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..तो इसलिए 20 महीने की सरकार से नीतीश कुमार ने किया था तौबा

जातिगत जनगणना को लेकर बिहार का सियासी (Caste Census and Special Status In Bihar) पारा चढ़ गया है. राजद ने नीतीश कुमार को ऑफर दिया और सियासी खिचड़ी पकने लगी. हालांकि अतीत में नीतीश राजद के साथ गए थे महज 20 महीने में नितीश कुमार का मोहभंग हो गया था. पढ़ें पूरी खबर-

राजद ने नीतीश कुमार को ऑफर दिया
20 महीने की सरकार
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Published : Jan 8, 2022, 8:48 PM IST

पटना: जातिगत जनगणना और स्पेशल स्टेटस के मुद्दे पर भाजपा और जदयू के बीच खाई (Gap between BJP and JDU) पैदा हो गई है. राजद इसी का फायदा उठाना चाहती है. आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह (RJD State President Jagdanand Singh) ने जातिगत जनगणना के मसले पर नीतीश कुमार को साथ आने का ऑफर दे दिया था. राजद के ऑफर पर बिहार में सियासी खिचड़ी पकने लगी है. ऑफर पर जेडीयू के शीर्ष नेताओं की ओर से कोई प्रतिक्रिया तो नहीं आई है, लेकिन भाजपा नेता आक्रामक हैं.

ये भी पढ़ें- BJP ने कर दिया साफ.. JDU का एजेंडा है जातीय जनगणना.. हम नहीं हैं साथ

इस मामले में जब बीजेपी प्रवक्ता अरविंद सिंह से पूछा गया तो उन्होंने तुरंत जवाब दिया. अरविंद सिंह ने कहा कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती. एक बार नीतीश कुमार लालू प्रसाद यादव के साथ जाकर देख चुके हैं. अब वो दुबारा वहां फंसने वाले नहीं हैं. भाजपा नेता ने कहा कि नीतीश कुमार भ्रष्टाचार और परिवारवाद के मुद्दे पर राजद से अलग हुए थे. आज भी वह मुद्दे कायम हैं.

'शिकारी आएगा, दाना डालेगा लेकिन लोभ से फंसना मत. राजद के आपराधिक चरित्र और वंशवाद के चलते नीतीश कुमार राजद गठबंधन से अलग हुए थे. राजद परिवारवाद की पार्टी है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पहले इस्तीफा देकर किसी दलित या पिछड़ा को कुर्सी पर बैठाएं तब पता चलेगा कि वो सामाजिक न्याय कर रहे हैं- अरविंद सिंह, बीजेपी प्रवक्ता

देखें रिपोर्ट.

ये भी पढ़ें- RJD ऑफिस में फूटा 'कोरोना बम', जांच में 12 लोगों के पॉजिटिव मिलने के बाद कार्यालय बंद

इधर, राजद प्रवक्ता एजाज अहमद ने कहा कि हम जातिगत जनगणना और स्पेशल स्टेटस के मुद्दे पर हर लड़ाई लड़ने को तैयार हैं. नीतीश कुमार साहस दिखाएं और जातिगत जनगणना कराने को लेकर फैसला लें. नीतीश कुमार दोनों मुद्दों पर अगर फैसला लेती है तो राजद उनके साथ खड़ी रहेगी.

दरअसल, जातिगत जनगणना पर राजद और जदयू का स्टैंड एक ही है. नीतीश कुमार भी चाहते हैं कि जातिगत जनगणना हो. निश्चित तौर पर इस मुहिम में राजद और जदयू के बीच नजदीकियां बढ़ी हैं. ठीक ऐसा ही अंतर साल 2013 में नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के बीच था. तब नीतीश और लालू लंबे अरसे के बाद एक मंच पर आ गए थे. महागठबंधन ने आकार लिया और भारी मतों के अंतर से बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी. लेकिन 20 महीने में ही सरकार का अंत हो गया.


दरअसल 20 महीने की सरकार में नीतीश कुमार की कार्यप्रणाली और लालू प्रसाद की कार्यप्रणाली में तारतम्य नहीं बैठा. नीतीश कुमार परेशान हो गए. 20 महीने के दौरान महागठबंधन सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. मिट्टी घोटाले को लेकर हाय तौबा मचा. आईआरसीटीसी घोटाला मामले में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पर आरोप लगे सीबीआई और ईडी की छापेमारी भी हुई.


इधर पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने महागठबंधन सरकार की मुश्किलें बढ़ा रखी थीं. सुशील मोदी हर रोज बेनामी संपत्ति को लेकर नए खुलासे कर रहे थे. जिससे सरकार की छवि धूमिल हो रही थी. आरोपों में लालू प्रसाद यादव परिवार था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार तेजस्वी यादव से सफाई देने को कह रहे थे और तेजस्वी यादव सफाई देने के लिए तैयार नहीं थे. अंततः नीतीश कुमार ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया.

वरिष्ठ पत्रकार कौशलेन्द्र प्रियदर्शी भी मानते हैं कि जेडीयू और राजद गठबंधन की सरकार के दौरान भ्रष्टाचार एक अहम मुद्दा रहा. नीतीश की खास बात ये है कि वो सरकार में भागीदार बनाते हैं लेकिन सत्ता में भागीदार नहीं बनाते. नीतीश बीजेपी के साथ स्मूथली सरकार चला चुके थे. लेकिन जिस तरह से उनके सामने दिक्कतें और अड़चने आ रहीं थीं उससे वो असहज हो गए. ऐसे में उन्होंने राजद गठबंधन से अलग होना में ही भलाई समझी.

'नीतीश कुमार की खूबी ये है कि वो सरकार में भागीदार बनाते हैं, सत्ता में भागीदार नहीं बनाते. लेकिन उस दौरान 20 महीने जो सरकार चली उसमें तमाम अड़ंगे आए. नीतीश बीजेपी के साथ सरकार स्मुथली चला चुके थे. सो उन्होंने अपने 1990 के अनुभवों को ध्यान में रखकर राजद से अलग हटना उचित समझा'- कौशलेंद्र प्रियदर्शी, वरिष्ठ पत्रकार


आपको बता दें कि 243 सीट वाली बिहार विधानसभा में एनडीए के पास 126 विधायकों का समर्थन है. जबकि महागठबंधन खेमे को 115 विधायकों का समर्थन हासिल है. राजद के पास 75 विधायक हैं तो भाजपा कोटे में विधायकों की संख्या 74 है. जदयू के 45 विधायक हैं. राजद और जदयू एक साथ हो लेते हैं तो ये बहुमत का आंकड़ा छू लेंगे. दोनों दलों के विधायकों की संख्या 120 हो जाती है. वाम दल और कांग्रेस विधायकों को जोड़ देंगे तो आंकड़ा बहुमत से बहुत ज्यादा हो जाएगा.

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पटना: जातिगत जनगणना और स्पेशल स्टेटस के मुद्दे पर भाजपा और जदयू के बीच खाई (Gap between BJP and JDU) पैदा हो गई है. राजद इसी का फायदा उठाना चाहती है. आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह (RJD State President Jagdanand Singh) ने जातिगत जनगणना के मसले पर नीतीश कुमार को साथ आने का ऑफर दे दिया था. राजद के ऑफर पर बिहार में सियासी खिचड़ी पकने लगी है. ऑफर पर जेडीयू के शीर्ष नेताओं की ओर से कोई प्रतिक्रिया तो नहीं आई है, लेकिन भाजपा नेता आक्रामक हैं.

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इस मामले में जब बीजेपी प्रवक्ता अरविंद सिंह से पूछा गया तो उन्होंने तुरंत जवाब दिया. अरविंद सिंह ने कहा कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती. एक बार नीतीश कुमार लालू प्रसाद यादव के साथ जाकर देख चुके हैं. अब वो दुबारा वहां फंसने वाले नहीं हैं. भाजपा नेता ने कहा कि नीतीश कुमार भ्रष्टाचार और परिवारवाद के मुद्दे पर राजद से अलग हुए थे. आज भी वह मुद्दे कायम हैं.

'शिकारी आएगा, दाना डालेगा लेकिन लोभ से फंसना मत. राजद के आपराधिक चरित्र और वंशवाद के चलते नीतीश कुमार राजद गठबंधन से अलग हुए थे. राजद परिवारवाद की पार्टी है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पहले इस्तीफा देकर किसी दलित या पिछड़ा को कुर्सी पर बैठाएं तब पता चलेगा कि वो सामाजिक न्याय कर रहे हैं- अरविंद सिंह, बीजेपी प्रवक्ता

देखें रिपोर्ट.

