पटना: कोरोना की वजह से साल 2020 नौकरीपेशा लोगों के लिए बहुत बुरा रहा. लॉकडाउन के शुरूआती दौर में कोरोना संक्रमण जब चरम पर था उस दौरान लाखों मजदूर देश के अलग-अलग भागों से और बिहार के अन्य शहरों से अपने-अपने गांव पहुंचे. इस दौरान बिहार में मनरेगा मजदूरों के लिए लाइफलाइन बन गई. मनरेगा से गरीब तबके के मजदूरों के लिए दो जून की रोटी का प्रबंध हो सका. बिहार सरकार के विभिन्न विकास कार्यों में मनरेगा के तहत लाखों लोगों को रोजगार मिला.
'लॉकडाउन में पीएम आवास योजना, जल जीवन हरियाली योजना और केंद्र सरकार की गरीब कल्याण रोजगार अभियान के तहत लाखों लोगों को मनरेगा के तहत रोजगार मिला'- सीपी खंडूजा, मनरेगा आयुक्त
मजदूरों को मनरेगा के तहत मिला रोजगार
पिछले साल की तुलना में इस साल मनरेगा के तहत मजदूरों को ज्यादा रोजगार मिला है. मनरेगा आयुक्त ने बताया कि 22 दिसंबर तक करीब 16 करोड़ मानव दिवस का सृजन हो चुका है और अगले साल मार्च तक 18 करोड़ मानव दिवस के टारगेट की जगह 20 करोड़ मानव दिवस रोजगार मनरेगा के तहत उपलब्ध होने की संभावना है. बिहार में इस साल लाखों की संख्या में मजदूर अन्य राज्यों से बिहार पहुंचे. यही नहीं, बिहार के शहरी इलाकों से बड़ी संख्या में लोग कोरोना वायरस के कारण अपने गांव चले गए, जहां उन्हें मनरेगा के तहत रोजगार मिला.
वित्तीय आवंटन में नहीं रही कमी
ग्रामीण विकास विभाग को साल 2019-20 में मनरेगा के तहत 3341 करोड़ रुपए मिले थे. जिसमें से 3298 करोड़ रुपए खर्च हुए लेकिन इस साल 2020-21 में 4854 करोड़ रुपए प्राप्त हुए. मनरेगा आयुक्त ने बताया कि केंद्र सरकार ने इस बार राशि की उपलब्धता में कहीं कोई कमी नहीं की जिससे कारण सभी मनरेगा मजदूरों को समय पर मजदूरी का भुगतान हो रहा है. उन्होंने कहा कि इस वर्ष 15 लाख नए जॉब कार्ड बनाए गए हैं जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है.
'केंद्र की ओर से वित्तीय आवंटन में कोई कमी नहीं रही है. साल 2020 में लॉकडाउन के दौरान मनरेगा के तहत करीब एक करोड़ दस लाख पौधे लगाए गए हैं जिसके कारण बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिला. 2021 में मनरेगा के तहत दो करोड़ पौधारोपण का लक्ष्य है'- सीपी खंडूजा, मनरेगा आयुक्त
2021 में दो करोड़ पौधारोपण का लक्ष्य
मनरेगा आयुक्त सीपी खंडूजा ने बताया कि वर्ष 2021 में मनरेगा के तहत दो करोड़ पौधारोपण का लक्ष्य है. ग्रामीण विकास विभाग इसे लेकर तैयारी में भी लगा हुआ है, क्योंकि बिहार के हरित आवरण को 17% करने का लक्ष्य है. अगस्त महीने में बारिश के कारण रोजगार सृजन थोड़ा कम हो जाता है और इस वर्ष नवंबर में चुनाव के कारण भी रोजगार सृजन पर असर पड़ा. लेकिन मनरेगा के लिए दिसंबर से मार्च तक सबसे ज्यादा मानव दिवस सृजन की संभावना रहती है.
