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बिहार में प्यारा सजा है दरबार साहब का..!

बिहार में सभी दल अपना अपना जनता दरबार लगा रहे हैं. जनता बेचारी और लाचार बनी खड़ी है. जनता दरबार में जो फरियाद आ रही है वह कभी पूरी होगी या नहीं इसकी गारंटी नहीं है.

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Published : Aug 26, 2021, 11:28 PM IST

Updated : Aug 27, 2021, 6:53 AM IST

पटना: लोकतंत्र (Democracy) की जब परिभाषा बताई गई तो कहा गया था कि जनता का शासन होगा और जनता ही राज करेगी. लोकतंत्र जब सरकारी और नेतागिरी की व्यवस्था में मजबूत हुआ तो जनता (Public) बेचारी हुए हाथ जोड़कर खड़ी होने लगी. जनता के वोट (Public Vote) के बदौलत गद्दी पर पहुंचे लोग महाराजा बन गए और अब तो बिहार में हर महाराजा का दरबार (Janata Darbar) सज रहा है. इसमें कोई अछूता नहीं है. बात जदयू (JDU) की हो या फिर भाजपा (BJP) की, राष्ट्रीय जनता दल की हो या फिर हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) की सभी राजनीतिक दलों के आका दरबार लगा रहे हैं. जनता को बुलाकर उनकी फरियाद सुन रहे हैं. यह अलग बात है कि उसके बाद उस फरियाद की याद इन नेताओं को आती ही नहीं है.

ये भी पढ़ें- हम पार्टी भी लगायेगी जनता दरबार, फरियादियों ने कहा जनता दरबार से कोई फायदा नहीं

बिहार की राजनीति आजकल गजब का रास्ता अख्तियार कर ली है, दिल्ली में जात की सियासत होती है. बात विकास की होती है लेकिन विकास पर ही सियासत होती है और यह किसी एक राजनीतिक दल की बात नहीं है. बहती गंगा में हाथ धोने में सभी राजनीतिक दल उतारू हो गए हैं. बिहार में 2005 में जब नीतीश कुमार की सरकार बनी तो तय हुआ कि जनता तक सीधा जुड़ा जाए. इसके लिए जनता के दरबार में मुख्यमंत्री के कार्यक्रम की शुरुआत की गई. इसके फायदे भी हुए जनता मुख्यमंत्री से सीधा रूबरू होने लगी, अपनी बात को रखने लगी.

बाद के दिनों में जनता दरबार के हालात कुछ इस कदर हुए कि नीतीश कुमार को ही उसमें फजीहत झेलनी पड़ी. क्योंकि उनके दरबार में फरियाद लेकर आने वाले लोगों का काम ही नहीं हो रहा था. स्थिति यह हो गई कि मुख्यमंत्री के दरबार में फरियाद होती थी और फिर थानेदार उसे मुख्यमंत्री के पास भेज देता था. इसमें जनता का पैसा केवल पानी की तरह बहा रहा था. हर आस जो जनता दरबार से बनती थी गेट से बाहर निकलने के बाद टूट जाती थी.

ये भी पढ़ें- JDU के जनता दरबार में बोले बिजेंद्र यादव- सभी घरों में स्मार्ट मीटर लगाने में हो सकती है देर

2005 से 2020 के बीच में राजनीति बिहार में कई करवट ली एक बार फिर बिहार में नीतीश कुमार की सरकार चल रही है. जनता का दरबार फिर से लगना शुरू हुआ लेकिन इस बार सिर्फ नीतीश कुमार ही जनता दरबार नहीं लगा रहे हैं. नेताओं को महाराजा बनने का शौक आया तो सभी राजनीतिक दलों ने तय कर दिया कि उनके राजनैतिक दफ्तरों में जनता का दरबार लगेगा. यह अलग बात है कि जनता का काम होगा नहीं होगा तो जिम्मेदार कौन होगा? जिम्मेदारी तय कैसे की जाएगी ? अगर जिम्मेदारी नहीं पूरी की गई तो उन्हें दंड कौन देगा और अगर दंड देने की व्यवस्था नहीं है तो फिर आम जनता के पैसे को बर्बाद करने का काम क्यों किया जा रहा है?

बिहार जनता के लिए दरबार लगाने का शगल चल रहा है, जिसमें नेता जनता के दरवाजे पर नहीं जाएंगे. जनता इन नेताओं के दरवाजे पर हाथ जोड़े खड़ी रहेगी. बयान भी देने में कोई कुछ कम नहीं है. जनता दरबार के बाद पटना से लेकर दिल्ली की राजनीति पर बयान दे दिया जाता है. मीडिया में खबरें छप जा रही हैं और नेता आराम से अपने बंद एसी कमरे में सो जा रहे हैं. बस अगर कुछ नहीं हो रहा है तो आप लोगों की उम्मीदों की वो तपिश जो किसी भी मौसम में सिर्फ इनकी पीड़ा में उन्हें जलाए जा रही है.

ये भी पढ़ें- पंचायत चुनाव के वक्त जनप्रतिनिधियों को जनता की आई याद, यहां के ग्रामीणों ने कहा- सिखाएंगे सबक

जनता का दरबार लगाने वाले नेताओं से यह सवाल तो हर बार पूछा जाएगा कि आप के दरबार में जो फरियाद आ रही है वह पूरी हो भी रही है या नहीं? क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो बड़ी उम्मीद जो जनता की अपनी सरकार से है वो टूट जाएगी और टूटा हुआ सपना बड़ा खतरनाक होता है. सोचना इन नेताओं को ही होगा कि जनता दरबार में आने वाले लोग घर की 2 जून की रोटी का खाना छोड़ देते हैं. उसका पैसा जोड़कर पटना पहुंचते हैं लेकिन दरबार में तो महाराजा जी ऊंची कुर्सी पर बैठे हैं. बात चल रही है. क्या होगा नहीं कह सकते, बिहार है बहार है.


