पटना: बिहार की राजधानी पटना में हवा की गुणवत्ता खराब होने लगी है. पटना में एयर क्वालिटी इंडेक्स (Air Quality Index in Patna) 369 है जो काफी खतरनाक स्थिति है. ठंड बढ़ने के साथ ही 0 से 5 वर्ष के बच्चों में निमोनिया के मामले बढ़ने लगते हैं. राजधानी पटना में जिस प्रकार बढ़ती ठंड के साथ हवा की गुणवत्ता खराब हो रही है, बच्चों के स्वास्थ्य पर इसका दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है.
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बच्चे निमोनिया (pneumonia in children) और फेफड़े जनित रोगों से ग्रसित हो रहे हैं. विगत 5 दिनों में पटना के सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में करीब 600 बच्चे निमोनिया की शिकायत लेकर पहुंचे हैं. सामान्य तौर पर ठंड के दिनों में निमोनिया के मामले बच्चों में बढ़ने लगते हैं. इसको लेकर राज्य स्वास्थ्य समिति की तरफ से 12 नवंबर से 28 फरवरी तक 'सांस' नाम से एक विशेष अभियान चलाया जा रहा है. स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेश में बच्चों में निमोनिया को लेकर प्रदेश के सभी अस्पतालों को विशेष अलर्ट पर रखा है. चिकित्सकों का कहना है कि निमोनिया का अटैक सबसे अधिक सोने से 5 साल के उम्र के बच्चों पर होता है. बच्चों में यह मौत का बड़ा कारण भी होता है.
पटना के शिशु वार्ड में एडमिट 12 वर्षीय बच्चे सऊद आलम के पिता अमीर आलम ने बताया कि वह अपने बच्चे को लेकर शिवहर से आए हैं. बच्चे की तबीयत अधिक बिगड़ने पर शिवहर से पीएमसीएच रेफर किया गया. इसके बाद वह लगभग 1 सप्ताह पहले पीएमसीएच (PMCH) में पहुंचे हैं. यहां इलाज चल रहा है. उन्होंने बताया कि उनके बच्चे को जन्म के बाद से ही निमोनिया की शिकायत होने लगी. कई बार इलाज चला और लगभग हर सीजन में निमोनिया होने के कारण अब बच्चे की स्थिति काफी खराब हो गई है.
चिकित्सक बताते हैं कि बच्चे का फेफड़ा पूरी तरह खत्म हो चुका है. बच्चे का ट्रीटमेंट चल रहा है. डॉक्टर अपनी तरफ से प्रयास कर रहे हैं. पीएमसीएच के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सुमन कुमार ने बताया कि सामान्य तौर पर निमोनिया का सीजन नवंबर से लेकर जनवरी तक का माह माना जाता है. इस दौरान बच्चों में निमोनिया के मामले काफी आते हैं और सर्वाधिक खतरा 0 से 5 वर्ष के बच्चों पर होता है. उन्होंने बताया कि ठंड के मौसम में बच्चे सुबह जब उठते हैं तो बिना गर्म कपड़े पहने नंगे पांव जमीन पर चलते हैं और निमोनिया के चपेट में आ जाते हैं.
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उन्होंने कहा कि प्रदूषण बच्चों में न्यूमोनिया (pneumonia in children) का एक बड़ा फैक्टर है और यह एक ट्रिगिंग फैक्टर के तौर पर काम करता है. जिन बच्चों को एलर्जी की शिकायत होती है उन बच्चों में पॉल्यूशन निमोनिया को बढ़ा देता है. आमतौर पर निमोनिया एक इंफेक्टिव डिजीज भी है. प्रदूषण इसमें एक बड़ा कारक होता है. डॉ. सुमन कुमार ने कहा कि सामान्य तौर पर अगर बच्चे 1 मिनट में 40 बार से अधिक बार सांस ले रहे हैं या जब बच्चे सांस ले रहे हैं तो उसमें आवाज आ रही है जिसे मेडिकल टर्म में विसलिंग कहा जाता है. तो समझें कि निमोनिया की शिकायत है और चिकित्सक से संपर्क करें.
उन्होंने कहा कि निमोनिया से बचाव का उपाय है कि ठंड के मौसम में जब तापमान में गिरावट हो, उस वक्त बच्चों को गर्म कपड़े पहनाकर रखा जाए. पॉल्यूशन को देखते हुए बच्चों को मास्क पहना कर रखा जाए ताकि हवा में जो हेवी डस्ट पार्टिकल हैं, उससे बच्चे बच सकें और निमोनिया का खतरा कम हो. इसके अलावा निमोनिया के लिए सरकार की तरफ से जो टीकाकरण किया जाता है, वह बच्चों को समय पर लगवाएं. एचवन-बी (H1-B) का टीका लगता है. बच्चों को यह डेढ़ माह, ढाई माह और साढ़े 3 माह की आयु पर यह टीका लगता है. डेढ़ साल की उम्र पर इस टीके का बूस्टर डोज लगता है.
फेफड़ा रोग विशेषज्ञ डॉ. दिवाकर तेजस्वी ने बताया कि पॉल्यूशन फेफरे जनित रोगों का बड़ा कारक होता है. बच्चे और बुजुर्गों पर यह काफी दुष्प्रभाव डालता है. दमा अस्थमा निमोनिया जैसी अन्य कई बीमारियों के रूप में इसका दुष्प्रभाव देखने को मिलता है. उन्होंने बताया कि एयर क्वालिटी इंडेक्स अगर 50 तक है तो हवा की गुणवत्ता सही है. 100 तक यह टॉलरेबल होता है लेकिन इसे जब अधिक होने लगता है तो यह खतरनाक होने लगता है.
डॉ. दिवाकर तेजस्वी ने कहा कि यह दुर्भाग्य है कि राजधानी पटना में एयर क्वालिटी इंडेक्स इन दिनों काफी खराब हो रहा है. यह काफी बुरी स्थिति में पहुंच गई है. एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 के पार रह रहा है. कई बार यह 400 के करीब पहुंच जा रहा है जो बहुत ही खतरनाक स्थिति है. जब 400 के पार एयर क्वालिटी इंडेक्स जाता है तब वह इलाज भी सिचुएशन होता है. उस वक्त प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए सरकार को इमरजेंसी कॉल करना पड़ता है और कई कड़े निर्णय भी लेने पर जाते हैं.
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