पटना: बिहार के इतिहास में किए गए काम के उन पन्नों का एक नया आलेख लिखकर जनता के सामने जदयू (JDU) 24 नवंबर 2021 को देने जा रही है. नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) 24 नवंबर 2005 में बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (Rashtriya Janata Dal) के 15 साल की सरकार को हटाकर गद्दी पर बैठे थे. उसके बाद काम करना शुरू किया था. नीतीश में जितना काम किया, उसके बारे में बिहार के बदलाव की कहानी साथ रहे हर नेता ने कहा है.
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यह अलग बात है कि राजनीतिक बदलाव की भी कहानी बिहार में कई जोड़-तोड़ के साथ बताई और सुनाई भी जाती है. लेकिन जो कुछ बताने का काम जनता दल यूनाइटेड करने जा रही है, अब विपक्ष सवाल उठा रहा है कि अगर आपने किया है तो बताने की जरूरत क्या है. अगर आप सिर्फ बता रहे हैं तो इसमें यह साफ है कि करने में कहीं न कहीं कोई कमी रह गई है.
बिहार में सरकार (Bihar Government) द्वारा होने वाले कामों को अगर सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों से देखा जाए बदलाव की एक कहानी जरूर नीतीश कुमार के गद्दी पर बैठने के बाद हुई है. यह भी उतना ही सही है कि जब नीतीश कुमार गद्दी पर बैठे थे और आज जहां गिनती कराई जा रही है, उसने देश की रफ्तार ने ऊंचाई के ऐसे मापदंड स्थापित किए हैं कि अगर उन आंकड़ों को 2005 की तुलना में जोड़ा जाए तो बदलते बिहार की कोई बड़ी तस्वीर सामने नहीं आती है. आंकड़ों में बदलाव की कहानी जरूर है. बिहार में बदलाव की जो बड़ी कहानी है, उसके कुछ आंकड़े ऐसे भी हैं.
बिहार के गरीबी दर में लगातार कमी आयी है. 2004-05 में जहां यह 54.4 था वहीं अब यह घटकर 33.74% हो गया है. इस तरह से इसमें 20.6% की गिरावट दर्ज की गई है. बिहार में शहरीकरण 2001 में जहां 10.48 था वहीं 2011 में बढ़कर 11.3 रहा. इस तरह से मामूली बढ़ोतरी 0.82% की हुई. बिहार में शहरीकरण का दर बेहद कम है. यह हमारे बेहतर सुशासन और संतुलित विकास को दर्शाता है.
बिहार के ग्रामीण इलाकों में लोगों का मासिक व्यय 2005 में जहां 417 रुपये मात्र था, वहीं वर्तमान में यह 1127 रुपया हो गया है. इस तरह से मासिक व्यय में 710 रुपये की वृद्धि हुई है. बिहार के शहरी लोगों का मासिक खर्चा 2005 में 696 रुपये था जो वर्तमान में बढ़कर 1507 हो गया है. इस तरह से 811 रुपये लोग ज्यादा खर्च कर रहे हैं.
इज ऑफ डूइंग बिजनेस में भी बिहार में लगातार सुधार किया है. 2015 में बिहार का स्कोर 16.4 था. वहीं, वर्तमान में बढ़कर 81.91 हो गया है. इस तरह से 65.5 की वृद्धि हुई है. प्रति व्यक्ति आय (GSDP) 2005 में जहां 8773 रुपये थी, वहीं, यह बढ़कर 2019 में 47541 हो गया. इस तरह से बिहार में लोगों का प्रति व्यक्ति आय 38768 रुपये बढ़ा. प्रति व्यक्ति आय एनएसडीपी (NSDP) के अनुसार 2005 में जहां 7,914 रुपये था वहीं यह बढ़कर 2016-17 में 25,950 रुपये हो गया. इस तरह से 18,036 रुपये की वृद्धि हुई है.
बिहार में कोरोना महामारी ने विकास की रफ्तार रोकी लेकिन चल रहे विकास कार्यों को जिस तरीके से जगह मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिल पाई. अब सवाल उठ रहा है कि जो काम किया गया, उसको बताने में सरकार और जदयू जितना उत्साहित है, उतने ही बड़े सवाल सरकार और जदयू के सामने खड़े हैं. नीतीश कुमार ने योजनाओं के नाम पर बहुत कुछ किया.
