पटनाः लोक जनशक्ति पार्टी (Lok Janshakti Party) के नेतृत्व में बड़े बदलाव होने के बाद से ही राजनीतिक सरगर्मियां तेज हैं. लेकिन इस सियासी हललच के बीच पटना स्थित लोजपा के दफ्तर में सन्नाटा पसरा है.
पार्टी कार्यालय में कोई भी नेता या कार्यकर्ता नजर नहीं आ रहा. पार्टी कार्यालय के बाहर सांसद चिराग पासवान (Chirag Paswan) का नेम प्लेट हटा दिया गया है. अब पशुपति पारस (Pashupati paras) का नेम प्लेट लगा है.
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पार्टी दफ्तर में सन्नाटा
चिराग पासवान के समक्ष संकट की स्थिति है. पार्टी के 5 सांसदों ने बगावत कर दी है, पशुपति पारस के हाथों में नेतृत्व चला गया है. ये तमाम सांसद एनडीए के खेमे में जाने के लिए तैयार हैं. पार्टी में हुए इस उठापटक के बीच पटना स्थित प्रदेश कार्यालय में सन्नाटा पसरा है.
पटना प्रदेश कार्यालय में तमाम गतिविधियां थम सी गई हैं. प्रदेश कार्यालय के मुख्य द्वार पर अध्यक्ष के तौर पर अभी पशुपति पारस का नाम चस्पा है. फिलहाल ऐसा लगता है कि पार्टी के तमाम कार्यकर्ताओं ने लोजपा दफ्तर से दूरी बना ली हैं और वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं.
लोजपा में हो सकती है बड़ी टूट
लोजपा में सुबह से ही बड़ी टूट की खबरे आने लगीं थीं. बताया जा रहा था कि पार्टी के 5 सांसद बगावत करने को हैं और पशुपति पारस के नेतृत्व को स्वीकारने वाले हैं. दोपहर तक इस खबर पर मुहर लग गई और पार्टी के नेतृत्व में परिवर्तन हो गया.
जिन लोगों ने बगावत की है, उनमें हाजीपुर से पशुपति पारस, वैशाली से वीणा देवी, नवादा से चंदन कुमार सिंह, समस्तीपुर से प्रिंस राज और खगड़िया से महबूब अली कैसर शामिल हैं. ये लोग चिराग पासवान के कामकाज से खुश नहीं थे. पारस भी पार्टी में लगातार अपनी अनदेखी से नाराज चल रहे थे.
रविवार रात को पांचों सांसदों ने एकजुट होकर चिराग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. चिराग पासवान की जगह पशुपति पारस को संसदीय दल का नेता चुन लिया गया है. अब उनको राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बना दिया गया है.
हालांकि मनाने के लिए चिराग पासवान अपने चाचा पशुपति पारस से मिलने उनके आवास भी गए थे, लेकिन मुलाकात नहीं हो पाई.
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लोजपा की टूट में जदयू का हाथ?
पार्टी नेतृत्व में आए इस परिवर्तन को लेकर कयास लग रहे थे कि लोजपा की टूट में जदयू का हाथ हो सकता है. इसी बीच ललन सिंह के वीणा देवी के आवास पर आने और सभी सांसदों से मुलाकात करने को लेकर कई मायने निकाले जाने लगे.
कहा जाने लगा कि जेडीयू और नीतीश कुमार की पहल पर ही एलजेपी में टूट हुई है और इस पूरे सियासी घटनाक्रम के सूत्रधार ललन सिंह हैं.
हालांकि खगड़िया से एलजेपी के सांसद महबूब अली कैसर ने ललन सिंह से मुलाकात को औपचारिक बताते हुए कह दिया कि वे बधाई देने आए थे. लेकिन पार्टी में हुए बड़े परिवर्तन के तुरंत बाद ललन सिंह का पहुंचना केवल संयोग मात्र नहीं है.
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जेडीयू में विलय की अटकलें
एलजेपी के तमाम नेता भले ही दावा कर रहे हैं कि पार्टी में टूट नहीं हुई है, केवल नेतृत्व बदला है. लेकिन चर्चा जोरों पर है कि आने वाले दिनों में ये लोग अपने नए गुट का जेडीयू में विलय कर सकते हैं. क्योंकि पशुपति पारस नीतीश कुमार के बेहद करीबी रहे हैं.
चिराग पासवान के विरोध के बीच वो लगातार नीतीश कुमार की तारीफ करते रहे हैं. ऐसे में कहा जा रहा है कि एलजेपी में बिखराव की स्क्रिप्ट वास्तव में नीतीश कुमार और जेडीयू ने ही लिखी है.
कौन हैं पशुपति कुमार पारस?
पशुपति कुमार पारस अलौली से पांच बार विधायक रह चुके हैं. उन्होंने जेएनपी उम्मीदवार के रूप में 1977 में अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता. तब से वे एलकेडी, जेपी और एलजेपी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ते रहे हैं. उन्होंने बिहार सरकार में पशु और मछली संसाधन विभाग के मंत्री के रूप में कार्य किया. हाजीपुर से 2019 का संसदीय चुनाव जीता और संसद के सदस्य बने. इसके अलावा, वे लोक जनशक्ति पार्टी की बिहार इकाई के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं.