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मार्गशीर्ष पूर्णिमा का है बड़ा महत्व, व्रत और पूजन से भगवान विष्णु की मिलती है विशेष कृपा

मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा का विशेष महत्व हिंदू धर्म में है. इसे बत्तीसी पूर्णिमा (Battisi Purnima) भी कहते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर व्रत और पूजा करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है.

मार्गशीर्ष पूर्णिमा
मार्गशीर्ष पूर्णिमा
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Published : Dec 18, 2021, 6:00 AM IST

पटनाः हिंदू धर्म में पवित्र माने गए मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा (Margashirsha Month Purnima) का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा (Worship of Lord Shri Hari Vishnu) करने से पूर्व जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस बार पूर्णिमा 2 दिन यानी 18 और 19 दिसंबर को है. जिसकी वजह से लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है कि किस दिन पूजा करें, किस दिन व्रत और स्नान करें. पूर्णिमा तिथि 18 दिसंबर से प्रारंभ हो रही है, जो 19 दिसंबर तक रहेगी. 19 दिसंबर को उदया तिथि में पूर्णिमा आने से इस दिन स्नान दान करना शुभ माना जा रहा है. हालांकि पूर्णिमा का चांद 18 दिसंबर की शाम को ही दिखाई देगा.

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आचार्य कमल दुबे ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर व्रत और पूजा करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है. इस दिन तुलसी की जड़ की मिट्टी से पवित्र नदी सरोवर या कुंड में स्नान करना चाहिए. कहते हैं कि इस दिन किए गए दान का फल अन्य पूर्णिमा की तुलना में 32 गुना अधिक मिलता है. इसलिए इसे बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है. मार्गशीर्ष पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण की पूजा व कथा भी कही जाती है.

मार्गशीर्ष पूर्णिमा का है बड़ा महत्व

'मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर भगवान नारायण की पूजा का विधान है. इस दिन सुबह उठकर भगवान का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. स्नान के बाद सफेद कपड़े पहने और फिर आचमन करें. इसके बाद 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय' कहकर या 'ओम नमो नारायणाय' कह कर आवाहन करें. भगवान नारायण की प्रिय वस्तुएं जैसे ऋतु फल, तुलसी, दल, पंचामृत उन्हें अर्पित करें. उनसे प्रार्थना करें कि हे प्रभु आप हमारे द्वारा किए गए सभी गलतियों को क्षमा करें. हमें आशीर्वाद दें, जिससे कि इस संसार की सभी शुभ वस्तुओं का भोग करते हुए अंत में अपनी पूर्ण आयु जीकर मैं मोक्ष को प्राप्त होऊं.' -आचार्य कमल दूबे

व्रत 18 तारीख को रखना है. अगले दिन 19 तारीख को स्नान करके, क्योंकि इस व्रत में स्नान का विशेष महत्व है. अगर हो सके तो किसी पवित्र नदी में स्नान करें. यदि ऐसा संभव ना हो और घर पर ही स्नान करना पड़े तो जल में थोड़ा सा गंगाजल डाल लें. फिर स्नान करें. उसके बाद जरूरतमंद को दान करें. इस दिन का दान 32 गुना अधिक फल देगा ऐसी पुराणों में मान्यता है.

मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 18 दिसंबर को सुबह 7:24 से हो रहा है, जो 19 दिसंबर रविवार को सुबह 10:05 पर खत्म होगा. चंद्रोदय 18 दिसंबर की शाम को हो रहा है, जिसके कारण पूर्णिमा का व्रत इस दिन ही रखा जाएगा. वहीं 19 दिसंबर की सुबह स्नान दान करना शुभ रहेगा.

जिन जातकों की कुंडली में विशेष करके चंद्रदेव कमजोर है या खराब स्थिति में है. शनि से दृष्ट हैं, वह लोग अगर इस व्रत को करते हैं, तो चंद्रदेव का अशुभ होना दूर होगा. चंद्रदेव की शुभता बढ़ेगी. कुंडली में चंद्रदेव मन के कारक हैं. हमारे वेदों में कहा गया है, चंद्रमा मनसो जातो. जिस व्यक्ति का मन अच्छा होगा, वह संसार में सब कुछ प्राप्त कर सकता है. इसलिए चंद्रमा को ठीक करने का यह सबसे अच्छा व्रत है.

जिन लोगों के जीवन में दरिद्रता है. धन की कमी है. वह लोग 18 तारीख की शाम को माता लक्ष्मी को खीर बना कर उन्हें भोग लगाएं. माता लक्ष्मी से प्रार्थना करें कि हे माता मेरे जीवन से दुख और दरिद्रता को दूर करें. ऐसा करने से जीवन में दुख और दरिद्रता धीरे-धीरे समाप्त होने लगती है. उन्हें माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होने लगती है.