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इधर, राजद प्रवक्ता एजाज अहमद ने कहा कि हम जातिगत जनगणना और स्पेशल स्टेटस के मुद्दे पर हर लड़ाई लड़ने को तैयार हैं. नीतीश कुमार साहस दिखाएं और जातिगत जनगणना कराने को लेकर फैसला लें. नीतीश कुमार दोनों मुद्दों पर अगर फैसला लेती है तो राजद उनके साथ खड़ी रहेगी.

दरअसल, जातिगत जनगणना पर राजद और जदयू का स्टैंड एक ही है. नीतीश कुमार भी चाहते हैं कि जातिगत जनगणना हो. निश्चित तौर पर इस मुहिम में राजद और जदयू के बीच नजदीकियां बढ़ी हैं. ठीक ऐसा ही अंतर साल 2013 में नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के बीच था. तब नीतीश और लालू लंबे अरसे के बाद एक मंच पर आ गए थे. महागठबंधन ने आकार लिया और भारी मतों के अंतर से बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी. लेकिन 20 महीने में ही सरकार का अंत हो गया.


दरअसल 20 महीने की सरकार में नीतीश कुमार की कार्यप्रणाली और लालू प्रसाद की कार्यप्रणाली में तारतम्य नहीं बैठा. नीतीश कुमार परेशान हो गए. 20 महीने के दौरान महागठबंधन सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. मिट्टी घोटाले को लेकर हाय तौबा मचा. आईआरसीटीसी घोटाला मामले में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पर आरोप लगे सीबीआई और ईडी की छापेमारी भी हुई.


इधर पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने महागठबंधन सरकार की मुश्किलें बढ़ा रखी थीं. सुशील मोदी हर रोज बेनामी संपत्ति को लेकर नए खुलासे कर रहे थे. जिससे सरकार की छवि धूमिल हो रही थी. आरोपों में लालू प्रसाद यादव परिवार था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार तेजस्वी यादव से सफाई देने को कह रहे थे और तेजस्वी यादव सफाई देने के लिए तैयार नहीं थे. अंततः नीतीश कुमार ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया.

वरिष्ठ पत्रकार कौशलेन्द्र प्रियदर्शी भी मानते हैं कि जेडीयू और राजद गठबंधन की सरकार के दौरान भ्रष्टाचार एक अहम मुद्दा रहा. नीतीश की खास बात ये है कि वो सरकार में भागीदार बनाते हैं लेकिन सत्ता में भागीदार नहीं बनाते. नीतीश बीजेपी के साथ स्मूथली सरकार चला चुके थे. लेकिन जिस तरह से उनके सामने दिक्कतें और अड़चने आ रहीं थीं उससे वो असहज हो गए. ऐसे में उन्होंने राजद गठबंधन से अलग होना में ही भलाई समझी.

'नीतीश कुमार की खूबी ये है कि वो सरकार में भागीदार बनाते हैं, सत्ता में भागीदार नहीं बनाते. लेकिन उस दौरान 20 महीने जो सरकार चली उसमें तमाम अड़ंगे आए. नीतीश बीजेपी के साथ सरकार स्मुथली चला चुके थे. सो उन्होंने अपने 1990 के अनुभवों को ध्यान में रखकर राजद से अलग हटना उचित समझा'- कौशलेंद्र प्रियदर्शी, वरिष्ठ पत्रकार


आपको बता दें कि 243 सीट वाली बिहार विधानसभा में एनडीए के पास 126 विधायकों का समर्थन है. जबकि महागठबंधन खेमे को 115 विधायकों का समर्थन हासिल है. राजद के पास 75 विधायक हैं तो भाजपा कोटे में विधायकों की संख्या 74 है. जदयू के 45 विधायक हैं. राजद और जदयू एक साथ हो लेते हैं तो ये बहुमत का आंकड़ा छू लेंगे. दोनों दलों के विधायकों की संख्या 120 हो जाती है. वाम दल और कांग्रेस विधायकों को जोड़ देंगे तो आंकड़ा बहुमत से बहुत ज्यादा हो जाएगा.

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