पटना: 90 के दशक में सीवान में शहाबुद्दीन के नाम की तूती बोलती थी. आम हो या खास, शहाबुद्दीन के नाम से सभी डरते थे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि शहाबुद्दीन सीवान का 'साहब' कैसे बन गया.
मोहम्मद शहाबुद्दीन का जन्म 10 मई 1967 को प्रतापपुर में हुआ. शहाबुद्दीन की पहचान एक आपराधिक बैकग्राउंड वाले नेता के तौर होती है. वह सीवान से चार बार सांसद और दो बार विधायक भी रहा है.
ये भी पढ़ें- शहाबुद्दीन के सवाल पर जब लालू ने कहा था- इस देश में दूध का धुला हुआ कौन है?
एक थप्पड़ से बन गया सीवान का 'साहब'
बताया जाता है कि शहाबुद्दीन ने साल 1980 में डीएवी कॉलेज से सियासत में कदम रखा था, उस वक्त शहाबुद्दीन ने माकपा व भाकपा के खिलाफ जमकर लोहा लिया था. इसके बाद सीवान में उसकी पहचान दबंग राजनेता के तौर पर होने लगी. शहाबुद्दीन पर पहली बार 1986 में हुसैनगंज थाने में पहला आपराधिक केस दर्ज हुआ था. इसके बाद तो मामले दर्ज होते चले गए.
कहा जाता है कि सीवान में कानून का राज नहीं बल्कि शहाबुद्दीन का शासन चलता था. बता दें कि 15 मार्च 2001 में ही पुलिस जब आरजेडी के एक नेता के खिलाफ एक वारंट पर गिरफ्तारी करने दारोगा राय कॉलेज में पहुंची तो शहाबुद्दीन ने गिरफ्तार करने आए अधिकारी संजीव कुमार को ही थप्पड़ मार दिया था. इसके बाद शहाबुद्दीन के सहयोगियों ने पुलिस वालों की जमकर पिटाई कर दी थी. इसके बाद बिहार पुलिस शहाबुद्दीन पर कार्रवाई की कोशिश में उनके प्रतापपुर वाले घर पर छापेमारी की, लेकिन अंजाम बेहद ही दुखद रहा था.
21 साल की उम्र में पहला केस
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, शहाबुद्दीन के खिलाफ सीवान के एक थाने में महज 21 साल की उम्र में पहला मामला दर्ज हुआ था. इसके बाद तो शहाबुद्दीन सीवान के मोस्ट वांटेड क्रिमिनल बन गया. शहाबुद्दीन का सियासी सफर शुरू होने से काफी पहले उनकी दबंगई के चर्चे सीवान में होने लगे थे. रिकॉर्ड के मुताबिक उन पर पहली एफआईआर 1986 में सीवान जिले के हुसैनगंज थाने में दर्ज हुई थी.
18 साल में माले के 18 समर्थकों की हत्या
बताया जाता है कि साल 1993 से 2001 के बीच सीवान में भाकपा माले के 18 समर्थक व कार्यकर्ताओं को अपनी जान गंवानी पड़ी. इसमें जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर और वरिष्ठ नेता श्याम नारायण भी शामिल थे
पुलिस अफसर को मारा थप्पड़, गई कई पुलिस वालों की गई जान
सीवान पुलिस के लिए 16 मार्च 2001 काला दिन था. शहाबुद्दीन ने आरजेडी नेता मनोज कुमार की गिरफ्तारी के दौरान गई पुलिस को रोका और पुलिस अफसर को जोरदार थप्पड़ जड़ दिया था. इसके बाद उसेके समर्थकों ने पुलिस को मारा था. इस घटना के बिहार पुलिस ने शहाबुद्दीन के गांव छापेमारी करने पहुंच गई थी. इस दौरान दोनों ओर से कई राउंड गोलियां चलीं, जिसमें पुलिस वाले सहित कई लोग मारे गए थे.
जेल में लगाता था दरबार, सुनाता था फैसला
बताया जाता है कि शहाबुद्दीन को जैसे-जैसे सत्ता का संरक्षण मिलता गया, उसकी ताकत भी बढ़ती गई. उस वक्त शहाबुद्दीन का दरबार काफी सुर्खियों में रहती थी. फरियादी जेल में भी उससे मिलने आते थे और वहां से तत्काल न्याय भी पाते थे. कहा जाता है कि एक ऐसा वक्त था जब सीवान में डॉक्टरों की फीस मात्र 50 रुपए थी. बताया जाता है कि शहाबुद्दीन के फरमान पर ही सीवान के सभी डॉक्टरों ने अपनी फीस 50 रुपये कर दी थी.