बात अगर शिक्षा व्यवस्था की करें तो हुनर और तालिमी मरकज जैसी व्यवस्था बिहार को दी गई. लड़कियों के लिए पोशाक योजना, साइकिल योजना, सेनेटरी नैपकिन योजना, समाज में कुरीतियों को खत्म करने के लिए दहेज बंदी की योजना, शराबबंदी का कानून, आम लोगों को सुविधाएं पहुंचाने के लिए हर घर नल का जल योजना, हर घर बिजली योजना, सात निश्चय पार्ट वन, सात निश्चय पार्ट 2 शुरू किया गया. सवाल फिर भी वही खड़ा है कि बिहार बदला कितना. बदलने के लिए काम करने का जो मामला जनता के सामने रखा जाता है, उसमें बदलाव की कौन सी बानगी बिहार ने देखी. यह आज भी सवालों में खड़ा है जिसका उत्तर बिहार खुले मन से नहीं पा रहा है.
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नीतीश कुमार जब बिहार की गद्दी पर बैठे थे तब कहते आ रहे हैं कि जनता ने उन्हें काम करने का जब से अवसर दिया है तब से वह काम कर रहे हैं. उन्हें प्रचार का कोई शौक नहीं है. निश्चित तौर पर सरकार के कामकाज का प्रचार तो नहीं होना चाहिए लेकिन जनता को बताना जरूरी है कि सरकार ने किया क्या है. इस बात को बताने से ज्यादा जरूरी उन बातों पर मंथन करना है जो बिहार में आज भी यक्ष प्रश्न लिए खड़े हैं. आखिर उद्योगों के लिए किया गया. बिहार का इंडस्ट्रियल स्ट्रक्चर कितना मजबूत हुआ, इस पर जदयू का और सरकार का कोई स्पष्ट उत्तर जनता के सामने आता नहीं है.
नौकरी को लेकर 2020 में नीतीश कुमार को विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा परेशानी तेजस्वी यादव से हुई थी. सरकार के एक साल बीत जाने के बाद भी कोई जनता के बीच आता दिख नहीं रहा है. बाढ़ की परेशानी आज ही बिहार को रुला रही है. इसका स्थाई समाधान होता दिख नहीं रहा है. नदी जोड़ो योजना की कार्रवाई नीतीश कुमार के आने के बाद से शुरू हुई है अभी तक पेंडिंग ही पड़ी हुई है. हां, काम की बात बैठकों में जरूर होती है लेकिन बैठकों के बाद काम कितना हुआ, यह बताने के लिए शायद सरकार के पास फुर्सत नहीं है.
बिहार के तमाम जिलों में जेडीयू ने अपने मंत्रियों को तैनात किया है, प्रभारी बना दिया है कि सरकार के कामकाज को जनता के बीच पहुंचाएं. सवाल यह उठ रहा है कि यह 1 साल के कामकाज को बताने की जरुरत अचानक क्यों आन पड़ी. आखिर ऐसा क्या हो गया कि सरकार ने जब अपने 1 साल के कार्यकाल को पूरा किया तो नहीं बताया गया लेकिन 24 नवंबर 2021 को यह बताने की जरूरत हो गई कि 24 नवंबर 2005 को जब नीतीश कुमार गद्दी पर बैठे थे तब से लेकर आज तक क्या किया है.
इन सवालों के जवाब तो राजनीतिक दल अपने तरीके से देंगे लेकिन सवाल भी उठेगा. विपक्ष कहेगा कि अगर काम हुआ है तो बताने की जरुरत क्या है. अगर काम को बताने की जरुरत सरकार महसूस कर रही है तो एक बात साफ है कि किया गया काम जनता के पास पहुंचा नहीं है. हकीकत भी यही है और जमीनी सच्चाई भी. अब समझना तो जनता दल (यू) को है क्योंकि यह सवाल जनता का ही है. अब जवाब में भले जदयू कहती रहे कि बिहार में बहार है नीतीश कुमार है.
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