मानव बल की कमी को दूर करने के लिए भी सरकार कार्रवाई कर रही है. संविदा पर कर्मचारियों की नियुक्ति किए जा रहे हैं. वहीं अस्थाई नियुक्ति भी प्रक्रिया में है".- राम सूरत राय, भूमि सुधार मंत्री, बिहार
राजस्व विभाग ने खेतिहर भूमि विवाद को सुलझाने के लिए कदम उठाए हैं. आईआईटी रुड़की के जरिए भूमि सर्वेक्षण का काम कराया जा रहा है. आने वाले दिनों में किसानों के अलग-अलग जगह पर जमीन को चकबंदी के जरिए एक जगह किया जाएगा.
बता दें कि चकबंदी वह विधि है जिसके द्वारा व्यक्तिगत खेती को टुकड़ों में विभक्त होने से रोका एवं संचयित किया जाता है. किसी ग्राम की समस्त भूमि को और कृषकों के बिखरे हुए भूमिखंडों को एक पृथक् क्षेत्र में पुनर्नियोजित किया जाता है. चकबंदी के अंतर्गत किसान की जोतों को एक स्थान में एकत्रित किया जाता है.
बिहार में चकबंदी का कानून 1956 में बनाया गया और 1958 में इसके नियम बनाये गए. नियम बनाये जाने के बाद बिहार में 1970-71 में चकबंदी पर काम शुरू हुआ. इस दौरान बिहार में 16 जिला के 180 अंचल में चकबंदी शुरू हई जिसमे 28 हजार गांव शामिल थे, लेकिन 1992 में चकबंदी को स्थगित कर दिया गया जिसके बाद कैमूर किसान संघ ने न्यायालय ने का दरवाजा खटखटाया और न्यायालय के अदेश के बाद 1996 में चकबंदी फिर शुरू की गई.
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