यह भी पढ़ें- गयाः धूमधाम से मनाई गई गुरुनानक देव की जयंती, देखिए 552वें प्रकाश पर्व की तस्वीरें

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पटनाः हिंदू धर्म में पवित्र माने गए मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा (Margashirsha Month Purnima) का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा (Worship of Lord Shri Hari Vishnu) करने से पूर्व जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस बार पूर्णिमा 2 दिन यानी 18 और 19 दिसंबर को है. जिसकी वजह से लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है कि किस दिन पूजा करें, किस दिन व्रत और स्नान करें. पूर्णिमा तिथि 18 दिसंबर से प्रारंभ हो रही है, जो 19 दिसंबर तक रहेगी. 19 दिसंबर को उदया तिथि में पूर्णिमा आने से इस दिन स्नान दान करना शुभ माना जा रहा है. हालांकि पूर्णिमा का चांद 18 दिसंबर की शाम को ही दिखाई देगा.

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आचार्य कमल दुबे ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर व्रत और पूजा करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है. इस दिन तुलसी की जड़ की मिट्टी से पवित्र नदी सरोवर या कुंड में स्नान करना चाहिए. कहते हैं कि इस दिन किए गए दान का फल अन्य पूर्णिमा की तुलना में 32 गुना अधिक मिलता है. इसलिए इसे बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है. मार्गशीर्ष पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण की पूजा व कथा भी कही जाती है.

मार्गशीर्ष पूर्णिमा का है बड़ा महत्व

'मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर भगवान नारायण की पूजा का विधान है. इस दिन सुबह उठकर भगवान का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. स्नान के बाद सफेद कपड़े पहने और फिर आचमन करें. इसके बाद 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय' कहकर या 'ओम नमो नारायणाय' कह कर आवाहन करें. भगवान नारायण की प्रिय वस्तुएं जैसे ऋतु फल, तुलसी, दल, पंचामृत उन्हें अर्पित करें. उनसे प्रार्थना करें कि हे प्रभु आप हमारे द्वारा किए गए सभी गलतियों को क्षमा करें. हमें आशीर्वाद दें, जिससे कि इस संसार की सभी शुभ वस्तुओं का भोग करते हुए अंत में अपनी पूर्ण आयु जीकर मैं मोक्ष को प्राप्त होऊं.' -आचार्य कमल दूबे

व्रत 18 तारीख को रखना है. अगले दिन 19 तारीख को स्नान करके, क्योंकि इस व्रत में स्नान का विशेष महत्व है. अगर हो सके तो किसी पवित्र नदी में स्नान करें. यदि ऐसा संभव ना हो और घर पर ही स्नान करना पड़े तो जल में थोड़ा सा गंगाजल डाल लें. फिर स्नान करें. उसके बाद जरूरतमंद को दान करें. इस दिन का दान 32 गुना अधिक फल देगा ऐसी पुराणों में मान्यता है.

मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 18 दिसंबर को सुबह 7:24 से हो रहा है, जो 19 दिसंबर रविवार को सुबह 10:05 पर खत्म होगा. चंद्रोदय 18 दिसंबर की शाम को हो रहा है, जिसके कारण पूर्णिमा का व्रत इस दिन ही रखा जाएगा. वहीं 19 दिसंबर की सुबह स्नान दान करना शुभ रहेगा.

जिन जातकों की कुंडली में विशेष करके चंद्रदेव कमजोर है या खराब स्थिति में है. शनि से दृष्ट हैं, वह लोग अगर इस व्रत को करते हैं, तो चंद्रदेव का अशुभ होना दूर होगा. चंद्रदेव की शुभता बढ़ेगी. कुंडली में चंद्रदेव मन के कारक हैं. हमारे वेदों में कहा गया है, चंद्रमा मनसो जातो. जिस व्यक्ति का मन अच्छा होगा, वह संसार में सब कुछ प्राप्त कर सकता है. इसलिए चंद्रमा को ठीक करने का यह सबसे अच्छा व्रत है.

जिन लोगों के जीवन में दरिद्रता है. धन की कमी है. वह लोग 18 तारीख की शाम को माता लक्ष्मी को खीर बना कर उन्हें भोग लगाएं. माता लक्ष्मी से प्रार्थना करें कि हे माता मेरे जीवन से दुख और दरिद्रता को दूर करें. ऐसा करने से जीवन में दुख और दरिद्रता धीरे-धीरे समाप्त होने लगती है. उन्हें माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होने लगती है.

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