ये भी पढ़ें- JDU के जनता बरबार में फरियादियों से ज्यादा पार्टी के कार्यकर्ताओं की भीड़

ये भी पढ़ें- तेज प्रताप के 'जनता दरबार' पर संकट! इक्का-दुक्का कार्यकर्ता ही पहुंचे RJD दफ्तर, नहीं है कोई तैयारी

पटना: लोकतंत्र (Democracy) की जब परिभाषा बताई गई तो कहा गया था कि जनता का शासन होगा और जनता ही राज करेगी. लोकतंत्र जब सरकारी और नेतागिरी की व्यवस्था में मजबूत हुआ तो जनता (Public) बेचारी हुए हाथ जोड़कर खड़ी होने लगी. जनता के वोट (Public Vote) के बदौलत गद्दी पर पहुंचे लोग महाराजा बन गए और अब तो बिहार में हर महाराजा का दरबार (Janata Darbar) सज रहा है. इसमें कोई अछूता नहीं है. बात जदयू (JDU) की हो या फिर भाजपा (BJP) की, राष्ट्रीय जनता दल की हो या फिर हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) की सभी राजनीतिक दलों के आका दरबार लगा रहे हैं. जनता को बुलाकर उनकी फरियाद सुन रहे हैं. यह अलग बात है कि उसके बाद उस फरियाद की याद इन नेताओं को आती ही नहीं है.

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बिहार की राजनीति आजकल गजब का रास्ता अख्तियार कर ली है, दिल्ली में जात की सियासत होती है. बात विकास की होती है लेकिन विकास पर ही सियासत होती है और यह किसी एक राजनीतिक दल की बात नहीं है. बहती गंगा में हाथ धोने में सभी राजनीतिक दल उतारू हो गए हैं. बिहार में 2005 में जब नीतीश कुमार की सरकार बनी तो तय हुआ कि जनता तक सीधा जुड़ा जाए. इसके लिए जनता के दरबार में मुख्यमंत्री के कार्यक्रम की शुरुआत की गई. इसके फायदे भी हुए जनता मुख्यमंत्री से सीधा रूबरू होने लगी, अपनी बात को रखने लगी.

बाद के दिनों में जनता दरबार के हालात कुछ इस कदर हुए कि नीतीश कुमार को ही उसमें फजीहत झेलनी पड़ी. क्योंकि उनके दरबार में फरियाद लेकर आने वाले लोगों का काम ही नहीं हो रहा था. स्थिति यह हो गई कि मुख्यमंत्री के दरबार में फरियाद होती थी और फिर थानेदार उसे मुख्यमंत्री के पास भेज देता था. इसमें जनता का पैसा केवल पानी की तरह बहा रहा था. हर आस जो जनता दरबार से बनती थी गेट से बाहर निकलने के बाद टूट जाती थी.

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2005 से 2020 के बीच में राजनीति बिहार में कई करवट ली एक बार फिर बिहार में नीतीश कुमार की सरकार चल रही है. जनता का दरबार फिर से लगना शुरू हुआ लेकिन इस बार सिर्फ नीतीश कुमार ही जनता दरबार नहीं लगा रहे हैं. नेताओं को महाराजा बनने का शौक आया तो सभी राजनीतिक दलों ने तय कर दिया कि उनके राजनैतिक दफ्तरों में जनता का दरबार लगेगा. यह अलग बात है कि जनता का काम होगा नहीं होगा तो जिम्मेदार कौन होगा? जिम्मेदारी तय कैसे की जाएगी ? अगर जिम्मेदारी नहीं पूरी की गई तो उन्हें दंड कौन देगा और अगर दंड देने की व्यवस्था नहीं है तो फिर आम जनता के पैसे को बर्बाद करने का काम क्यों किया जा रहा है?

बिहार जनता के लिए दरबार लगाने का शगल चल रहा है, जिसमें नेता जनता के दरवाजे पर नहीं जाएंगे. जनता इन नेताओं के दरवाजे पर हाथ जोड़े खड़ी रहेगी. बयान भी देने में कोई कुछ कम नहीं है. जनता दरबार के बाद पटना से लेकर दिल्ली की राजनीति पर बयान दे दिया जाता है. मीडिया में खबरें छप जा रही हैं और नेता आराम से अपने बंद एसी कमरे में सो जा रहे हैं. बस अगर कुछ नहीं हो रहा है तो आप लोगों की उम्मीदों की वो तपिश जो किसी भी मौसम में सिर्फ इनकी पीड़ा में उन्हें जलाए जा रही है.

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जनता का दरबार लगाने वाले नेताओं से यह सवाल तो हर बार पूछा जाएगा कि आप के दरबार में जो फरियाद आ रही है वह पूरी हो भी रही है या नहीं? क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो बड़ी उम्मीद जो जनता की अपनी सरकार से है वो टूट जाएगी और टूटा हुआ सपना बड़ा खतरनाक होता है. सोचना इन नेताओं को ही होगा कि जनता दरबार में आने वाले लोग घर की 2 जून की रोटी का खाना छोड़ देते हैं. उसका पैसा जोड़कर पटना पहुंचते हैं लेकिन दरबार में तो महाराजा जी ऊंची कुर्सी पर बैठे हैं. बात चल रही है. क्या होगा नहीं कह सकते, बिहार है बहार है.


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Last Updated : Aug 27, 2021, 6:53 AM IST
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