'कोरोना काल में बिहार सरकार ने आगे बढ़कर प्रवासी मजदूरों की मदद की है. आगे भी ऐसा सिस्टम तैयार कर रहे हैं जिसमें जो लोग बिहार आए हैं, उन्हें वापस लौटकर नहीं जाना पड़े और उन्हें उनके स्किल के मुताबिक रोजगार मिल जाए'- जीवेश मिश्रा, श्रम संसाधन मंत्री
मजदूरों में कहीं खुशी, कहीं निराशा
वहीं, लॉकडाउन में मनरेगा के तहत रोजगार मिलने से मजदूरों में एक ओर खुशी है तो दूसरी तरफ आक्रोश भी है. मजदूरों को सौ दिनों कि रोजगार की गारंटी देने वाली योजना मनरेगा का हाल पटना में बहुत बुरा है. मुख्यमंत्री ने लॉकडाउन के अनलॉक के दौरान मनरेगा मजदूरों को हर हाथ काम देने का वादा किया था. वर्तमान हालात ये है कि जितने भी प्रवासी मजदूर लौटकर बिहार आए थे वो धीरे-धीरे फिर से उसी कंपनी की ओर जाने लगे हैं, जहां वे सभी मजदूर काम करते थे.
'हमारे पंचायत में काम नहीं मिला है और हमारे यहां मनरेगा का काम भी नहीं हो रहा है. जमीन महंगी होने के कारण कोई किसान मिट्टी काटने नहीं देता है'- विजय कुमार, मुखिया मोजीपुर पंचायत
कम मजदूरी से मजदूर निराश
लॉकडाउन में बिहार के मुख्यमंत्री ने प्रवासी मजदूरों के जख्म पर मलहम लगाने के लिए कई घोषणा की लेकिन मनरेगा में सरकार द्वारा निर्धारित राशि बहुत कम थी. कम मजदूरी मिलने के चलते मनरेगा की कोई भी स्किम जमीन पर नहीं दिखी और ये मिशन अधूरा ही रह गया. ईटीवी भारत ने पटनासिटी एसडीओ मुकेश रंजन से मनरेगा के बारे में जानने का प्रयास किया तो उन्होंने भी रटी रटाई सरकार की बात कह डाली और कहा कि सरकार की जो स्किम है उस स्किम के तहत कार्य किये जा रहे हैं.
'सरकार की ये प्राथमिकता रही है कि लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों से आए मजदूरों को बिहार में ही मनरेगा के तहत रोगजार उपलब्ध कराएं जाएं ताकि वो फिर से लौटकर वापस दूसरे राज्यों की ओर पलायन नहीं करें'-मुकेश रंजन, एसडीओ, पटनासिटी
'मनरेगा से हमें अभी काम मिला है, इससे पहले हम खाली बैठे थे, पिछले कुछ दिनों से ही यहां काम कर रहे हैं'-सुरेंद्र बिंद, धनरूआ
'लॉकडाउन के दौरान हम घर पर ही बैठे थे. मनरेगा में पहला काम अभी मिला है इससे पहले हमारे पास कोई काम नहीं था ' -सावित्री देवी, धनरूआ
प्रवासी मजदूरों को कुछ दिन तक मनरेगा के तहत काम मिला उसके बाद योजना बंद हो गई, क्योंकि जो सरकार की ओर से निर्धारित राशि 194 रुपये उस पर कोई काम करने को तैयार नहीं. जिसको मौका मिला वो फिर दूसरे राज्य चले गये, जो बचे है वो भी जाने के मूड में है.
'मनरेगा मजदूरों का सरकार द्वारा निर्धारित राशि 194 रुपये से गुजर बसर नहीं हो रहा, कम पैसे मिलने के चलते मजदूर दूसरे राज्यों में मजदूरी के लिए पलायन करने को मजबूर है'-अवधेश सिंह, मुखिया सोनामा
फिर पलायन को मजबूर मजदूर
कोरोना संक्रमण के दौरान लॉकडाउन में जहां मनरेगा आयुक्त ने पिछले साल की तुलना में इस साल ज्यादा मनरेगा रोजगार की बात कही. वहीं, लॉकडाउन में मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद भी मजदूरों को रोजगार नहीं मिलने की स्थिति में थकहार कर वो दूसरे राज्यों में चले गए. सभी का कहना है कि सरकार द्वारा निर्धारित राशि 194 रुपये से गुजर बसर नहीं हो रहा.