पटनाः सीबीआई के पूर्व निदेशक और 1974 बैच के IPS अधिकारी रंजीत सिन्हा का निधन हो गया है. मूल रूप से बिहार के सीवान के रहने वाले रंजीत सिन्हा ने बतौर आईपीएस कई बड़े-बड़े कदम उठाए. उनके अच्छे ट्रैक रेकॉर्ड को देखते हुए ही केंद्र सरकार ने उन्हें सीबीआई के निदेशक और डीजी आईटीबीपी सहित कई अहम पदों की जिम्मेदारी सौंपी. लेकिन उनकी पहचान कामयाबियों से कम, वहीं बदनामी से शायद ज्यादा हुई. आइए डालते हैं उन घटनाओं पर एक नजर...
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कोयला घोटाला जांच को किया था प्रभावित
बात उस समय की है, जब मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान देश में कोयला घोटाले के आरोप लगे थे. 1.86 लाख करोड़ के इस कोयला घोटाले की आंच प्रधानमंत्री के कार्यालय तक पहुंच गई थी. विश्वसनीयता का ख्याल रखते हुए जांच एजेंसी सीबीआई को इस मामले की जांच सौंपी गई. सुप्रीम कोर्ट में आरोप साबित हुए कि सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा ने कोयला घोटाले की जांच प्रभावित करने की कोशिश की.
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SC ने कहा था 'पिंजरे में बंद तोता'
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में साबित हो गया था कि बतौर सीबीआई चीफ रंजीत सिन्हा के कार्यकाल में कोयला घोटाले की जांच रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों और तत्कालीन कानून मंत्री अश्विनी कुमार को पहले ही दे दिया गया था. सिन्हा पर ये भी आरोप लगे थे कि उन्होंने तत्कालीन कानून मंत्री के कहने पर जांच रिपोर्ट में बदलाव किए थे. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट बेहद नाराज हुआ था. देश की सबसे बड़ी अदालत ने इसे निष्पक्ष जांच में सरकार की दखल मानकर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ को 'पिंजड़े में बंद तोता' तक कह दिया था.
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घोटाला से संबंधित लोगों से रिश्ता रखने का आरोप
रंजीत सिन्हा की फजीहत यहीं कम नहीं हुई, बल्कि वे सुप्रीम कोर्ट से मिली स्वायत्तता की गारंटी के दुरुपयोग के आरोपों में भी फंसे थे. रंजीत सिन्हा पर आरोप है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में ऐसी कपंनियों से जुड़े व्यक्तियों से मुलाकात की जो कोयला घोटाले से संबंधित थे. उन पर 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले के आरोपियों के सांठगाठ के आरोप लगे. बता दें कि रंजीत सिन्हा पहले CBI निदेशक बने, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने जांच से बाहर रहने का निर्देश दिया.